न चराग रहे घर में,
न सुकूँ बचा शहर में !
मोहब्बत आई, गई हुई
नफ़रत रुके जिगर में !
हमने करी वफ़ा पर
आए नहीं नज़र में !
अपना मक़ाम तय है
अब भी हैं वे सफ़र में !
ज़िंदगी देती नहीं कुछ
सीख देती है डगर में !
हम दर्द को लेते छुपा,
जी रहे सबके ज़हर में !
न सुकूँ बचा शहर में !
मोहब्बत आई, गई हुई
नफ़रत रुके जिगर में !
हमने करी वफ़ा पर
आए नहीं नज़र में !
अपना मक़ाम तय है
अब भी हैं वे सफ़र में !
ज़िंदगी देती नहीं कुछ
सीख देती है डगर में !
हम दर्द को लेते छुपा,
जी रहे सबके ज़हर में !
खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंअजमाते हैं हर विधा, मन में ना संतोष |
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतियां लगभग मिली, सच सटीक निर्दोष |
सच सटीक निर्दोष, शेर सब जबरदस्त हैं |
चीर फाड़ में व्यस्त, भाव खा रहे मस्त हैं |
रविकर को है गर्व, मित्र सच्चा जो पाते |
समय काल आपात, मित्र को हैं अजमाते ||
...मगर ज़्यादा आजमाना ठीक है क्या ??
हटाएंमित्र को आजमाने की जरुरत नहीं-
हटाएंवे अजमाए हुवे ही होते हैं -
सादर
...आभार !
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी गज़ल है त्रिवेदी जी, हम होते तो शायद यूँ लिखते
जवाब देंहटाएंहमने करी वफ़ा पर
आये नहीं नज़र वे !
हमने खिलाई कुल्फी
देखे नहीं कभी वे !
...ठण्ड में कुल्फी खिलाओगे तो यही हाल होगा !!!
हटाएं:)
हटाएंडॉ अरविन्द मिश्र का कमेन्ट अपेक्षित है , अन्यथा अधूरी रहेगी यह गज़ल :))
जवाब देंहटाएंवाह, छायी धुंध को बड़ा ही स्पष्ट बयां कर दिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
भाव-गहराई लिए शब्द।
जवाब देंहटाएंशब्दों और भावों में डूबने से बचे रहना
जवाब देंहटाएंमित्रता से बढ़कर नहीं है कोई गहना
उम्दा भाव के साथ अच्छी गजल,,,गजलकार बनने के लिए बधाई ,,,संतोष जी,,
जवाब देंहटाएंRecent post: गरीबी रेखा की खोज
बढ़िया ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंहम दर्द को लेते छुपा,
जवाब देंहटाएंजी रहे सबके ज़हर में !
कि जी रहे किस भरम में !!
हमने करी वफ़ा पर
जवाब देंहटाएंआए नहीं नज़र में !
बहुत खूब ... फिर भी वफ़ा करते रहें ... कभी तो नज़रें करम होंगी ....
हर शेर लाजवाब है ....
च्च च्च च्च च्च :-)
जवाब देंहटाएंआनंद लिया और चल दिए....
जवाब देंहटाएंज़िंदगी देती नहीं कुछ
जवाब देंहटाएंसीख देती है डगर में !
एक एक शेर लाज़वाब है. बहुत सुंदर. शुक्रिया.
वाह!
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