कुण्डलियाँ
फागुन गच्चा दे रहा,रंग रहे भरमाय।
आँगन में तुलसी झरे,आम रहे बौराय।।
आम रहे बौराय,नदी-नाले सब उमड़े।
सुखिया रहा सुखाय,रंग चेहरे का बिगड़े।।
सजनी खम्भा-ओट , निहारे फिर-फिर पाहुन।
अपना होकर काट रहा ये बैरी फागुन।।(१)
होली में देकर दगा,गई हसीना भाग ,
पिचकारी खाली हुई ,नहीं सुहाती फाग !!
नहीं सुहाती फाग,बुढउनू खांसि रहे हैं,
पोपले मुँह मा गुझिया, पापड़ ठांसि रहे हैं।
अखर रहे पकवान,नीकि ना लगै रंगोली।
चूनर लेती जान, कहे आई अस होली।।(२)
दोहे
गुझिया,पापड़ छन रहे,रामदीन के संग।
होरी में सब मिल गए,चटख-स्याह एक-रंग।।(1)
आसमान में उड़ रहा,केसर रंग, गुलाल ।
बरस बाद अंबर मिला,धरती हुई निहाल ।।(2)
बादल होली खेलते,बारिश की बौछार।
फागुन गरज-बरस रहा,भीग गया त्यौहार।(6)
और अंत में गौरैया को समर्पित:
गौरैया गायब हुई,रही हमेशा साथ।
सूना सब उसके बिना,दूध-कटोरी-भात ।।
आँगन में दिखते नहीं, गौरैया के पाँव |
गोरी रोज़ मना रही लौटें पाहुन गाँव ||
विशेष :तीसरी कुंडलिया में बीच की दो लाइनें भारतेंदु मिश्र जी की हैं !
फागुन गच्चा दे रहा,रंग रहे भरमाय।
आँगन में तुलसी झरे,आम रहे बौराय।।
आम रहे बौराय,नदी-नाले सब उमड़े।
सुखिया रहा सुखाय,रंग चेहरे का बिगड़े।।
सजनी खम्भा-ओट , निहारे फिर-फिर पाहुन।
अपना होकर काट रहा ये बैरी फागुन।।(१)
होली में देकर दगा,गई हसीना भाग ,
पिचकारी खाली हुई ,नहीं सुहाती फाग !!
नहीं सुहाती फाग,बुढउनू खांसि रहे हैं,
पोपले मुँह मा गुझिया, पापड़ ठांसि रहे हैं।
अखर रहे पकवान,नीकि ना लगै रंगोली।
चूनर लेती जान, कहे आई अस होली।।(२)
फागुन के इस समय में,रोया,हँसा न जाय।
पिचकारी में रंग भरें, वो भी गवा बिलाय।।
वो भी गवा बिलाय,बढी अतनी मँहगाई।
देवर खाली हाथ,तकै मुँहु सब भौजाई।
होरी कइसे मनी, कहैं सजनी ते साजन,
बिपदा भारी लिए,खड़ा मुस्काए फागुन।(३)
पिचकारी में रंग भरें, वो भी गवा बिलाय।।
वो भी गवा बिलाय,बढी अतनी मँहगाई।
देवर खाली हाथ,तकै मुँहु सब भौजाई।
होरी कइसे मनी, कहैं सजनी ते साजन,
बिपदा भारी लिए,खड़ा मुस्काए फागुन।(३)
दोहे
गुझिया,पापड़ छन रहे,रामदीन के संग।
होरी में सब मिल गए,चटख-स्याह एक-रंग।।(1)
आसमान में उड़ रहा,केसर रंग, गुलाल ।
बरस बाद अंबर मिला,धरती हुई निहाल ।।(2)
रंग काटने दौड़ते,होली में इस बार ।
हरिया के बरतन बिके, घरवाली बीमार।।(3)
फगुवा टोली देखकर,मन में उठे तरंग ।
साजन हैं परदेस में,नाचूँ किसके संग ।।(4)
...
पीली चूनर उड़ रही,आसमान की ओर ।
धरती पटी गुलाल से,जियरा डोले मोर ।।(5)
हरिया के बरतन बिके, घरवाली बीमार।।(3)
फगुवा टोली देखकर,मन में उठे तरंग ।
साजन हैं परदेस में,नाचूँ किसके संग ।।(4)
...
पीली चूनर उड़ रही,आसमान की ओर ।
धरती पटी गुलाल से,जियरा डोले मोर ।।(5)
बादल होली खेलते,बारिश की बौछार।
फागुन गरज-बरस रहा,भीग गया त्यौहार।(6)
और अंत में गौरैया को समर्पित:
गौरैया गायब हुई,रही हमेशा साथ।
सूना सब उसके बिना,दूध-कटोरी-भात ।।
आँगन में दिखते नहीं, गौरैया के पाँव |
गोरी रोज़ मना रही लौटें पाहुन गाँव ||
विशेष :तीसरी कुंडलिया में बीच की दो लाइनें भारतेंदु मिश्र जी की हैं !