1 मार्च 2013

खत,जो कभी पहुँच नहीं पाए !(२)

जब भी कक्षा में मास्टर जी नहीं होते,मुझे अच्छा नहीं लगता था.ऐसा पढ़ाई न होने के कारण बिलकुल नहीं था.दरअसल ,खाली कक्षा होने पर मेरे साथी मुझे घेरे रहते और मैं तुम पर अपना ध्यान फोकस नहीं कर पाता .उस बीच  मैं किसी तरह से तुम्हें देखने की कोशिश करता तो साथी चिढ़ाने लगते और मैं उन्हें समझाने का असफल प्रयास करता.तुम तब भी किताब के पन्नों में गुम रहती और इस बात से बिलकुल अनजान कि कोई तुम में गुम है.मास्टरजी के कक्षा में आने पर मेरी जान में जान आती .इधर वो पढाना शुरू करते और मैं तुम्हें एकटक देखने लग जाता.

तुम्हें देखते हुए मुझे यह भी याद नहीं रहता कि किसी और की नज़र मुझ पर है.बाद में पता चला कि वह तुम्हारी सहेली थी जो मेरी ऐसी गतिविधि पर नज़र रखती थी,जिसकी वास्तव में मुझ पर नज़र थी.मगर तुम्हारे हुस्न के समंदर में मैं इस क़दर डूब चुका था कि मुझे नदी-नालों और किनारों की परवाह नहीं थी.दिन-भर में एक-दो बार भी मेरी नज़रें तुमसे मिल जाती तो मेरा दिन सुफल हो जाता था.मेरी खुशी तब और बढ़ जाती,जब हमारी नज़रें मिलने पर तुम्हारे चेहरे की हँसी पहले से अधिक चौड़ी हो जाती.

मेरा घर भी तुम्हारे घर से बहुत दूर नहीं था,पर अमूमन मैं उधर जाता नहीं था.मेरे पिताजी बहुत सख्त मिजाज थे,इसलिए किसी प्रकार के जोखिम लेने की हिम्मत नहीं थी मेरी .कभी-कभार यदि उधर की तरफ़ का कोई काम निकल आता तो कोशिश करके मैं ही जाता.जानबूझकर मैं तुम्हारे घर के सामने से साइकिल पर निकलता कि शायद तुम दरवाजे पर मिल जाओ,पर अकसर मैं मुँह की खाता और तुम आस-पास दिखाई भी नहीं देती.एक बार तो इसी देखा-देखी में मेरी साइकिल एक खूंटे से टकरा गई और मैं मुँह के बल गिरा.गनीमत रही कि तुमने उस वक्त मुझे नहीं देखा था.उस समय ज़मीन से उठने की मेरी फुर्ती देखने लायक थी.


कक्षा में मेरे लिए वे क्षण सबसे रोमांचित करने वाले थे,जब तुम कभी मेरे पास से गुजरती और हौले से मेरे सिर पर धप्प से एक धौल जमा देती.मुझे पक्का पता था कि ऐसा तुम तभी करती थी जब मेरे आस-पास दोस्तों का गैंग नहीं होता था.हालाँकि तुम्हें धौल ज़माने का साहस मुझ में कभी नहीं आया .तुमसे करीब होने की यही सबसे बड़ी और इकलौती उपलब्धि रही.तुम्हारे सांवले-सलोने रंग ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि बाद के वर्षों में मेरे जेहन में यही शेर कौंधता रहता ,
'जब भी देखता हूँ कोई सांवली-सी सूरत,तुम्हारा ही अक्स ,उसमें नज़र आता है.'

सामान्यतः तुम मुझसे नज़रें मिलाने से बचती थीं.एक-दो बार ऐसा भी हुआ कि तुम अपनी सहेलियों के साथ जिस जगह से गुजरती,मैं अपने दोस्तों के साथ खड़ा होता.उस वक्त तुम्हारी नज़रें ज़मीन पर होतीं और मैं सोचता कि तुम नाराज़ हो या तुम्हारी अदा है.इस बात पर मैं दोस्तों को एक शेर भी सुनाता था;
'देखा जब भी आपको,नज़रें झुकी मिलीं,जाने खफ़ा हैं मुझसे ,या फ़िर अदा है आपकी '

तुमने मुझे अपना प्रेमी बनाया था या एक नाकाम  शायर ?

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह.. और लाइए.. और पढ़ाइये!

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  2. मुझी को सब ये कहते है,कि रख नीची नजर अपनी,
    कोई उनको नही कहता,न निकलो यूँ अयाँ होकर,,,
    (अकबर इलाहाबादी)

    RECENT POST: पिता.

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  3. संतोष जी पुराने प्‍यार का बुखार मीठा दर्द दे रहा लगता है। बहुत एकाकार हो उल्‍लेख किया है। बहुत प्रेममय।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. लगता है लिख जायगी, उपन्यास दमदार |
      रॉयल्टी कैसे बंटे, सब ना लेना मार |
      सब ना लेना मार, बराबर का हिस्सा है |
      एक अकेला नहीं, युगल युग का किस्सा है |
      नाले नदी कगार, प्यार अब भी है जगता |
      रविकर जी हलकान, उन्हें अच्छा ना लगता ||

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  5. एक और शख्श ने अपनी प्रेमकथा को तफसील से बयान किया था और वह फ्लाप हो गयी।।।
    इश्वर आप वाली को बुलंदी दे !

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  6. आप डुबाते जा रहे हैं, हम डूबते जा रहे हैं।

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  7. प्रेमी या शायर ... पर ये यादें कहाँ ले आई हैं आपको ...
    मस्त ... हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले जाएंगे ... आप भी अपने साथ सभी को ले जा रहे अहिं इस यादों में ...

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