कुछ लिख नहीं पाता ,कुछ कह नहीं पाता,
इस माहौल में भी तो, मैं रह नहीं पाता ! १!
हम तुमको न समझे थे ,तो कोई बात नहीं,
तुम्हीं हमको बता देते ,मैं कह नहीं पाता !२ !
तुम्हारे खून की हर बूँद हमको चाहिए,
खिलाफ़ उठती आवाजें,मैं सह नहीं पाता !४ !
रोशनी की हर किरन ,मेरे इशारों पर,
आँधी की आहट को,मैं सुन नहीं पाता !५ !
इस वक़्त को बाँधा हुआ है हाथ से,
सोते हुए ये सोचता हूँ,मैं जग नहीं पाता !६ !
ये देखिये,अपने अली साहब का अलग रंग....पैरोडी के रूप में !
ali ने कहा…
शायरे उल्फत हूं मैं ,जब इश्क फरमाता हूं मैं !
लिख नहीं पाता कभी खामोश रह जाता हूं मैं :)
मैं तुम्हें समझी नहीं ये कह निकल लेती हो तुम !
क्या बताऊँ किस कदर खुद ही पे झुंझलाता हूं मैं :)
देख कर बदली हुई रूचियां तुम्हारी खीज कर !
शोक में रहता कभी पत्नी को हड़काता हूं मैं :)
तुमको हमारे खून की हर बूँद क्योंकर चाहिए !
तेरे कूंचे में पिटा ,तुझपे मिटा जाता हूं मैं :)
तुमसे पहले रौशनी और उससे पहले थी किरन !
अब तुम्हारा हुस्न है , अंधा हुआ जाता हूं मैं :)
इस माहौल में भी तो, मैं रह नहीं पाता ! १!
हम तुमको न समझे थे ,तो कोई बात नहीं,
तुम्हीं हमको बता देते ,मैं कह नहीं पाता !२ !
एक-एक करके सारी , रुचियाँ बदल गईं ,
कभी चल नहीं पाता,मैं रुक नहीं पाता !३ !
तुम्हारे खून की हर बूँद हमको चाहिए,
खिलाफ़ उठती आवाजें,मैं सह नहीं पाता !४ !
रोशनी की हर किरन ,मेरे इशारों पर,
आँधी की आहट को,मैं सुन नहीं पाता !५ !
इस वक़्त को बाँधा हुआ है हाथ से,
सोते हुए ये सोचता हूँ,मैं जग नहीं पाता !६ !
ये देखिये,अपने अली साहब का अलग रंग....पैरोडी के रूप में !
शायरे उल्फत हूं मैं ,जब इश्क फरमाता हूं मैं !
लिख नहीं पाता कभी खामोश रह जाता हूं मैं :)
मैं तुम्हें समझी नहीं ये कह निकल लेती हो तुम !
क्या बताऊँ किस कदर खुद ही पे झुंझलाता हूं मैं :)
देख कर बदली हुई रूचियां तुम्हारी खीज कर !
शोक में रहता कभी पत्नी को हड़काता हूं मैं :)
तुमको हमारे खून की हर बूँद क्योंकर चाहिए !
तेरे कूंचे में पिटा ,तुझपे मिटा जाता हूं मैं :)
तुमसे पहले रौशनी और उससे पहले थी किरन !
अब तुम्हारा हुस्न है , अंधा हुआ जाता हूं मैं :)
कत्ल भी करते हो और कहते हो कि मुझे कुछ पता नहीं
जवाब देंहटाएं@ पूरा जो पढ़ा ...
जवाब देंहटाएंलिख नहीं पाता
कह नहीं पाता
रह नहीं पाता
समझ नहीं पाता
चल नहीं पाता
रुक नहीं पाता
सह नहीं पाता
सुन नहीं पाता
जग नहीं पाता ( मतलब सो पाते हैं )
@ पढकर जो समझा ...
पा लेने के अतिरेक के बाद यानि कि प्राप्तियों का कोटा फुल हो जाने के बाद , अपने स्व में 'पाना' समा पाने की संभावना शून्य हो जाती है इसलिए देना शुरू करिये , दाता बनिये ,जो पहले पा चुके हैं उसे खर्च कीजिये तभी और अधिक पाने की जगह बनेगी :)
@ और ज्यादा जो समझा ...
सो पाना तो अच्छे अच्छों को मयस्सर नहीं है ,इसलिए इसे आपकी उपलब्धि मान रहा हूं :)
@ और और ज्यादा जो समझा तो पर टिपियाना मुहाल है...
आखिर ये चक्कर क्या है ?
गजब का लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंकितने ये जुल्म नन्ही सी जान पर हैं :(
जवाब देंहटाएंसंभलिये क़िबला ....खून खच्चर न करिए!
हम भी यही पूछते हैं आखिर ये माजरा क्या है? क्यों इतनी उदास है रचना :)
अली जी की टिप्पणी पढ़कर सर घूम रहा है । इसलिए अभी तो मैं भी कुछ कह नहीं पाता ।
जवाब देंहटाएंफिर सोचते हैं कि क्या कहें ।
कभी कभी कवि ऐसे मूड में होता है अली सा...
जवाब देंहटाएंआपके चक्कर से तो डा0साहब का भी सर घूम रहा है!
रोशनी की हर किरन ,मेरे इशारों पर,
जवाब देंहटाएंआँधी की आहट को,मैं सुन नहीं पाता !४ !
इस वक़्त को बाँधा हुआ है हाथ से,
सोते हुए ये सोचता हूँ,मैं जग नहीं पाता !६ !
सच में निशब्द करते शब्द ..... शायद ऐसा ही हम सब सोचते हैं ...आपने शब्दों में ढाला ....
लगता है जुल्मी भी आसपास है ...
जवाब देंहटाएं:-))
शुभकामनायें आपको !
क्या हाल बना रखा है। कुछ लेते क्यों नहीं?
जवाब देंहटाएंअब यह मत कहना -लेना तो है कुछ, ले नहीं पता!
@ देवेन्द्र पाण्डेय जी और डाक्टर दराल साहब ,
जवाब देंहटाएंएक पैरोडी सूझ रही है ...
शायरे उल्फत हूं मैं ,जब इश्क फरमाता हूं मैं !
लिख नहीं पाता कभी खामोश रह जाता हूं मैं :)
मैं तुम्हें समझी नहीं ये कह निकल लेती हो तुम !
क्या बताऊँ किस कदर खुद ही पे झुंझलाता हूं मैं :)
देख कर बदली हुई रूचियां तुम्हारी खीज कर !
शोक में रहता कभी पत्नी को हड़काता हूं मैं :)
तुमको हमारे खून की हर बूँद क्योंकर चाहिए !
तेरे कूंचे में पिटा ,तुझपे मिटा जाता हूं मैं :)
तुमसे पहले रौशनी और उससे पहले थी किरन !
अब तुम्हारा हुस्न है , अंधा हुआ जाता हूं मैं :)
हम तुमको न समझे थे ,तो कोई बात नहीं,
जवाब देंहटाएंतुम्हीं हमको बता देते ,मैं कह नहीं पाता !२ !
कह तो दिया ..अब बचा क्या है :)
कश्मकश दिखाई दे रही है इस रचना में
यह क्यों नहीं कहते हैं कि टिप्पणी नहीं मिलती है तो आनंद ही नहीं आता। टिप्पणी न मिलने पर यही हाल हुआ करता है। सच्चाई जानने के लिए सुबह-सुबह ही नुक्कड़ पर घूम आइयेगा। और सुमित प्रताप सिंह के लिए दैनिक जागरण में प्रकाशित गीत के लिए अपने मोबाइल से एक वोट और घर में जितने मोबाइल हों सबसे एक एक वोट।
जवाब देंहटाएंवाह संतोष जी सुंदर रचना है ये आपकी.
जवाब देंहटाएं@ अली साहब !
जवाब देंहटाएंये हाल बयानी कुछ अपनी है ,कुछ सबकी है.मेरे लिए इसकी गाँठ खोलनी ज़रूरी नहीं है,बस इतना समझिए कि कुछ मेरे हालात ,कुछ देश के हालात नज़र आयेंगे इसमें !
आपकी पैरोडी बड़ी अच्छी बन पड़ी है,उसे ऊपर ही चेंप दिया है,बाकी आपने एक ही पक्ष को रखा है,इसलिए भी डॉ. दराल साहब सहित कइयों का सर घूम रहा है !
इतना तो पाए फिर भी उदासी ?:)
जवाब देंहटाएंअली भाई की ग़ज़ल को सलाम !
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी खून-खच्चर हुए बिना क्या कोई क्रांति हुई है ? कभी-कभी रचनाओं से भी क्रांति हो जाती है !!
जवाब देंहटाएं@ डॉ.दराल डॉक्टरी-नुस्खों से यह चक्कर बंद भी नहीं होंगे,अली साब की तरह रस पियो !
@ देवेन्द्र जी कभी-कभी कवि भी क्रांति के मूड में होता है !
@ प्रवीण पाण्डेय जी जी गज़ब लग रहा है या अजब ?
जवाब देंहटाएं@ सतीश सक्सेना जी जुल्मी आपके और हमारे ,सबके आसपास है !
@ अनूप शुक्ल जी लेने में भी कई राइडर्स लगे होते हैं क्या ?
अली सा , तुस्सी ग्रेट हो बॉस ।
जवाब देंहटाएंएक-एक करके सारी , रुचियाँ बदल गईं ,
कभी चल नहीं पाता,मैं रुक नहीं पाता !५ !
घूमने की नई रूचि अच्छी है। कनाट प्लेस में फ़ूड फेस्टिवल में होकर आओ --खाने को भी मिलेगा और पीने को भी--सभी तरह के रस । :)
वाह! अली सा..
जवाब देंहटाएंकिसी पोस्ट को पढ़ो तो ऐसे पढ़ो..!शानदार ब्लॉगिंग..जानदार पैरोडी।
तुमसे पहले रौशनी और उससे पहले थी किरन !
अब तुम्हारा हुस्न है , अंधा हुआ जाता हूं मैं :)
इसका जवाब नहीं। वैसे किसी ने कुछ ऐसा ही कहा है....
मैं बांस हुँ
तुम्हारी बांसुरी बन सकता था
हाय री किस्मत
जबसे शादी हुई
तुम्हारे चूल्हे में जल रहा हूँ।
खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
terahsatrah.blogspot.com
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबधाई....
@ अली साहब
जवाब देंहटाएंआपने असल शायरी की है,हमने तो थोड़ी गुफ्तगू की थी !
आपका शुक्रगुज़ार हूँ !
@ देवेन्द्र पाण्डेय मुरीद हो तो कोई आपस,अली साब धन्य हो गए !
एक-एक करके सारी , रुचियाँ बदल गईं ,
जवाब देंहटाएंकभी चल नहीं पाता,मैं रुक नहीं पाता !३ !
वाह ... इस लाजवाब गज़ल का खूबसूरत शेर है ये ... औत टिप्पणियों की गजलें भी कमाल कर रही हैं ... क्या कहने इस जुगलबंदी के ...
प्रयास सराहनीय है. भाव और गहरे होते तो ज्यादा अच्छा होता.
जवाब देंहटाएंहम चलें या रुकें, वक़्त तो रुकता नहीं। जवाबी शायरी भी लाजवाब रही (विरोधाभास?)
जवाब देंहटाएं@ संतोष पाण्डेय जी आपकी सलाह काबिल-ए-गौर है,पर अपनी गहरी की एक सीमा है !
जवाब देंहटाएं@ अनुराग शर्माजी आजकल जवाब उल्टे ही मिल रहे हैं !
कर ना पाने की टीस!!
जवाब देंहटाएंRx
गजल <:
रुबाई <:
आशनाई <:
चाशनाई <:
अब कितनी डोज लोहे महाराज?
*लोहे= लोगे
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