इन खामोश निगाहों से
मंजिल को जाती राहों से
होरी,धनिया की आहों से
अनगिन किये गुनाहों से
कब तक तुम बच पाओगे,
सभी आदरणीयों से माफ़ी सहित |
कभी सड़क पर तो आओगे !! १!
अपने को ही मार रहे
बनत बड़े हुशियार रहे
गरम हवा के साथ बहे
कुछौ न करिहौ बिना कहे ?
कब तक घूँघट डाल रखोगे,
कभी तो पनघट पर आओगे !! २!
आग भरी है हमरे दिल मा
रोज कर रहे हम पैकरमा
चुहल कर रहे तुम संसद मा
कितने छेद कर दिए बिल मा
तुम किस बिल में घुस पाओगे,
बीच सड़क जब आ जाओगे ? ३!
हमने तो ये सोच रखा है
धीरज को तुमने परखा है
ताक में गाँधी का चरखा है
चारा,रबड़ी खूब चखा है
अब तुम हड्डियां चबाओगे ?
शायद सुकून तब पाओगे !! ४ !
आग भरी है हमरे दिल मा
जवाब देंहटाएंरोज कर रहे हम पैकरमा
चुहल कर रहे तुम संसद मा
कितने छेद कर दिए बिल मा
तुम किस बिल में घुस पाओगे,
बीच सड़क जब आ जाओगे ?
चकाचक हैं ये लाइने। लिखे रहौ अवधी !
इस रोष , जोश और आक्रोश के आगे तो कोई भी नेता हाथ कर मांफी मांगने लगेगा भाई जी ॥
जवाब देंहटाएंबहुते बढ़िया !
सब देखा, सब देख रहे हैं,
जवाब देंहटाएंइनके जो संकेत रहे हैं।
वाह! बहुत बढ़िया ! ज़बरदस्त प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
भाई जी , आपकी कविता एक आम आदमी के मन की बहुत ही सटीक और तीखी अभिव्यक्ति है ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंजो हम फ़ुरसत में फ़ुरसतियाए हैं
जवाब देंहटाएंवैसा ही आप कुछ लिख लाए हैं
ये सब तो खेले-खाए अघाए हैं
जनता को बहुत सताए हैं।
वाह जी। जनता तो आज तक इसी उम्मीद पे ज़िन्दा है। यही कल्पना आस-पड़ोस के कई "रहनुमाओं" की हक़ीक़त भी बन चुकी है, शायद प्रभु की कृपा कभी इधर भी हो!
जवाब देंहटाएंनहीं ही निकलेंगे ये दड़बे से
जवाब देंहटाएंकुछ सवाल हैं ?
जवाब देंहटाएं(१) ये तो सरासर धमकी हुई धनिया और होरी के बहाने से :)
(२) अपने को ही मार रहे माने खुदकुशी टाइप का कि नाते वाले टाइप का ? पनघट और घूंघट से तो शत्रु पक्ष के स्त्री लिंग होने का बोध होता है :)
(३) हम तो बिल का मतलब ही छेद समझते आये हैं :) एक बार फिर से सड़क वाली धमकी :)
(४) रबड़ी खाना और हड्डियां चबाना तो ठीक पर श्वान चारा नहीं खाते हैं :)
@ अनूप जी
जवाब देंहटाएंआपकी रहनुमाई ज़रूरी है !
@डॉ.दराल साब
माफ़ी ही काफी नहीं है...देशसेवा ज़रूरी है !
@प्रवीण पाण्डेय जी
हम देखते ही नहीं रहेंगे,
बोलेंगे और बदलेंगे भी !
@प्रेम नंदन जी
जवाब देंहटाएंआम आदमी के सरोकार ,जब भूल जाये सरकार ...तो बेकार !
@मनोज जी
हम अगर फुरसत में हैं तो उन्हें भी फुरसत में बिठा देंगे !
@अनुराग शर्माजी
कभी तो पाप का घड़ा भरता ही है !
@काजल कुमार जी
आप का काम है कि सोते हुओं को जगाएं !
@अली सा
जवाब देंहटाएं१)धमकी नहीं व्यथा है...!
२)वो ख़ुदकुशी करने पे आमादा है,
सही है कि वो मादा है !
३)बिल में भी छेद है,
यही तो भारी भेद है !
४)ये श्वान धर्मनिरपेक्ष हैं,कोई भेद नहीं मानते ,गोश्त और घास में !
आग भरी है हमरे दिल मा
जवाब देंहटाएंरोज कर रहे हम पैकरमा
चुहल कर रहे तुम संसद मा
कितने छेद कर दिए बिल मा
तुम किस बिल में घुस पाओगे,
बीच सड़क जब आ जाओगे ?
...मस्त लिखे हैं त्रिवेदी जी। हमारी बधाई स्वीकार करें।
अली सा को क्यों नहीं बताते कि एक बिल का मतलब लोकपाल बिल है दूसरे का मतलब वह बिल है जिसमें चूहा भागकर छुप जाता है। हां हां समझते हैं फिर भी बताना पड़ता है..मास्टर साहब बच्चों से वही प्रश्न थोड़ी न पूछते हैं जिनका उत्तर उन्हें नहीं आता :)
अवधी मा ही जवाब बाबा का ...
जवाब देंहटाएंउघरहिं अंत न होई निबाहू कालनेमि जिमी रावन राहू
@ देवेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंवास्ते ...मस्त लिखे हैं त्रिवेदी जी :)
मस्त से पहले वाले रिक्त स्थान से आपका आशय क्या है भला :)
अब तुम हड्डियां चबाओगे ?
जवाब देंहटाएंशायद सुकून तब पाओगे ...
लाजवाब ... अब ये चबाएँगे नहीं सीधे खा जायंगे ... मज़ा आ गया ..
अब तुम हड्डियां चबाओगे ?
जवाब देंहटाएंशायद सुकून तब पाओगे
:-)
तुम किस बिल में घुस पाओगे,
जवाब देंहटाएंबीच सड़क जब आ जाओगे ? waah.
:-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको भाई जी !
पता नहीं कब यह सब होगा !
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक सटीक रचना ....
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे.
ठीक किया जो ....पहले ही हाथ जोड़ मुआफी मांग ली थी !
जवाब देंहटाएंआग भरी है हमरे दिल मा
जवाब देंहटाएंरोज कर रहे हम पैकरमा
चुहल कर रहे तुम संसद मा
कितने छेद कर दिए बिल मा
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तेवर देखने लायक है. वैसे भी अब तो आन ही है, जायेंगे कहाँ.