मैं शक्ति हूँ !
मुझमें अपार ऊर्जा समाहित है
असीमित संसाधन हैं मेरे पास
हर अस्त्र से सुसज्जित हूँ मैं
हर वार का प्रत्युत्तर हूँ !
मेरी शक्तियाँ अखंड और प्रचंड हैं
मैं निरंतर और सनातन हूँ !
संविधान द्वारा प्रदत्त
सारी शक्तियाँ मेरी हैं
मैं ही संघ हूँ,गण हूँ,तंत्र हूँ !
किसी और संघ का निषेध है मेरे रहते
अपने आप में अद्वितीय हूँ,अविकल्प
हूँ
हर किसी से गुरुतर हूँ !
मैं गाँधी हूँ,जेपी हूँ
आदर्श हूँ,परिपाटी हूँ !
महात्मा और दुरात्मा की
पहचान है मुझमें,
किसको पाठ पढ़ाना है
किसको गले लगाना है,
इसके लिए खुली आँख से देखता हूँ
फिर बंद कर लेता हूँ !
शिव का तीसरा नेत्र
जब चाहूं खोल सकता हूँ,
जनतंत्र और सभ्य-समाज को
सच्चा जीवन-दर्शन देता हूँ !
कुछ आसुरी प्रवृत्तियाँ
हर युग में होती हैं,
इसीलिए शक्ति का अवतार
सुनिश्चित कर रखा है मैंने ,
अस्तु मैं निर्भय हूँ !
मैं सर्वत्र हूँ,सदा हूँ
मैं ईश्वर हूँ,ख़ुदा हूँ !
अनादिकाल से प्रवाहित हूँ मैं
अथाह हूँ,प्रशांत हूँ !
इसलिए निशंक रहो,
मेरी सत्ता अक्षुण है,
अपराजेय है,चिरकालिक है
मैं विध्वंश हूँ,महाकाल हूँ !
हुँकार हूँ,ललकार हूँ मैं,
हुँकार हूँ,ललकार हूँ मैं,
प्रतिशोध हूँ,अधिकार हूँ !
मैं शक्ति हूँ !
मुझमें भक्ति रखो
असीमित सुख भोगोगे ,मोदक खाओगे !
भटकोगे तो त्रस्त और संताप मिलेगा,
हर अपराध तुम्हारे माथे होगा,
हर सुख से तुम वंचित होगे !
मैं समय हूँ,सत्य हूँ
शक्ति हूँ !!
जौने मुद्दे से ओत-प्रोत होइके आप कबिता लिखे हैं, काल्हि कुछ खीझ निकारे रहेन ::
जवाब देंहटाएं“जब बैठे मुद्दा मिलि जाय,
हुँकरै कै ढर्रा होइ जाय,
सबै बिद्धिजीवी होइ जाय ,
जनता ‘आहि राम’ चिल्लाय,
ज्ञानी कलम डोलाये जाय,
नाता सबसे टूटा जाय,
या तौ झूठै बक्कत जाय,
बेहतर अहै चुपै रहि जाय
................पुँपुवाने से पीर न जाय!!”
रही बात सक्ती कै, तौ प्रभुता पाइ कासु मद नाहीं !!
इतना सब होने पर भी शक्ति को मियां मिट्ठू बनने की क्या जरूरत आन पड़ी।
जवाब देंहटाएंसाँस भर कर सोचता हूँ,शक्ति मैं हूँ।
जवाब देंहटाएंआँख भर कर सोचता हूँ, भक्ति मैं हूँ।
सार्थक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति........
जवाब देंहटाएंमैं अन्ना हूँ -इस ओज और प्रवाहमयी कविता परायण में यह भाव उद्घोषित होता रहा !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर - सत्य मेव जयते !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी संतोष जी ... सच अहि की सभी कुछ अंदर है अपने अंतस में बस पहचानने की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंजात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
जवाब देंहटाएंलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
शिव का तीसरा नेत्र
जवाब देंहटाएंजब चाहूं खोल सकता हूँ,
जनतंत्र और सभ्य-समाज को
सच्चा जीवन-दर्शन देता हूँ !
कुछ आसुरी प्रवृत्तियाँ
हर युग में होती हैं,
इसीलिए शक्ति का अवतार
सुनिश्चित कर रखा है मैंने ,
अस्तु मैं निर्भय हूँ !
बहुत सशक्त रचना।
.
मैं समय हूँ,सत्य हूँ
जवाब देंहटाएंशक्ति हूँ !!
जबरदस्त!!
यह कविता जबरदस्त है। भाई अमरेंद्र...तुलसी दास जी ने आगे अपनी ही बात को काटा है..भरत।
जवाब देंहटाएंवही... शक्ति भस्मासुर बन रही है .
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