हमने अपने बचपन में नौटंकी का आनंद खूब लिया था. उत्तर प्रदेश की यह लोकरंजक शैली अब लुप्त प्राय है,पर इसी को फिर से ब्लॉग-लेखन के ज़रिये जिंदा रखने की अद्भुत मिसाल सामने आई है !
ब्लॉग-लेखन में आये हमें अभी ज्यादा अरसा नहीं बीता.आने का उद्देश्य अपने मन के अन्दर के भावों की सहज अभिव्यक्ति और एक छोटा-मोटा झंडा फहराने का शौक था.शुरू किया तो बहुत ज़्यादा उत्साहवर्धक परिणाम नहीं निकले.दो-चार टीपों तक के लिए तरसना पड़ रहा था,जिसमें अभी भी कोई बहुत उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है और न होने की गुंजाइश दिखती है.हमने भी कुछ 'स्वान्तः सुखाय' और कुछ समाज-हित का भरम समझकर लिखते रहे.
अचानक ही जैसे मेरी तन्द्रा भंग हुई और इसमें ब्लॉग-लेखन का ऐसा चेहरा भी दिखाई दिया जो जिसे किसी भी सूरत में ब्लॉगिंग नहीं कहा जा सकता है.मैंने यह ब्लॉग आरोप-प्रत्यारोप या किसी की व्यक्तिगत निंदा के लिए नहीं बनाया था पर पिछले दिनों ब्लॉग-जगत में कुछ ऐसी हरकतें की जा रही हैं जिन्हें न चाहते हुए भी कहना पड़ रहा है क्योंकि लगातार गलत चीज़ों को देखते हुए भी अनजान बने रहना कम से कम किसी रचनाकार का कर्म नहीं है.मुझे बहुत पीड़ा के साथ कुछ तल्ख़ बातें उद्घाटित करनी पड़ रही है ,उम्मीद करता हूँ कि सुधीजन यह विवशता समझेंगे !
ब्लॉग-जगत की लौह-महिला के ब्लॉग पर
यह् पोस्ट पढ़ें और उसमें आई हुई टिप्पणिया देखें तो इस ब्लॉगिंग से ही 'घिन' का भाव पैदा हो जायेगा. वह ब्लॉग 'आत्म-प्रशंसा' का मठ और गाली-गलौज का उत्पादन-केंद्र बन गया है.जी भरकर वरिष्ठ ब्लोगर्स को गरियाया जाता है,पर विरोध करने के लिए यदि आप चाहें तो उसमें सफलता संदिग्ध है क्योंकि यदि उसमें कही गयी बातों से आपकी सहमति नहीं है तो आपकी टीप अस्तित्व में ही नहीं आएगी.'मीठा-मीठा गप्प और कड़वा-कड़वा थू' की तर्ज़ पर माडरेशन का सहारा उस ब्लॉगरा को लेना पड़ता है ,बावजूद इसके कि वह स्व-घोषित लौह-महिला है ! ख़ासकर, इसी पोस्ट में मेरी एक टीप प्रकाशित की गयी और बाद वाली नहीं !
यह सारी पोस्ट एक-आधी अधूरी टीप को लेकर लिखी गयी और इसी बहाने घटिया टीपों को इस पोस्ट में जगह दी गई .डॉ.
अरविन्द मिश्र जी और
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी को नाम लेकर व्यक्तिगत खुंदक निकाली जाने लगी.जिसका मैंने बिलकुल संयत शब्दों में प्रतिवाद किया,पर मेरे अलावा कई अन्य वरिष्ठ ब्लागर्स को बातें कहने से रोका गया और उन के कथित भाई के द्वारा अभद्र टीपें वहां तो की ही गयीं डॉ. मिश्र के ब्लॉग पर भी की गईं.यहाँ चालाकी देखिये कि उस वीर-महिला ने खुद तो माडरेशन लगा रखा है और डॉ. मिश्र के यहाँ नहीं है,जिसका अपने हितों के तईं भरपूर इस्तेमाल किया गया.लेखन से आनन्द की जगह ज़हर फैलाया जा रहा है !
इस पोस्ट से पहले जो पोस्टें लिखी गईं उनमें टीपों के लिखने पर ही खिल्ली उड़ाई गयी,उन्हें
बद्बूदार कहा गया क्योंकि जो टीपें विरुदावली की श्रेणी में नहीं आतीं उनमें से उनको बदबू आती है.लगातार पिछली पोस्टों को देखा जाए तो कहीं भी सार्थकता नहीं है !यह इस बात का प्रमाण है कि उनका लेखन किस दिशा और दशा में है? ब्लॉग-लेखन में टीपों या तंज को इस रूप में परिभाषित किया जा रहा है.नए आदर्श और प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं इसलिए भी मेरा लिखना आवश्यक हो गया ,फिर भी उस असभ्य ढंग से लिखी गई पोस्ट और उस पर की गयी अशालीन टीपों को मैं मैं यहाँ नहीं लगा रहा हूँ,वहीँ पर वह गंदगी रहे ,यही उचित है.
लौह-महिला का दाँव इस पोस्ट के लिखने और उनके तथाकथित भाई द्वारा खूब गरियाने के बाद भी अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने के कारण जब खाली जाता दिखाई दिया तो उन महोदया ने अपने स्त्रीत्व की दुहाई दी और अपने लेख के अंतिम होने की घोषणा कर दी.इस उम्मीद में कि ब्लॉग-जगत में कोहराम मच जायेगा ! पर, हाय ! ऐसा भी न हो सका .इस बीच इसी पोस्ट में 'रक्षाबंधन' का पर्व भी मनाया गया और उनके जाने से 'असहाय' और 'अनाथ' हो जाने वाले चंद लोगों के मान-मनौवल के बाद चंद घंटों बाद ही विधिवत पुनरागमन हुआ ! घोषणा यह होती है कि अब बिलकुल नए अंदाज़ में अवतरण होगा !
हँसी आती है इस आयोजन पर !डॉ. अरविन्द मिश्र ने ऐसे आयोजनों को 'टंकी-आरोहण' का नाम दे रखा है.इसका आशय है कि जब भी अपनी पोस्ट पर टीपों का अभाव होने लगे तो यह फार्मूला 'हिट' है! पर मैं समझता हूँ यह 'टंकी-आरोहण' नहीं पूरी नौटंकी है ! जिसमें ब्लॉग-लेखन के साथ खिलवाड़ किया जाता है.पात्र भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.यह नौटंकी ख़त्म नहीं हुई है,'नई' ऊर्जा के साथ फिर से मण्डली बैठ गयी है और हम नए तमाशे के लिए तैयार रहें !क्या यही ब्लॉग-लेखन का उद्देश्य है ?
इतने पर भी एतराज नहीं है. आप स्वतन्त्र हैं,अपने ब्लॉग पर खूब खेल खेलें पर और यदि किसी से कोई आपत्ति है,जमकर गरियायें मगर यह क्या कि गालियाँ दे-देकर लिहाफ़ में दुबक जाएँ और आपके 'भक्त' आपको यह कहें कि 'लौह-महिला का ख़िताब ऐसे ही नहीं मिला है !'आलोचना सुनने की ताब और माद्दा दोनों होना चाहिए !
अपनी आलोचना से घबराकर न मैं टंकी में चढ़ने जा रहा हूँ और न मैं टेसुए बहाकर सहानुभूति अर्जित करना चाहता हूँ.यदि आपको लगता है कि वास्तव में ब्लॉग-लेखन को हम कहाँ ले जा रहे हैं तो ज़रूर अपनी चिंता,सहमति,असहमति व्यक्त करें और हाँ,मैं बहुत मजबूत और बलशाली तो नहीं हूँ पर मेरा आत्मविश्वास इतना ज़रूर है कि हम अपने ब्लॉग पर माडरेशन का ताला नहीं लगाकर बैठे हैं !शालीन लहजे में तर्कपूर्ण बात या तंज का भरपूर स्वागत है !