तुम्हारे जाते ही खुश हुआ था मैं
अब न कोई रोकेगा,न टोकेगा,
सब कुछ हमारे हाथ में होगा
हमारे काम पर भी
नज़र कोई नहीं रखेगा |
तुम्हारे बिना कुछ दिन
बड़ा अच्छा लगा था,
अकेले होने के ख़याल से
मन मचलने लगा था |
तुम्हारे जाने के इतने दिनों बाद
गुरूद्वारे में अर्चना करते हुए ! |
एक उकताहट सी आ गई है अब
ज़िन्दगी भी हम पे हँसती है |
जब भी उँगलियाँ चलाता हूँ
कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर,
अचानक रुक जाता हूँ
पीछे से कोई आवाज़ न पाकर |
तुम्हारे रहते लिखता था
कहीं ज़्यादा बेफिक्र होकर ,
पर अब लगता है जैसे
कविता और ज़िन्दगी
दोनों गईं हों रूठकर |
तुम्हारी झिड़की औ नसीहत
जबसे नदारद सी हुई है,
हमारी जिंदगी बेरंग औ
बहुत घबराई हुई है |
इस की-बोर्ड, अंतरजाल से
वितृष्णा हो गई है,
बाहरी दुनिया को पाकर
अपनी कहानी खो गई है |
तुम्हें जाना है ज़्यादा
यूँ चले जाने के बाद,
घर मकाँ सा हो गया
दीवार-ओ-दर करते हैं याद |
बहुत दिन अब हो गए
तुम बिन व बच्चों के बिना,
आतप सहा,भूखा रहा,
सुबह उठके दिन गिना |
तुम्हारी हर नसीहत
अब हमें स्वीकार है,
बस हो गया इतना विरह
बुलाता तुम्हें श्रृंगार है ||
आया ऊंट पहाड़ के, नीचे गया दबाय ।
जवाब देंहटाएंदुःख के दिनवा गिन रहा, नानक देव सहाय ।
नानक देव सहाय, कृपा हो जाये जम के ।
ऊंट उठा बलबला, घूँट कडुवे हैं गम के ।
खाना पीना छूट, नहीं सप्ताह नहाया ।
सपने देखूं रोज, लौट सारा घर आया ।।
आपने वियोग को 'कुण्डली' में लपेट ही लिया :)
हटाएं:-)
जवाब देंहटाएंअब तो स्कूल खुलने को हैं...........
आती ही होंगी..................
(इस कविता को पढ़ा तो अब्भई चलीं आएँगी )
सादर
waah ...sundar man ke udgaar ...!!
जवाब देंहटाएंshubhakamnayen .
बहुत ही बढिया ... अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने ... आभार
जवाब देंहटाएंजब साथ होते हैं तो एहसास नहीं होता साथ का .... जाने बाद खलती है कमी ... सुंदर एहसास से भरी मन के भावों को व्यक्त करने में सक्षम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमुझे अंदाज़ा नहीं था कि आप इतना वो होंगे!
जवाब देंहटाएंउनके जाने के इतने दिनों बाद .... क्यों संतोष जी ... ये तो एक दिन बाद ही महसूस हो जाना चाहिए था ...
जवाब देंहटाएंवे फ्लेशबैक में एक बार फिर से जीने चली गईं हैं , कहानी , जल्द ही वर्तमान में आ जायेगी चिंता ना कीजिये :)
जवाब देंहटाएं'अंतरजाल' और 'कीबोर्ड' से वितृष्णा उनके आगमन के बाद भी बनी रहे तो जानें :)
गुरुद्वारे में अर्चना ? मुझे तो लगा कि वे आंखें बंद करके आपकी हरकतों का जायज़ा ले रही होंगी :)
साफ़ साफ़ काहे नहीं कहते कि रोटी पानी चाय की दिक्कत हो रही है ब्लागिंग में व्यवधान हो रहा है :)
आलेख शीर्षक में कुछ शब्द हमहूं टांक रहे हैं ...बर्दाश्त कीजियेगा ...
"तुम्हारे जाने के बाद : और कोई मिला नहीं : अब तुम्हारा ही ख्याल है" :)
:):)
हटाएं...अली साब,आदाब अर्ज है !
हटाएंधीर धरो -
जवाब देंहटाएंभाई साल में कुंवारा भी रहना चाहिए. खुद पका के खाना चाहिए.
हा हा हा ! मास्टर जी , क्या श्रीमती जी दो महीने की छुट्टियों पर गई हैं ?
जवाब देंहटाएंया ये उन्हें पढ़ाने के लिए लिखी है ?? :)
स्कूल बस खुलने ही वाले हैं -बस - आती ही होंगी :)
जवाब देंहटाएंथोड़ा और इंतजार कीजिये - और हाँ - आने पर यह पोस्ट ज़रूऊऊर पढवाइयेगा :)
अच्छा तो तब खूब लगा होगा
जवाब देंहटाएंजब पाणिग्रहण किया होगा
अब प्रण ग्रहण कर लो
प्राण दे दो, जाने न दोगे
मकां को घर बनाके रहोगे
पढ़ाते हो, अब पढ़के रहोगे
जितनी पुस्तकें बची हैं
एक पढ़ोगे और एक कविता
फिर और लिखोगे
कितने दिन बचे हैं मिलने में
जरूर दो की दर से गीत
रोजाना लिखोगे
अभी तो कई राज इसमें
नहीं खुले हैं
वे कब खोलोगे
या उन्हें किसी पोस्ट में
कपड़ों की तरह निचोड़ोगे
कपड़े धोए होंगे
इस्त्री किए होंगे
बिस्तर बिछाए और सहेजे होंगे
या यूं ही बिखरे रहने दिए होंगे
कितने ही किस्से हैं
जो बाकी बचे हैं
जिनका खुलना बाकी है
जय हो हिंदी ब्लॉगिंग की
सब सामने आ रहा है
पहले छुपे रुस्तम थे
पर देवानंद नहीं थे
अब देवानंद भी हो
'धीरे से आजा बगियन में'
...इसी बहाने आप से इतनी अच्छी कबिताई करवा ली !
हटाएंवाह ,,,,बहुत खूब संतोष जी,,,
जवाब देंहटाएंपत्नी वियोग में उठते मनोभावों का सुंदर संम्प्रेषण,,,,
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
विरह का यह दंश है, रिक्त सब्र के कोष।
जवाब देंहटाएंतृषा में अनुरक्त हुआ, आज स्वयं संतोष॥
आज स्वयं संतोष, होश में आया बच्चा |
हटाएंआँगन को दे दोष, खा रहा खाना कच्चा |
वैसे तो है विज्ञ, मगर मूरख बन जाता |
परम मित्र हे सुज्ञ, वियोगी बात बनाता ||
वाह!! कविवर, हम निरुत्तर!!
हटाएंआभार ।
हटाएंसादर ।।
आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
हटाएंअली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !
wah wah.....kamal
हटाएंpranam.
मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
हटाएंसाथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
टूटा फूटा क्षीण बल, खल अब रहा विशेष ।
हटाएंदीदी जल्दी जाइये, ताकत भी नि:शेष ।
ताकत भी नि:शेष, केस यह टेढा-मेढ़ा ।
मित्र दे रहे क्लेश, सभी ने मिलकर छेड़ा ।
खींच रहे सब टांग, तोड़ कर भगा खूंटा ।
है भाई की मांग, जोड़िये टूटा-फूटा ।।
रविकर करे धमाल,रोज़ की बात हो गई,
हटाएंबुरा हमारा हाल ,खड़ी अब खाट हो गई :-)
सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे |
हटाएंबिन बीबी के मात भैया धीरे धीरे |
विकट मर्द की जात भैया धीरे धीरे |
दिखलाए औकात भैया धीरे धीरे |
खा लो बासी भात भैया धीरे धीरे |
खाकर के फै'लात भैया धीरे धीरे |
चार दिनन की बात भैया धीरे धीरे |
सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे ||
बहुत दिनों के बाद , मज़ा आया था बच्चा !
हटाएंउस दिन तो मन बड़ा प्रफुल्लित लगता बच्चा
कपडे धोले, उठ बिस्तर से , लंच बना ले !
पढ़ ले अब अखबार,किचिन में चाय बनाकर !
चार दिनों से खा रहा,खिचड़ी और दही,
हटाएंअब क्या और कराओगे,अँसुवन-धार बही !
सुज्ञ20 जून 2012 5:11 pm
हटाएंमेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
लूटा संग आनंद, आज तड़पन है भारी |
है विछोह से तंग, जंग है भारी जारी ||
आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
हटाएंअली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !
मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
कब तक सहता रहूँगा,मैं विरही का ताप,
मन को ठंडक तब मिले,घर आयें जब आप !
मंगल भावों का उदय, छाये परमानंद |
हटाएंशुभ शुभ योगायोग है, विरह अग्नि हो मंद |
विरह अग्नि हो मंद, चंद दिन ही तो बाकी |
महके मधु मकरंद, मस्त महिमा अम्बा की |
मैया का आशीष, ख़त्म हो मन के दंगल |
मिटे विरह की टीस, होय सब मंगल मंगल ||
फूल उन्हें भेजा है खत में ... ?
हटाएंhttp://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/06/blog-post_5562.html
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar, anupam bhav sanyojan kiye hain aapne...bhavpoorn abhivyaki.
जवाब देंहटाएं....बड़ी शानदार महफिल जमी है
जवाब देंहटाएंकविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं...!!!
जवाब देंहटाएंइतना दमदार न्योता को हम कभी नहीं लिख पाये..
जवाब देंहटाएं..पहले उनको भेजें तो...!
हटाएंतुलसीदास तुलसीदास
जवाब देंहटाएंविरज की ज्वाला असहनीय सी लग रही है।
जवाब देंहटाएंरविकर जी की बात सही लगी ...
रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय
जवाब देंहटाएंसुनि अठिलैहें लोग सब, बांट न लैहैं कोय।
....दिल्ली के कौनो बिलागर ई नाहीं कहे, "मास्साब! आ जाओ हमरे इहाँ, मकान में ताला जड़ के!" सब मजे लूट रहे हैं।:)
...बस,इत्ता महफ़िल जम गई ,ई का कम है ?
हटाएंजानता हूँ जन्नत की हकीकत लेकिन
हटाएंदिल को बहलाने के लिए गालिब खयाल अच्छा है।
तो आप भी ठहरे नितांत पामर मानव ही .....
जवाब देंहटाएंअस्थि चर्म माय देह मम तामे ऐसी प्रीति ..... :(
लगता है आने ही वाली हैं :)
जवाब देंहटाएंवो मानसून की पहली बारिश के साथ आयेंगी !
हटाएंतुम्हारी हर नसीहत अब मुझे क्यों लग रही मनभावनी ?
जवाब देंहटाएंबस हो गया इतना विरह , क्यों देर करतीं मानिनी ?
अब आप आए हैं समझने,हाल-ए-दिल मेरा,
हटाएंहै भरोसा कुछ न कुछ ,हो जायेगा अच्छा !!
सुंदर रचना एवं अभिव्यक्ति "सैलानी की कलम से" ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा है।
जवाब देंहटाएं:) बहुत बढ़िया - तो भाभी जी आईं , बच्चों की मासूमियत संग लेकर ?
जवाब देंहटाएंतुम्हें जाना है ज़्यादा
जवाब देंहटाएंयूँ चले जाने के बाद,
घर मकाँ सा हो गया
दीवार-ओ-दर करते हैं याद |
....बहुत सच कहा है...
जब साथ हों अकेलापन चाहते हैं, और जाने के कुछ घंटों बाद ही पछताते हैं.
दो ही वक्त गुजरे हैं कठिन,
जवाब देंहटाएंएक तेरे आने के पहले
और एक तेरे जाने के बाद...!
बहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
nissankoch bhavpun abhivyakti..
जवाब देंहटाएं