जिनके मुरझाये चेहरे हैं
कानों से थोड़ा बहरे हैं,
आँखों की ज्योति बुझी-सी है
जिनके जीवन का निकट अंत !
बुड्ढों का कैसा हो वसंत !!
वे
मरे-मरे से रहते हैं
सूने नयनों से कहते हैं,
'तुम यूँ आलिंगन-बद्ध रहो
हम भी कोई नहीं संत’!
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!सूने नयनों से कहते हैं,
'तुम यूँ आलिंगन-बद्ध रहो
हम भी कोई नहीं संत’!
दिल
के सारे अरमान लुटे
नहीं कोई मोहिनी पटे
पिचके गालों के गढ्ढों में
चुम्बन को आतुर नहीं दन्त !
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!नहीं कोई मोहिनी पटे
पिचके गालों के गढ्ढों में
चुम्बन को आतुर नहीं दन्त !
यार
मनाओ खुशी आज
छेड़ो
जीवन के मधुर साज ,हम अपनी संध्या-बेला में
तुम कूदो बछड़े बन उदन्त !
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!
*सुभद्रा कुमारी चौहान से क्षमायाचना सहित
*सुभद्रा कुमारी चौहान से क्षमायाचना सहित
जवाब देंहटाएंबुढ़ापा,जिसे हम समझते आये हैं, केवल एक मानसिक स्थिति है , जिसे मान भर लेने से ही, व्यक्तित्व के जोश में गिरावट आती है ! मरते दम तक यह जोश बना रहना आवश्यक है , जिस दिन यह जोश समाप्त हुआ, समझो उसी दिन मौत है !
बुढ़ापा वह नहीं जिसकी कविताओं में रसिक अथवा ठरकी कह कर मज़ाक उड़ाया गया है, बुढ़ापा, मन से जीवन के प्रति आनंद महसूस करने की इच्छाओं के ख़त्म होने का नाम है !
जीवन अनमोल है ...इसका हर क्षण जीने योग्य है , मस्ती के साथ जियें !
रिटायर होने के बाद बैग पैक लेकर विश्व यात्रा पर कम से कम एक वर्ष के लिए जाने की धुन है , और शायद यह यात्रा एक मोटर सायकिल पर होगी , चलेंगे त्रिवेदी जी ??
फ़िलहाल एक रचना सुनाता हूँ ...
जब तक मन में,किसी प्यार की,यादें हमको आती हैं !
तब तक दिल में, बसी रहेगी, गंध उसी कस्तूरी की !
जब तक, मेरे इंतज़ार में, नज़र लगीं, दरवाजे पर !
तब तक वे, न जाने देंगीं, दिल से धमक जवानी की !
जब तक कोई कान लगाये, आहट सुनता क़दमों की !
दिल ये,सदा जवान रहेगा, कसम हमें इन प्यारों की !
भरी जवानी में, ये बाते, किस गुस्ताख ने छेड़ी हैं !
हाथ मिलाएं,हमसे आकर,हो पहचान जवानी की !
लीजिए हुजूर। अगली पोस्ट आपके मन की !
हटाएंसतीश जी से सहमत
हटाएंBravo Satish ji!
जवाब देंहटाएं:-)
हटाएंबसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
जवाब देंहटाएंदिनांक 15 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
...आभार !
हटाएंअपना अपना नज़रिया .... :):)
जवाब देंहटाएं...जी ।
हटाएंबसंत भाव-संसार है, इसलिए सबका है।
जवाब देंहटाएं...शुक्रिया !
हटाएंबहुत ही सुन्दर कवित को शेयर किये आभार है आपका.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"
...मुश्किल है ।
हटाएंदिल के सारे अरमान लुटे
जवाब देंहटाएंनहीं कोई मोहिनी पटे
पिचके गालों के गढ्ढों में
चुम्बन को आतुर नहीं दन्त !
बुड्ढों का कैसा हो वसंत ...
ऐसा सच मिएँ ऐसा है ... मोहिनी तो पट जायगी अपनी उम्र की देखें ... आखिर मोहिनी भी तो अपनी उम्र के मुताबिक़ देखना चाहती हैं ... संभव है ये मिलन ...
:-)
हटाएंसंतोष जी ,लगता है आपको समय से पहले ही बुढापे ने घेर लिया,फिर साठ के बाद क्या होगा ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
:-)
हटाएंमाफी उनसे मांगते हो
जवाब देंहटाएंजो नहीं हैं
उनसे मांगों
जो यहीं हैं
धड़ को ए लगाकर
हो जाओ
फिर अ आगे लगाओ
कहलाओ फिर जानेंगे
आप बनते हैं कैसे महंत
बतलाएंगे कैसे मनाते हैं वसंत
संत नगर आते हैं
गाते गाते चिल्लाते हैं।
...ओह !
हटाएंसब पूँछ रहे हैं दिग दिगन्त,
जवाब देंहटाएंसबके जैसा अपना बसन्त?
...सही !
हटाएंबुढ्ढों का ऐसा हो बसन्त
जवाब देंहटाएंज्यों महाकुम्भ के बड़े सन्त
देदीप्यमान आभामंडल
कानों में स्वर्णजटित कुंडल
नयनाभिराम सेवारत दल
हो रहे धन्य छूकर पदतल
है कृपा लक्ष्मी की अनन्त
बुढ्ढों का ऐसा हो बसन्त
वाह !
हटाएं...आभार !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट में विंसगिति और सच्चाई दोनो देखने को मिली..
जवाब देंहटाएंएक जवान बुढ्ढों का दर्द बयान करते-करते उपहास उड़ाने लगा दूसरा जवान बुरा मान गया। तीसरे ने आइना दिखाया..बुढ्ढों का ऐसा है बसंत।
सांस टूटने तक आदमी क्या-क्या नहीं करता!
जवानी बाई-बाई कहती है, बुढ़ापा गुड बाई नहीं कहता। :)
...आभार समालोचना के लिए !
हटाएंविसंगति
हटाएंहुलस,कसक सब है बाकी
जवाब देंहटाएंमन में है कोई शाकी
दिल रसिकों सा दिग-दिगंत
बूढों का ऐसा है बसंत ....
धन्यवाद संतोष जी ...
बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको .
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कुराहट recent Post आने वाले दिनों में पर ज़रूर आईये
जवाब देंहटाएं