6 सितंबर 2011

मैं शक्ति हूँ !



मैं शक्ति हूँ !

मुझमें अपार ऊर्जा समाहित है
असीमित संसाधन हैं मेरे पास 
हर अस्त्र से सुसज्जित हूँ मैं
हर वार का प्रत्युत्तर हूँ !

मेरी शक्तियाँ अखंड और प्रचंड हैं
मैं निरंतर और सनातन हूँ !
संविधान द्वारा प्रदत्त 
सारी शक्तियाँ मेरी हैं
मैं ही संघ हूँ,गण हूँ,तंत्र हूँ !
किसी और संघ का निषेध है मेरे रहते 
अपने आप में अद्वितीय हूँ,अविकल्प हूँ
हर किसी से गुरुतर हूँ !

मैं गाँधी हूँ,जेपी हूँ
आदर्श हूँ,परिपाटी हूँ !
महात्मा और दुरात्मा की 
पहचान है मुझमें,
किसको पाठ पढ़ाना है 
किसको गले लगाना है,
इसके लिए खुली आँख से देखता हूँ
फिर बंद कर लेता हूँ !

शिव का तीसरा नेत्र 
जब चाहूं खोल सकता हूँ,
जनतंत्र और सभ्य-समाज को
सच्चा जीवन-दर्शन देता हूँ !
कुछ आसुरी प्रवृत्तियाँ 
हर युग में होती हैं,
इसीलिए शक्ति का अवतार 
सुनिश्चित कर रखा है मैंने ,
अस्तु मैं निर्भय हूँ !

मैं सर्वत्र हूँ,सदा हूँ
मैं ईश्वर हूँ,ख़ुदा हूँ !
अनादिकाल से प्रवाहित हूँ मैं
अथाह हूँ,प्रशांत हूँ !
इसलिए निशंक रहो,
मेरी सत्ता अक्षुण है,
अपराजेय है,चिरकालिक है
मैं विध्वंश हूँ,महाकाल हूँ !
हुँकार हूँ,ललकार हूँ मैं,
प्रतिशोध हूँ,अधिकार हूँ !

मैं शक्ति हूँ !
मुझमें भक्ति रखो
असीमित सुख भोगोगे ,मोदक खाओगे !
भटकोगे तो त्रस्त और संताप मिलेगा,
हर अपराध तुम्हारे माथे होगा, 
हर सुख से तुम वंचित होगे !
मैं समय हूँ,सत्य हूँ
शक्ति हूँ !!



13 टिप्‍पणियां:

  1. जौने मुद्दे से ओत-प्रोत होइके आप कबिता लिखे हैं, काल्हि कुछ खीझ निकारे रहेन ::
    “जब बैठे मुद्दा मिलि जाय,
    हुँकरै कै ढर्रा होइ जाय,
    सबै बिद्धिजीवी होइ जाय ,
    जनता ‘आहि राम’ चिल्लाय,
    ज्ञानी कलम डोलाये जाय,
    नाता सबसे टूटा जाय,
    या तौ झूठै बक्कत जाय,
    बेहतर अहै चुपै रहि जाय
    ................पुँपुवाने से पीर न जाय!!”

    रही बात सक्ती कै, तौ प्रभुता पाइ कासु मद नाहीं !!

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  2. इतना सब होने पर भी शक्ति को मियां मिट्ठू बनने की क्‍या जरूरत आन पड़ी।

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  3. साँस भर कर सोचता हूँ,शक्ति मैं हूँ।
    आँख भर कर सोचता हूँ, भक्ति मैं हूँ।

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  4. मैं अन्ना हूँ -इस ओज और प्रवाहमयी कविता परायण में यह भाव उद्घोषित होता रहा !

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  5. बहुत सुन्दर - सत्य मेव जयते !

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  6. बहुत प्रभावी संतोष जी ... सच अहि की सभी कुछ अंदर है अपने अंतस में बस पहचानने की जरूरत है ...

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  7. जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
    लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |

    लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
    सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |

    पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
    चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||

    आइये शुक्रवार को भी --
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. शिव का तीसरा नेत्र
    जब चाहूं खोल सकता हूँ,
    जनतंत्र और सभ्य-समाज को
    सच्चा जीवन-दर्शन देता हूँ !
    कुछ आसुरी प्रवृत्तियाँ
    हर युग में होती हैं,
    इसीलिए शक्ति का अवतार
    सुनिश्चित कर रखा है मैंने ,
    अस्तु मैं निर्भय हूँ !

    बहुत सशक्त रचना।

    .

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  9. मैं समय हूँ,सत्य हूँ
    शक्ति हूँ !!

    जबरदस्त!!

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  10. यह कविता जबरदस्त है। भाई अमरेंद्र...तुलसी दास जी ने आगे अपनी ही बात को काटा है..भरत।

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  11. वही... शक्ति भस्मासुर बन रही है .

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