8 जून 2013

हो रहा 'भारत-निर्माण' ?


जिस समय देश के सभी नेता आने वाले समय में लोकतंत्र और देश की सेवा के नाम पर होने वाले पांच-साला पाखंड की तैयारियों में व्यस्त हैं, वहीं देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसी खबर आती है, जिससे इन सबका कोई सरोकार नहीं है। राजधानी की अनधिकृत बस्ती में रहने वाले एक निम्नवर्गीय परिवार का मुखिया पत्नी और बच्चों की प्यास बुझाने के लिए दो किलोमीटर दूर से पानी लाते समय अपनी जान गंवा देता है। बीस लीटर पानी को अकेले ढोकर लाने में उसका दम ऐसा फूलता है कि घर के आंगन में पहुंचते ही वह खामोश हो जाता है। ऐसे में उसकी पत्नी और बच्चों पर क्या बीती होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पानी की प्यास ने एक परिवार की खुशी छीन ली। सरकार और व्यवस्था जनता के प्रति अपने सरोकारों के नाम पर जनता के साथ छल करने में व्यस्त है। ऐसा लगता है कि सरकार और सरोकार दोनों दो विपरीत ध्रुव की कहानी बनते जा रहे हैं। किसी भी जीव के लिए हवा और पानी बुनियादी और सबसे जरूरी चीजें हैं, पर आजादी के बाद से अब तक हमारी तमाम सरकारें यह भी सुनिश्चित कराने में विफल रही हैं। मीडिया की जिम्मेदारी बस इतनी रही कि  एकाध अखबारों के किसी कोने में इस खबर को छोटी-सी जगह मिल गई।उपर्युक्त घटना में पानी की अनुपलब्धता मौत का कारण बनी।

लेकिन क्या सचमुच पानी का इतना अभाव है कि एक इंसान को इसके लिए दूरदराज के इलाकों के साथ-साथ देश की राजधानी दिल्ली में भी कई-कई किलोमीटर सफर करना पड़े और इसी की वजह से जान गंवानी पड़े? कभी हर सौ-दो सौ मीटर पर सड़कों के किनारे लगे नल की टोंटी पानी की जरूरत के सवाल पर सरकार का चेहरे में मानवीयता के भी शामिल होने का सबूत हुआ करती थीं। आज घर में तो बीस लीटर के बोतलबंद पानी पर निर्भरता लगभग तय हो ही चुकी है, घर से सड़क पर निकल गए तो बिना जेब ढीली किए प्यास नहीं बुझा सकते। लेकिन प्रकृति के इस नैसर्गिक स्रोत को पूरी तरह दुकानदारी का मामला बना देने में खुद सरकार की कितनी बड़ी भूमिका है, क्या यह किसी से छिपी बात है? पानी के दुरुपयोग के बहाने व्यवस्था की काहिली का ठीकरा आम जनता के सिर पर नहीं फोड़ा जा सकता। शहरों-महानगरों की बात छोड़ दें, कस्बाई इलाकों तक में जिस तरह बोतलों में बंद पानी बीस-पच्चीस रुपए लीटर खुलेआम बिक रहा है, वह कहां से आता है? धरती का सीना निचोड़ कर पानी निकालने और बोतलबंद पानी और पेप्सी या कोका कोला जैसे ठंडे पेयों का कारोबार करने वाले वे लोग कौन हैं जिनके लिए कभी पानी की कमी नहीं होती? यह सब किस सौदेबाजी की व्यवस्था के तहत चल रहा है?

सत्तापक्ष जहां नौ साला-जश्न मना कर आगे की तैयारी में जुटा है, वहीं मुख्य विपक्षी दल अपने लिए एक अदद नेता की तलाश में लगा हुआ है। किसी को इन ‘छोटी-मोटी बातों’ के लिए समय नहीं है। इसके उलट अखबारों और टीवी में हर दिन ‘भारत-निर्माण’ का बड़ा-सा ‘प्रमाण-पत्र’ आता है। इसके अलावा कोई सरकार कर भी क्या सकती है! जब इतना बड़ा ‘भारत-निर्माण’ हो रहा है तो किसी न किसी की बलि तो चढ़ेगी ही और इस काम के लिए आम आदमी से मुफीद कौन हो सकता है? उसके लिए रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरतें तो दूर, पानी के भी लाले पड़ गए हैं। ऐसे में किसके भारत का निर्माण हो रहा है?
ये बात उन्हें समझ में नहीं आएंगी जो आइपीएल जैसे खेल-तमाशों में सट्टा, सुरा और सुंदरी के सम्मिलित मनोरंजन और और अय्याशियों से अघाए हुए लोग हैं। उनके जश्न मनाने के लिए अभी शैंपेन या शराब की कोई कमी नहीं है। आम आदमी महज पानी के लिए मरता है तो मर जाए, सत्ता और उससे जुड़े हुए लोग अभी जश्न के मूड में हैं।

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. जब बिना देश चमकाये लोग अपनी चमकाने में लग जायें तो कैसे हजम किया जा पाये।

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  2. yahi to hai bharat nirman jisme neevn kee ent dab hi jaye aur kangoore yun hi chamakte rahen .

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  3. कहीं यही तो योग्यतम की उत्तरजीविता का दृष्टान्त नहीं है !

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  4. जाने कितने वर्षों में सबको सब सुलभ होगा , कही व्यर्थ बहता है पानी , कही जान जाती है पानी के लिए !!

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  5. वे तो अनधिकृत कॉलोनी में रहने वाले सदियों से उपेक्षित व्यक्ति थे, आम आदमी नहीं थे लेकिन लगता है पानी की समस्या ऐसी भंयकर होने जा रही है कि आम आदमी क्या, धनवान आदमी भी मरेंगे। सोचिए उस दिन क्या होगा जब नलों में पानी नहीं आयेगा, समरसेबुल जवाब दे जायेंगे, पानी लाने के लिए मजदूर भी नहीं मिलेगें, एसी से निकलकर कुछ किलोमीटर चलकर पानी लाना क्या उनके लिए संभव हो पायेगा? पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, दाना, पानी जैसे मुद्दों पर भी जिस देश में आम सहमति नहीं बन पाती हो वहाँ तो ईश्वर जितने दिन जिंदा रखे उतनी ही जिंदगी है।

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  6. मीलों हम आ गए, मीलों हमें जाना है
    ऊपर तैर रही लुटिया को अभी पूरा डुबाना है

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  7. देश के निर्माण के लिए कुछ त्याग करना पड़ता है,शहादत देनी होती है,और यह काम आम जन का है,नेताओं का नहीं.और यही हो रहा है.कुछ दिन में वोट मांगने के लिए अपने ही द्वार आयेंगे ये बेशरम लोग,और हम ही चुनेगे वापिस इनको.जब कि जरूरत है इनके सार्वजनिक बहिष्कार की.शीला सरकार के शासन को कांग्रेस उत्तम शासन का उदहारण बताती है,यह सब घटनाएँ इतने बड़े देश में कहीं न कहीं होती ही रहती है,सरकार का काम इन पर धयान देना नहीं,बिना कुछ किये भारत निर्माण का गीत गाना है,पेड मीडिया में ख़बरें छपवाना है.यही निर्माण हो रहा है मेरे देश का.जय भारत,मेरा देश महान.

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  8. आपने जो पीडा व्यक्त की है उसके लिए घडियाली आँसू बहाने के सिवाय नेतागण कुछ नहीं करेंगे.

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  9. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 12/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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