अम्मा का प्यार दुलार लिखा,
बप्पा का आसिरवाद छुपा ,
भइया ,भउजी का सनेहु,
बहिनी कै चाहत लिखी सदा ,
हम फूले नहीं समाय रहेन,
हमका मिली गाँव कै मट्टी ।
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।
'बच्चा ,अपने खान-पियन का
ध्यान हमेशा राख्यो ,
ग़लत राह ना कबहूँ पकड्यो
बातै हमरी गांठी बाँध्यो ।
अम्मा आगे लिखवाती हैं
'बच्चा ,तुम बिन होरी बीती ,
तुम रह्यो नहिन मनु लाग नहिन ,
हम दुःख के आंस रहिन पीती,
तुम हमारि आसा बत्ती ,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।
बप्पा हमका समझाय कहेन ,
'आपन काम लगन ते कीन्ह्यो ,
एकु बात अउ समुझि लेव ,
चिट्ठी जल्दी -जल्दी दीन्ह्यो ,
आंबे मा लागि गई अम्बिया खट्टी,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।
भउजी कै बिथा बड़ी भारी
'बच्चा , का भूलि गयो हमका ?
तुम्हरे भइया ते रोजु कहिथ,
जल्दी ते लई आवैं तुमका ।
तुम चले आव पउतै चिट्ठी ।
हमरे घर ते आई चिट्ठी । ।
दल्ली -राजहरा ,छत्तीसगढ़ --31-03-1991
अब तो भौजी गहरे माँ हन तो अब का हाल हन ?
जवाब देंहटाएंअब चिट्ठी का ज़माना तो कब का सरक गया !
लाजवाब...
जवाब देंहटाएंबहुते मार्मिक रहा आपका इ वाला रचना..बस पढ़ते गए और घर की याद आती गई |
मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
आभार..|