23 दिसंबर 2008

नीरज के लिए

जून 1989 में हिन्दी साहित्य-सम्मलेन,कानपुर में कवि 'नीरज' को 'साहित्य-वाचस्पति' सम्मान के लिए बुलाया गया था जिसमें ऐन मौक़े पर आयोजकों ने ऐसा न करके उन्हें अपमानित किया जिसके फलस्वरूप मैंने भी अपनी भड़ास कुछ इस तरह निकाली ;

साहित्य के सूरज को
दीपकों ने धता दिया।
चलो अच्छा ही हुआ
अपनी जाति तो जता दिया!

कीचड़ के संसर्ग में
होता है जन्म कमल का,
इसलिए 'नीरज' के आस-पास
अस्तित्व होता है ' कीचड़' का।

'नीरज' तो नीरज है
उसे क्या कोई क्षति पहुँचायेगा?
कीचड़ में ढेला मारो तो
अपने ऊपर ही आयेगा!

रंग दिखाकर कीचड़ ने
'कलियों' को भी धमकाया
उसका अस्तित्व है कितना
मानो यह हो समझाया।

मर्दन कुसुम का नहीं
सारे उपवन का हुआ
कंटकों की चुभन का
अहसास सब-तन हुआ।

माँ सरस्वती के चरणों में
पड़े हुए नीरज का
अपमान पुजारी का नहीं
हुआ है उसकी पूजा का!

अपमान पुत्र का नहीं
हुआ है उसकी माँ का,
बढ़ते रहो इसी तरह
चूंकि 'प्रभुत्व ' है आपका!

दूलापुर,26-06-1989

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