11 अक्टूबर 2012

प्रार्थना !

हे प्रभु मुझको पार लगा दो,इस जीवन के सागर से |
मैं तो कब से आस लगाये बैठा हूँ,नट नागर से ||

तेरी ही महिमा से जग का
होता है सञ्चालन,
ऊँच-नीच का भेद भुलाकर
करते सबका पालन,

कर दो कृपा-दृष्टि ऐ भगवन !अभयस्वरुपी वर से |
हे प्रभु मुझको पार लगा दो ,इस जीवन के सागर से || 

सारे जग में खेल है तेरा
तू है कुशल मदारी,
खाली झोली भर दो मेरी
हे भोले-भंडारी,

मुक्ति दिला दो हे प्रलयंकर!इस शरीर-नश्वर से |
हे प्रभु मुझको पार लगा दो,इस जीवन के सागर से ||


रचनाकाल:०८/०९/१९९०,फतेहपुर
 

13 टिप्‍पणियां:

  1. त्रिवेदी जी के पीछे मैं भी हूँ प्रभु ...

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  2. यूँ मुक्ति नहीं मिलती......
    संसार खाली न हो जाएगा....
    जिए जाइए.......
    :-)

    वैसे रचना सुन्दर है...
    सादर
    अनु

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,संतोस जी,,

    पाप-पुण्य जो किये है अब-तक,जीवन का बैभव भोगा
    जब-तक जीवन लिखा प्रभू ने,तब-तक तो जीना होगा,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  4. उम्दा अभिव्यक्ति के साथ सुंदर प्रार्थना |

    नई पोस्ट:- ओ कलम !!

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  5. स्तुति सुंदर है ...पर छुटकारा तो अपने समय पर ही मिलेगा ।

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  6. सबकी यही प्रार्थना है.. देखें किसकी सुनते हैं प्रभो! :)

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  7. @ हद तो है ही, वैराग्य तो 1990 में उत्पन्न हो चुका था। पता नहीं क्या बात हुई? कृपा करो हे कृपानिधान!!

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  8. खूबसूरत शब्द संयोजन सुन्दर रचना |

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