बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक रहा है.बाज़ार या मेले जाता तो कोई खाने की चीज़ न लेकर एक-दो किताबें ज़रूर धर लेता ! किताबों या पत्रिकाओं की दुकान पर जाना निश्चित था.साहित्यिक पुस्तकों का पढ़ना अब भले ही कम हो गया हो,पर समाचार पत्रों (एक दिन में कई-कई ) का क्रेज बदस्तूर जारी है !लिखने की हुडक भी तब से लगातार जारी है,पर पहले डायरियों में,फिर अख़बारों,पत्रिकाओं में 'संपादक के नाम पत्र' लिखकर अपनी छपास की प्यास बुझा लेते थे.अब जब से यह ब्लॉगिंग का प्लेटफॉर्म मिला है,न कोई छपने-छपाने की आशंका,काट-छाँट का डर और न हर्रा-और फिटकरी की खोज ! विचार जब उबलने शुरू हो गए ,की-बोर्ड पकड़कर खटर-पटर करने लग गए !
ब्लॉगिंग के क्षेत्र में आकर हम 'लेखक' कहलाने का भी अवर्णनीय आनंद उठाने लगे पर क्या एक ब्लॉगर एक लेखक भी है ,इस विषय में ज़रूर मेरी कुछ मान्यताएं अब बन गयी हैं लेखक जब लिखता है उसे गंभीरता और साहित्यिक -स्पर्श देता है, लिखने के बाद उस पर किसी प्रतिक्रिया की दीर्घकालीन अपेक्षा रखता है ,उसकी प्रतिक्रिया देर से आती है तो उसका प्रभाव भी चिरकालीन या सदा-सर्वदा रहता है,उसके लेखन से उसके सहृदयता की पहचान मुश्किल होती है,लेखक अपने पाठक से सीधे संवाद की स्थिति में नहीं रह पाता,ऐसे में उसका लेखन एकपक्षीय होता है.लेखक के पाठक ज़्यादातर सिर्फ पाठक होते हैं ,लेखक नहीं ! इसलिए उसका पढ़ा जाना पारस्परिक आदान-प्रदान नहीं होता !
लेखक लगातार अच्छा लिखने से ही महान बन पाता है, इस वज़ह से उसमें अहंकार का इलहाम भी नहीं आ पाता या देर से आता है.लेखक तथ्यपूर्ण लिखने का अधिकतम प्रयास करता है क्योंकि उसके एक बार लिख लेने के बाद संशोधन की गुंजाइश सुगम नहीं होती.लेखक का विस्तार व्यापक होता है और वह भी बिना किसी नेटवर्क के ! पाठक के लिए लेखक एक सेलेब्रिटी हो जाता है.उसके लिखे का अर्थ होता है और वह अर्थ भी पाता है !लेखकों के भी गुट होते हैं पर इनसे पाठकों का ज़्यादा लेना-देना नहीं होता ! ये गुट उन्हें पुरस्कार दिलाने के काम भले आते हैं !
एक ब्लॉगर जब चाहे ,जितना चाहे लिख सकता है. एक नहीं दर्जनों ब्लॉग बना सकता है,भले ही उनमें लिखना कम या निरर्थक-सा रहे.साहित्यिक-स्वाद भी मिल सकता है पर गंभीर और उत्तम कोटि का साहित्य ढूँढना मुश्किल-सा है.निरा साहित्य पढ़ने के लिए नामी-गिरामी और स्थापित लेखक (मुंशी प्रेमचंद,निराला,प्रसाद आदि )कहीं बिला थोड़ी गए हैं.ब्लॉगिंग हलके-फुल्के लेखन और मनोरंजन का भरपूर जरिया है .इसी आड़ में कई लोग अपनी निरर्थक-भड़ास भी उडेलने लगते हैं,पर उन्हें न पढ़ने का विकल्प तो है ही ! यदि आप टीपों की संख्यात्मकता के प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो कुछ अच्छे और साहित्यिक ब्लॉग भी मिल जायेंगे !
ब्लॉगिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि आप इसके ज़रिये अपने पाठकों (जो स्वयं ब्लॉगर होते हैं) से सीधा जुड़े होते हैं. अपने लिखे पर उसकी त्वरित-प्रतिक्रिया ले-दे सकते हैं.हालाँकि ,ज़्यादातर मामलों में यह संवाद दो-तरफ़ा होता है.यदि कहीं आप टीपते हैं ,तभी प्रति-टिप्पणी की सम्भावना अधिक होती है.थोड़ी-बहुत नकारात्मकता के बाद भी यह संवाद-शैली इसको दस्तावेजी-लेखन से बेहतर बनाती है.
ब्लॉगिंग का एक स्याह-पक्ष यह भी है कि थोड़ा-सा गरुआ जाने पर आप की आत्मीयता और सहृदयता की पोल भी खुल जाती है.यदि आप आत्म-श्लाघा नामक बीमारी से प्रेरित हो गए तो आप कई लोगों के प्रेरक भी नहीं रह पाते. जहाँ लेखक केवल लिखकर प्रेरणा देता है,वहीँ इस विधा में लिखना और टीपना दोनों आवश्यक हो जाते हैं. कुछ लोग अपने को लिखने से भी बड़ा मानने लगते हैं जबकि कोई भी लिक्खाड़ उतना ही आदर्शवादी,सहृदय होता है जितना वह अपने लेखन में दर्शाता है. इस तरह ब्लॉगर को मानवीय संवेदना-युक्त होना ज़्यादा आवश्यक है,क्योंकि उसकी ब्लॉगिंग की लोकप्रियता संख्यात्मकता पर अधिक आधारित हो सकती है,गुणवत्ता पर कम !
इस तरह ब्लॉग-लेखन आपसी संवाद का जरिया ज्यादा है,साहित्य भूख मिटाने का कम.अब ब्लॉगिंग की धमक प्रिंट-मीडिया ने भी महसूसी है,लगभग हर समाचार-पत्र नियमित रूप से ब्लॉग-पोस्टें छाप रहे हैं. इसलिए इधर ब्लॉग-लेखन में भी गंभीरता आई है.लेकिन एक ब्लॉगर को लेखक समझ लेना भरम ही है और जितनी जल्दी यह भरम मिट जाय ,ब्लॉगिंग सुखद ,आत्मीय और पारिवारिक लगेगी !
ब्लागिंग को व्याख्यायित/निरुपित करने में ऐसी पोस्टों का नैरन्तर्य बना रहना चाहिए ....आपके कई बातें पूरी मौलिकता के साथ ब्लागिंग को विवेचित कर रही हैं ...ब्लागिंग एक माध्यम भर नहीं है यह एक अपने ढंग की विधा भी है ...इसकी खुराक टिप्पणियाँ भी हैं ....पारस्परिक संवाद होने से लेखन में उत्तरोत्तर अपेक्षित सुधार आता है ..मैंने खुद देखा है कई लोगों का लेखन ब्लॉग जगत में निखार पाता गया है .मगर वही जो निष्ठा से लगे रहे हैं ..कुछ लोगों ने चाय की प्याली में तूफ़ान पैदा किया और जल्दी ही कालकवलित हुए ...कुछ की अंतिम साँसे चल रही है ....
जवाब देंहटाएंआप तो महराज जन्मजात लिक्खाड़ हैं अपनी पर आ जायं (जो आ रहे हैं खरामा खरामा ) तो बड़े बड़ों का तम्बू उखाड़ फेकें ...मगर जामवंत का साहचर्य आपके लिए जरुरी है ..(अली भाई को मनाईये ) ..जो अपने लेखन के लिए सम्पादक के नाम पात्र लिखने की कशिश रखता रहा हो असली भुयिंफोर लेखक वही है ..अब आपका यही लेख देख लीजिए ..अच्छे अच्छों ने अभी कल्याण की सद्य समाप्त गोष्ठी ऐसा परचा नहीं पढ़ा ......साधुवाद !
ब्लोगिंग में लेखन के साथ सामाजिकता भी आ जाती है . दोस्ती , संपर्क , संवाद , वाद विवाद -सभी का समागम है ब्लोगिंग . यह सम्पदा एक लेखक के पास नहीं होती . लेकिन गंभीर लेखन के लिए ब्लोगिंग शायद ज्यादा उपयुक्त नहीं है . इसलिए लिखते समय यह ध्यान रखना ज़रूरी है की विषय को बोझिल न बनाया जाए . जितना हो सके सरल शब्दों में मनोरंजक अंदाज़ में अपनी बात कहनी चाहिए .
जवाब देंहटाएंभाई जी , ब्लागर लेखक है या नहीं ये तो बहस का मुद्दा है ! लेकिन आजकल ब्लॉगर को पत्रकार का दर्जा जरूर मिलने लगा है !
जवाब देंहटाएंन लेखक बड़ा
जवाब देंहटाएंन बड़ा है ब्लॉगर
सबसे बड़ी है कलम
जिसकी है तेज धार
जिसका विशद आकार
जब लिखा जाता है
तो वो चुभता है
न लेखक चुभोता है
न चुभोता है ब्लॉगर
आ लो देख लो पढ़ लो
चाहे मेरे ब्लॉग पर
या अखबार उठाकर
कुछ नहीं चुभेगा
जो कलम को नहीं पकड़ा
सही तरह से
तो वही चुभेगी
।
...सही है।
जवाब देंहटाएंकुछ न पूछिए ब्लॉगिंग के मजे..
पढ़ते-पढ़ते लिखने लगता
लिखते-लिखते पढ़ने लगता
संकोची, हकलाने वाला भी
अपने मन की गढ़ने लगता।
भैंस ही बड़ी है जी
जवाब देंहटाएं@ काजल भाई ,
जवाब देंहटाएं:)
और करिया अक्षर भैंस बराबर है जी :)
पढ़ कर कई भ्रम ध्वस्त हो गये हमारे।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखने के लिए अच्छा पढना ज़रूरी है .....यह ज़रुरत आज भी किताबों पर ही जाकर पूरी होती है .विचारों के आदान प्रदान के लिए ब्लॉग्गिंग अच्छी विधा है पर गुणवत्ता पूर्ण लेखन सामने आने के लिए अभी लम्बा समय है ..... हाँ ऐसे भी कई ब्लोग्स हैं जहाँ पोस्ट पढ़कर दिमागी खुराक मिलती है और स्तरीय लेखन है पर उनकी संख्या गिनती की है .....
जवाब देंहटाएं@अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंगुरुवर ब्लॉगिंग का मुख्य आनंद आपसे ही ले रहा हूँ.लिखना-पढ़ना तो निरंतर चलने वाली चीज़ है लेकिन जब लिखते और पढते हुए उसी में कोई रम जाये,ये सब उसके जीवन में रच-बस जाये तभी वास्तविक आनंद आता है.इससे ज्ञान तो आता ही है,मन को सुकून व उसका रंजन भी होता है.
इस धारणा में आपकी कई सम्मतियों व धारणाओं का समावेश है.लेखक जहाँ पाठक से कटा रहता है,ब्लॉगर एक-दूसरे का साथी व गुरु बन जाता है !
ब्लॉगिंग कभी भी पूर्ण-लेखन नहीं बनेगी,अगर ऐसा हुआ तो इसकी अवधारणा ही बदल जायेगी !
आपकी नेक सलाहों व कृपा की ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी !
ब्लॉगिंग पर अच्छा शोध किया है ... ब्लॉगिंग भले ही गंभीर साहित्य का स्थान न ले पाए पर कुछ लोग सच ही गंभीर रचनाएँ लिखते हैं .
जवाब देंहटाएंयह भी सही लगी आपकी बात की सब ब्लॉगर्स अपने को लेखक समझने लगते हैं ... जब कि हम यहाँ मात्र अपनी बात सीधे और सरल शब्दों में अभिव्यक्त करते हैं .
बहुत अच्छा लिखतें हैं आप संतोष जी.
जवाब देंहटाएंलेखन ब्लोगर और लेखक दोनों के लिए
आवश्यक है.सुन्दर लेखन अच्छा लेखक
बनाये या ब्लोगर क्या फर्क पढता है.
समय के साथ हर चीज में ही बदलाव आ रहा है.
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
आपने लिखा -लेखक अपने पाठक से सीधे संवाद की स्थिति में नहीं रह पाता
जवाब देंहटाएंकल हमारे मित्र गोविन्द उपाध्याय की एक कहानी जनसंदेश टाइम्स में छपी। सुबह से उनके पास अनेकों फोन आये जिसमें लोगों ने उनसे कहानी के बारे में चर्चा की। फ़िर यह कैसे सही माना जाये कि लेखक पाठक से कटा रहता है।
आपने लिखा -ब्लॉगिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि आप इसके ज़रिये अपने पाठकों (जो स्वयं ब्लॉगर होते हैं) से सीधा जुड़े होते हैं
मेरे तमाम नियमित पाठक कभी मेरे ब्लॉग पर कमेंट नहीं करते। उनका कोई ब्लॉग भी नहीं है। फ़िर यह बात कैसे सही हुई कि पाठक ब्लॉगर ही होते हैं।
जो लेखक ब्लॉगर भी हैं उनका कौन सा पक्ष बड़ा माना जायेगा लेखक का या ब्लॉगर का?
@ अनूप शुक्ल जी
जवाब देंहटाएंहमने जिस सन्दर्भ में लेखक और पाठक का संवाद न होना बताया है,वहाँ तक आप नहीं पहुंचे. सामान्यतया किसी लेखक की कहानी,कविता,उपन्यास ,जीवनी आदि पुस्तकीय रूप में आती है तो संवाद का चैनल नहीं होता.
जिस अखबार में कहानी छपने की बात आपने बताई है उसमें हर लेखक,ब्लॉगर का साथ में फोन नंबर भी दिया होता है,फिर भी ब्लॉगिंग में जैसा 'इंटरैक्शन'होता है क्या,वैसा साहित्य में जमी हुई लेखकीय बिरादरी में संभव है ?
आप बड़का ब्लॉगर हैं,इसलिए आपके कई पाठक केवल पढते हैं,कमेंटियाते नहीं,लेकिन सबके साथ तो ऐसा नहीं होता है ना !
बकिया,यह मेरी मान्यताएं थीं,गलत भी हो सकती हैं.
न कोई बड़ा न कोई छोटा - बस - जिसे जो करने से संतोष मिले (लेखन / ब्लॉग्गिंग ) - उसके लिए वही बड़ा है |
जवाब देंहटाएंसंतोष जी आपने बहुत बढ़िया लिखा है! अगर कोई अच्छा लिखता है तो पढ़ने में अच्छा लगता है और नयी जानकारी भी मिलती है!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
ब्लोगिंग से शुरू कर लेखक हो जाना भी संभव लगता है. आज के ई-ज़माने में.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ||
dcgpthravikar.blogspot.com
इसका जवाब तो वही दे पायेगा जो लेखक भी हो और ब्लोगर भी. हम तो अपने को दोनों में से कोई नहीं मानते :)
जवाब देंहटाएंब्लॉगर और लेखक के बीच का अंतर?
जवाब देंहटाएंब्लॉगर में स्वस्फूर्त लेखन है...भड़ास है ....अपना प्रत्युत्तर है तो दूसरों की खिंचाई भी ......इतना सब सीरियस लेखन में कहाँ ? जो आजादी इधर ......उधर यह सब कहाँ?
अभिषेक ओझा से सहमत!
जवाब देंहटाएंसामान्यतः स्वतःस्फूर्त बेतरतीब विचारों को लिख देना ब्लॉगिंग है , पत्र पत्रिकाओं में लेखन के लिए अनिवार्य शर्तें होती हैं जैसे शब्द सीमा , समय की पाबन्दी ....ब्लॉगर्स टिप्पणियों के माध्यम से आत्मीय भाव (कभी- कभी दुश्मनी भी :) ) से जुड़े होते हैं , जबकि लेखकों के लेख पर पाठको की प्रतिक्रियाएं औपचारिक और लेखन तक ही सीमित होती है ! दोनों में बहुत फर्क है !
जवाब देंहटाएंमैं वाणी गीत जी से सहमत हो लेता हूँ क्योकि इन दिनों वे टिप्पणियाँ लाजवाब कर रही हैं ....दरअसल ब्लॉगर की पहचान उसकी टिप्पणियों से ही होती है और उसके बियाबान में चले जाने की भी .....
जवाब देंहटाएं@वाणी गीत जी चर्चा में अपने अनुभव और अपनी सम्मति प्रकटने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंnayi jaankari mili...aabhar
जवाब देंहटाएंwelcome to my blog :)
... कुंजी तो संवाद ही है।
जवाब देंहटाएं... और सम्वाद जारी रहना चाहिये।
जवाब देंहटाएं:)
ब्लॉग्गिंग जगत का सटीक विश्लेषण. निश्चित ही ब्लोगर का मानवीय संवेदना-युक्त होना ज़्यादा आवश्यक है.
जवाब देंहटाएं@ ब्लॉग-लेखन आपसी संवाद का जरिया ज्यादा है
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने। हम भि इसे आपसी संवाद का ज़रिया मानते रहे हैं, और लोगों से सम्पर्क बढ़ाने और बनए रखने में यकीन रखते हैं।
पेपर में नाम छपा तो लेखक?
जवाब देंहटाएंभई वाह!!!
पेपर में तो संवाददाता का नाम भी उसके लिखे के साथ छपता है तो……
पेपर में छपने पर ब्लॉगर ,पत्र-लेखक वास्तव में लेखक नहीं होते. संवाददाता तो अलग प्राणी हैं,वे नियमित नौकर भी होते हैं !
हटाएंमेरे बयान का गलत अर्थ निकाला गया है ... तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है
हटाएंकहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना......छील कर रख दिया !
हटाएंसीधी सी बात है भई
जवाब देंहटाएंब्लॉगर बे-लगाम होता है क्योंकि वह बेलाग लिखता-टिपियाता है :-)
जे बात ज़्यादा सही रही....अपने मन का,बिंदास और आम आदमी से थोड़ा ऊपर होता है !
हटाएंलिखना, छपना ही लेखक की पहचान नहीं वैसे ही ब्लाग पर होना कइयों के मामले में तकनीकी सुविधा का लाभ-मात्र के कारण है.
जवाब देंहटाएंब्लाग-ब्लागर-ब्लागरी सुन कर तो कुछ ही नाम हैं, जो ध्यान आते हैं...
लेखक होना यह भी है कि यदि आपके पास मोटी रकम है और पुस्तक छप गई तो लेखक और चाहे कितना भी डायरियों में लिखे हो,लिख लेते हो,अपने आप छपते या छपवाने की सामर्थ्य नहीं है तो भी इस बिरादरी में कैसे आयेंगे ?
हटाएंब्लॉगर लिखने से ज़्यादा रिश्ते और संवेदना के लिए जीते हैं !