कई दिनों से मन उचाट-सा है.विषय बहुत हैं लिखने को पर लगता है जो 'तड़प' है उसमें कहीं कुछ कमी आ गयी है.ऐसा क्यों होता है अब? पहले पढने से मन विरत हुआ और अब लिखने से ! यह निरा काहिलपना नहीं तो क्या है ? किताबें लेना ,उन्हें निहारना और खरीदना मुझे अब भी अच्छा लगता है,पर उन किताबों में भी उसी तरह धूल ठहरी हुई है जैसे मेरे दिमाग में !
फिर भी ,प्रवीण पाण्डेय की यह पोस्ट पढ़कर करीब दस साल बाद दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी गया और पुनः सदस्य बना.अज्ञेयजी की आत्मकथा 'शेखर एक जीवनी' पढने की इच्छा बहुत दिनों से थी,पर वह उस समय वहाँ भी न मिली.अचानक हिंदी के प्रसिद्द आलोचक राम विलास शर्मा की आत्मकथा 'अपनी धरती अपने लोग' दिखाई दी और मैंने उसे तुरत लपक लिया .यह तीन खण्डों में है जिसका शुरूआती भाग अभी पढ़ रहा हूँ.शर्माजी हमारे बैसवारा के ही रहने वाले थे ,इसलिए इसमें अतिरिक्त दिलचस्पी हुई.वास्तव में बेहद रोचक और देसज-शब्दों की प्रचुरता लिए हुए यह पुस्तक बहुत रुचिकर लग रही है .इसके बारे में फिर कभी विस्तार से !
इस बीच मेरे परम सुह्रद डॉ.अरविन्द मिश्र कई बार मुझे नई पोस्ट के लिए प्रेरित कर रहे थे,मुझे अपना लेखकीय-धर्म याद दिला रहे थे,सो अपने मन को सान पर चढ़ाकर पैना करने की कोशिश में जुट गया ! पुरानी डायरियों के पन्ने उलटे,तो कई रचनाएँ आज मुझे बड़ी हलकी लगीं,फिर भी झाड़-पोंछकर जो बच रहा ,वह आपके रूबरू है !
आ जाओ तुम
साँस आखिरी,आस आख़िरी,
आ जाओ तुम ,सलाम आख़िरी !
ये निगाहें,तुम्हें ही ताकतीं,
स्याह ज़िन्दगी में,रोशनी -सी झांकती,
थक गया हूँ मैं,इंतज़ार में,
पी रहा हूँ ये, जाम आख़िरी !!
मिल नहीं सके, तो ना सही,
तमन्ना भी अब,और ना रही,
तन की नहीं,प्यास नज़र की,
बुझा जाओ तुम,है काम आख़िरी !!
ज़ुदा जो रहे ,अब तलक मुझसे,
कुछ भी नहीं हैं,शिकवे-गिले तुमसे,
कर रहा हूँ अर्ज़,तसलीम तो करो,
मान जाओ तुम ,है कलाम आख़िरी !!
साँस आखिरी ,आस आख़िरी,
आ जाओ तुम ,सलाम आख़िरी !!
रचना काल : १०/१०/१९८९ ,फतेहपुर
अगर यह बेमतलब लगे तो हमारी पसंद की यह ग़ज़ल तो सुन ही लो ,मुन्नी बेग़म की दिलकश आवाज़ में !
क्या पता कब हो आखिरी, तब तक लगे रहो, दस साल बाद पुस्तकालय जाना हुआ। कैसी लगी सुरेन्द्र शर्मा जी की पुस्तक, मुझे तो बहुत ही प्रेरणा वाली महसूस हुई।
जवाब देंहटाएंदेखिये कैसा अजब संयोग है कि आज ही मैने भी एक नयी पुस्तक पढ़नी प्रारम्भ की है, बहुत दिनों के बाद।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
कल की रिपोर्ट राजघाट की और चित्र कहां समा गए संतोष जी। लाईन तोड़कर पुस्तकों का और लायब्रेरी का खजाना बतलाना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंशाम ही नहीं मेरी सुबहे बनारस चुरवा लिए आप तो ...बड़े जालिम निकले भाई ..
जवाब देंहटाएंऔर ये कविता आज की है क्या छिपाने को उसे १९८७ का कह रहे हैं?
कुछ जजबात कालजयी होते हैं -और यह है!मेरा अनुग्रह माना आपने और मेरे ऊपर अनुग्रह किया !
oh
जवाब देंहटाएंaap १०/१०/१९८९ ,फतेहपुर me tanki aarohan program kiyaa kartae they !!!
kamaal haen
aa gaye bhai...........?????
जवाब देंहटाएंitti mast to 'kalam' hai....thora shan-wan chadha kar to dekhiye kitte jan 'kalam' hote hain.......
sadar.
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं@ अविनाश जी गाँधी जयंती में राजघाट में जाकर वहाँ जो पाखंड देखा उसके बाद क्या कहें ? राजघाट में गाँधी को जानने के बजाय कैमरों के फ्लैश अधिक चमकाए जा रहे थे और इसमें हम भी शामिल रहे !
जवाब देंहटाएं@ अरविन्दजी अनुग्रह तो आप कर रहे हैं गुरुवर ! आप बनारस में हैं तो 'अलाय-बलाय' से बचाने की दुआ बाबा विश्वनाथ से करते रहें !
@रचना जी बुढ़ापे में 'टंकी-आरोहण' करना मेरे लिए कठिन है इसलिए मैंने बाईस-तेईस की उमर में ही यह 'धत-करम' कर लिया था !
अच्छी शुरुआत है .....पढ़ते रहिए
जवाब देंहटाएंसुनिए, वे जो हैं ,उनसे कहिये कि वे उतारने की मनुहार गर करें तो कोई भी उम्र छोटी है टंकी पर चढ़ने उतरने के लिए :)
जवाब देंहटाएं@Arvind Mishra अभी मैं 'उदीयमान' हूँ इसलिए यह हिमाक़त नहीं कर सकता और ना ही टंकी में चढ़ने का बूता है अब...कहीं टंकी धंस गई तो..!
जवाब देंहटाएंजी तुम्हारे शेहर का मौसम...
जवाब देंहटाएंअब आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद यहीं कहेंगे, कि जीने नहीं देता.
रामविलास शर्मा जी की आत्मकथा ’अपनी धरती अपने लोग’ बहुत अच्छी किताब है। अक्सर इसको बार-बार पढ़ते रहते हैं। :)
जवाब देंहटाएंकविता कविता जैसी है। उसके बारे में क्या कहा जाये! लेकिन जवानी में इतनी निराशा शोभा नहीं देती। :)
आपकी पसंद की गजल सुनी नहीं काहे से उसको सुनने की कंडीशन पूरी नहीं हो पायी (अगर यह बेमतलब लगे तो हमारी पसंद की यह ग़ज़ल तो सुन ही लो )!
@ अनूप जी आप को हमारी जवानी की खुराफ़ात अच्छी लगी, इसका आभार ! अब हम तो बुढापे में ग़ज़ल सुनकर ही गुजारा कर रहे हैं ! वैसे आपने ज़रूर चुपके से यह ग़ज़ल सुनी होगी !
जवाब देंहटाएंफतेहपुरी काव्य पसन्द आया।
जवाब देंहटाएंहम नहीं कहेंगे कि यह हमरा है कमेन्ट आख़िरी !
जवाब देंहटाएंजय जय ......मन का क्या ....उचट गया तो उचट गया!
लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंमन से या बेमन से।