राम हमारे जीवन के आधार रहे हैं.वे हमारी जीवन-शैली और संस्कृति के अंग हैं.शिव एक सर्वकालिक अभिभावक की तरह हमारी रक्षा करते हैं.ये हमारे आर्त-क्षणों में सहायक होते हैं.हमारे ध्यान में शिव चाहे हमेशा न रहें पर उनकी चिंताओं में हम हमेशा रहते हैं.शिव बिना देरी किये प्रार्थना सुनते ही तत्काल निदान करते हैं.इसलिए राम और शिव अलग हैं ही नहीं.बस दोनों की भूमिकाएं अलग हैं.
सामान्यतः हमारे अंतर्मन में राम की ऐसी छवि बसती है जो हमें सहज मानव बनाती है.वह मानव सहिष्णु होता है,जीवन और पारिवारिक संबंधों को समझता और मानता है.राम को मानने वाला किसी से द्रोह नहीं करता.वह अपने ऊपर किये गए प्रहारों को भी शमन करता है.वह अपने जीवन से कहीं अधिक संबंधों को प्राथमिकता देता है.राम इस तरह मानव को जीवनपर्यंत गढ़ते हैं.
शिव का सामान्य अर्थ कल्याणकारी होता है,सबका भला करने वाला.वे वास्तव में हमारे लिए आपदा-प्रबंधन की तरह हैं.जिस तरह बच्चा भले ही पिता के साथ खेले-कूदे पर चोट लगते ही वह माँ को पुकारता है,उसी तरह शिव संकट-काल में हमें याद आते हैं.यहाँ पिता की भूमिका राम जैसी मानी जा सकती है.शिव अपने बालक की सहायता के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं.इसलिए हम जीवन के सबसे आर्त-क्षणों में उन्हें ही याद करते हैं और वे अपने नाम 'आशुतोष ' और 'अवढरदानी' को सार्थक करते हैं.
यहाँ राम और शिव के साथ सीता और सती या पार्वती का अलग से नामोल्लेख आवश्यक नहीं है.वे दोनों आदि-शक्तियाँ हैं और राम तथा शिव का अस्तित्व उनसे अलग नहीं है.यह साधारण मानवों का ही स्वभाव है कि वे हर बात को लिंग और धर्म के दृष्टिकोण से देखते हैं.इसलिए ऐसे तर्क करने वाले पूरा जीवन इसी में गुजार देते हैं और अंत समय में ,उन्हें ईश्वरीय सत्ता व प्रार्थना का महत्व समझ में आता है.एक ईश्वर ही है जिसे पाने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती.वह आपका आत्म-बल ही होता है.
राम या शिव ऐसे भी नहीं हैं कि जो उन्हें नहीं मानते,उन पर कुपित होते हों.यदि ऐसे लोग सहज मानवीय-गुणों से युक्त जीवन जी रहे हैं तो वास्तव में पूजा-पाठ की आवश्यकता भी नहीं है.ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि हम शंख बजाएं,पूजा-पाठ करें और हमारे कर्म निम्न हों,तब राम और शिव क्या,हमारी सहायता कोई नहीं कर सकता है.
रही बात आसुरी-प्रवृत्तियों की,तो वे सतयुग,त्रेता और द्वापर में भी रही हैं.हाँ,तब इनकी संख्या कहीं कम थी.युग-प्रभाव के चलते कलियुग में सबसे बड़े ख़तरे हैं.फ़िर भी,राम को अपनी जीवन-शैली में ढालकर और शिव को अपना अभिभावक बनाकर ऐसी प्रवृत्तियों से बचा जा सकता है.उनकी महत्ता बताने से न बढ़ती है और न ही घटती !
सामान्यतः हमारे अंतर्मन में राम की ऐसी छवि बसती है जो हमें सहज मानव बनाती है.वह मानव सहिष्णु होता है,जीवन और पारिवारिक संबंधों को समझता और मानता है.राम को मानने वाला किसी से द्रोह नहीं करता.वह अपने ऊपर किये गए प्रहारों को भी शमन करता है.वह अपने जीवन से कहीं अधिक संबंधों को प्राथमिकता देता है.राम इस तरह मानव को जीवनपर्यंत गढ़ते हैं.
शिव का सामान्य अर्थ कल्याणकारी होता है,सबका भला करने वाला.वे वास्तव में हमारे लिए आपदा-प्रबंधन की तरह हैं.जिस तरह बच्चा भले ही पिता के साथ खेले-कूदे पर चोट लगते ही वह माँ को पुकारता है,उसी तरह शिव संकट-काल में हमें याद आते हैं.यहाँ पिता की भूमिका राम जैसी मानी जा सकती है.शिव अपने बालक की सहायता के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं.इसलिए हम जीवन के सबसे आर्त-क्षणों में उन्हें ही याद करते हैं और वे अपने नाम 'आशुतोष ' और 'अवढरदानी' को सार्थक करते हैं.
यहाँ राम और शिव के साथ सीता और सती या पार्वती का अलग से नामोल्लेख आवश्यक नहीं है.वे दोनों आदि-शक्तियाँ हैं और राम तथा शिव का अस्तित्व उनसे अलग नहीं है.यह साधारण मानवों का ही स्वभाव है कि वे हर बात को लिंग और धर्म के दृष्टिकोण से देखते हैं.इसलिए ऐसे तर्क करने वाले पूरा जीवन इसी में गुजार देते हैं और अंत समय में ,उन्हें ईश्वरीय सत्ता व प्रार्थना का महत्व समझ में आता है.एक ईश्वर ही है जिसे पाने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती.वह आपका आत्म-बल ही होता है.
राम या शिव ऐसे भी नहीं हैं कि जो उन्हें नहीं मानते,उन पर कुपित होते हों.यदि ऐसे लोग सहज मानवीय-गुणों से युक्त जीवन जी रहे हैं तो वास्तव में पूजा-पाठ की आवश्यकता भी नहीं है.ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि हम शंख बजाएं,पूजा-पाठ करें और हमारे कर्म निम्न हों,तब राम और शिव क्या,हमारी सहायता कोई नहीं कर सकता है.
रही बात आसुरी-प्रवृत्तियों की,तो वे सतयुग,त्रेता और द्वापर में भी रही हैं.हाँ,तब इनकी संख्या कहीं कम थी.युग-प्रभाव के चलते कलियुग में सबसे बड़े ख़तरे हैं.फ़िर भी,राम को अपनी जीवन-शैली में ढालकर और शिव को अपना अभिभावक बनाकर ऐसी प्रवृत्तियों से बचा जा सकता है.उनकी महत्ता बताने से न बढ़ती है और न ही घटती !
हर-हर बम-बम, हर-हर बम-बम
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत और ज्ञानवर्धक
जवाब देंहटाएंआभार
."महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें" आभार मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ . ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
जवाब देंहटाएंफक्कड़ी और आवारगी सीखनी हो तो कैलाश मानसरोवर चलना होगा, जब बाबा भोलेनाथ।
जवाब देंहटाएंशिव की अनुकम्पा आप पर बनी रहे
जवाब देंहटाएंसद्वचन। सत्यवचन।
जवाब देंहटाएंशिव कृपा का आशीर्वाद आपको गुरु से मिल गया ..बधाई !
जवाब देंहटाएंमंगल कामनाएं आपके लिए !
सुंदर पोस्ट...भोले बाबा को नमन
जवाब देंहटाएंसंभवत: सभी देवी देवता प्रतीक हैं जीवन के किसी न किसी पक्ष के...
जवाब देंहटाएंएक ईश्वर ही है जिसे पाने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती.वह आपका आत्म-बल ही होता है...........तत्वज्ञान प्रदान करने के लिए धन्यवाद। महाशिवरात्रि की अनेकों मंगलकामनाएं। (सदा वसंत ह्रदयारविंदे भव भवामि सहितं नमामि) की जय हो।
जवाब देंहटाएंजय हो..
जवाब देंहटाएंउनकी महत्ता ना बढाने से बढती है , ना घटाने से घटती है !
जवाब देंहटाएंसनातन सत्य !
जय भोले बाबा की ...
जवाब देंहटाएंसत्य कहा है आपने ...
adutiy
जवाब देंहटाएंजय भोले बाबा की.
जवाब देंहटाएंरामराम.