22 सितंबर 2011

हमने तो बस गरल पिया है !

तुमने जो संताप दिए हैं,
हमने तो चुपचाप सहे हैं,
जब हमने पत्थर खाए हैं,
तुमने केवल रास किया है,
हमने तो बस गरल पिया है  !१!


मुझे नहीं दुःख ,नहीं मिले तुम,
आत्मा के भी होंठ सिले तुम,
मौन तुम्हारा तुम्हें डसेगा,
तुमने केवल हास किया है,
हमने तो बस गरल पिया है !२!


मैं तो वैसे भी जी लूँगा,
अमिय समझकर विष पी लूँगा,
तुमने जो विष-बेल उगाई,
जग को भी संत्रास दिया है,
हमने तो बस गरल पिया है  !३!


मैं दीप जलाता फिरता हूँ,
दुःख नहीं कि मैं भी जलता हूँ,
देखो,समय बनेगा  साक्षी,
तुमने  कलुषित  इतिहास  किया है,
हमने तो बस गरल पिया है  !४!


हमको  गैरों से आस न थी,
तुमसे भी कोई फांस न थी, 
पर स्वांग देखने के आदी तुम,
कैसा  ये खेल ? निराश किया है  !
हमने तो बस गरल पिया है  !५!


तुमने  झील के उथलेपन में 
ही अपने को डुबो दिया,
यह अथाह  जलराशि छोड़कर 
अपने सुख का ह्रास किया है,
हमने तो बस गरल पिया है  !६ !

31 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! और क्या-क्या इरादे हैं अभी। :)

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  2. अति सुन्दर
    सचमुच वर्तमान का सचित्र चित्रण का दिया, जिवंत। आभार।

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  3. बहुत खूबसूरत कविता ...बधाई!
    कीचड से कमल की बेलें निकल आती हैं पुनः प्रमाणित
    आपने उथले झील का संकेत भी दे दिया है ..
    अन्यत्र एक जगहं नयी कहानी की प्रस्तावना किंवा अनुष्ठान भी है -
    और झील सूख गयी ..उथला तो आपने बना दिया ही दिया था ..
    मुला झील सूखेगी तो इस कमलवत (पांडु वाला कँवल ) रचना का क्या
    होगा?बस यही चिंतनीय है:)
    ॐ शान्ति ॐ शान्ति शान्ति शान्ति .....

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  4. @काजल कुमार,
    बजा फ़रमाया हुजूर.. सच है कितन फर्क है इस सुन्दर रचना और उस संसृति की रचना का
    प्रकृति भी कैसे कैसे परिहास करती रहती है :(

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  5. गीत बढ़ियाँ है। लीरिकल!
    .
    एक फिलिम का टाइटिल याद आ रहा है, ‘जाने भी दो यारों’ !!

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  6. अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |

    शुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||


    तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?

    छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||

    चर्चा-मंच : 646

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. जहाँ गरल जीवनशैली हो,
    वहाँ सरल सब लगने लगता।

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  8. सामने वाला जिसे सुनाना चाह रहे हो, गर वो भी यही सोच रहा हो तो ... वैसे गरल सब पीते हैं, कोई चखते हैं, कोई भर भर गिलास पीते हैं, लगाते हैं लोटे से भी मुंह और बाल्‍टी से भी ओंठ सटा लेते हैं। उनका जिक्र न करके, आपने उन्‍हें जरूर दुखी किया है। चाहे गरल पिया है, ठोस पिया है या तरल पिया है। लेकिन पिया है फिर क्‍यों नहीं लागा जिया है संतोष भाई।

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  9. गरल पीना आसान कार्य नहीं और गरल पीने की इच्छाशक्ति को धारण कर लेना शिव को धारण करने के सामान है,अच्छी अभिव्यक्ति !

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  10. बहुत खूब ... जीवन में अक्सर गरल पीना पढता है बहुत बार ... पर पीते हुवे शिव सा रहना आसान नहीं होता ... सुन्दर रचना ...

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  11. @ अनूप शुक्लजी चलो,पूछेव तो कुछु ! और हाँ,'अभी से हम क्या बताएं ,क्या हमारे दिल में है ?'

    @अरविन्द मिश्र आपने मेरा दर्द ,सबका दर्द बनाया,आभार !वैसे आप तो गरल को सरलता से कंठ में उतार लेने वाले बाबा विश्वनाथ की नगरी से हैं तो आप भी थोड़ा अभ्यास कर लें,फ़ायदा मिलेगा !

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  12. भाई काजलजी, रविकरजी,प्रवीण पाण्डेय जी ,अमरेन्द्र जी ,अरुण साथी जी,अविनाशजी,रवीन्द्रजी,अनुराग जी,नासवाजी और देवेन्द्र जी का हार्दिक आभार ! अपना अनुराग बनाए रहें !

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  13. मैं दीप जलाता फिरता हूँ,
    दुःख नहीं कि मैं भी जलता हूँ,
    बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई

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  14. बहुत खुबसूरत गीत |

    मेरे ब्लॉग में भी आयें-

    **मेरी कविता**

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  15. मैं तो वैसे भी जी लूँगा,
    अमिय समझकर विष पी लूँगा,
    तुमने जो विष-बेल उगाई,
    जग को भी संत्रास दिया है,
    हमने तो बस गरल पिया है !३!

    बहुत प्यारी रचना ....
    व्यथित दिल की गहराई से निकले शब्द अपना प्रभाव उतना ही गहरा छोड़ने में कामयाब हैं !
    शुभकामनायें आपको !

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  16. जीवन में अनेक मोड आते हैं ....जहाँ पीना ही पड़ता है गरल!

    पर गरल तो गरल ........हो सके ....तो बार बार इसे पीने और पिलाने से बचिए भैये! हालाँकि तुलनात्मकता हमेशा ही आपको इस स्थिति में ला खडा करे......ऐसा मैं नहीं मानता| ज्यादातर अपेक्षाओं के चलते हमाप ऐसे मोडों पर आ खड़े हुआ करते हैं .......तो भैया चलते चलते आप से कह रहा हूँ कि ज़रा खूबसूरत मोडों पर ही रुका करें !

    जय जय !!!

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  17. मैं दीप जलाता फिरता हूँ,
    दुःख नहीं कि मैं भी जलता हूँ,
    देखो,समय बनेगा साक्षी,
    तुमने कलुषित इतिहास किया है,
    हमने तो बस गरल पिया है !४!

    बहुत सुन्दर !

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  18. सुंदर भाव..
    बेहतरीन कविता.
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

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  19. बहुत बेहतरीन....पढ़कर पॉडकास्ट भी लगाओ भाई...

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  20. रचना का प्रवाह और अर्थ आकर्षित करता है।

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  21. @उड़नतश्तरी आभार आपका ! पॉडकास्ट मैंने कभी लगाया नहीं,यदि आप गा सकें तो अवश्य लगा दूँगा !

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  22. शर्बत छोड़...गरल पीना हर एक के बस की बात नहीं...
    बढ़िया...सुन्दर एवं टिकाऊ रचना

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  23. बहुत सुन्दर लगा ! शानदार प्रस्तुती!
    दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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