स्कूल के दिनों में ,जब मैंने एक पर्ची पर लिखकर तुम्हारा नाम पूछा था तो तुमने उस पर झट से अपना नाम लिखकर उसी कागज का गोला बनाकर मेरी ओर फेंका था.तुमने मेरा भी नाम जानना चाहा था,यह जानकर ही मैं ख्यालों में खो गया था.जब मुझे होश आया तब तक मास्टरजी कक्षा में आ चुके थे और इस तरह हमारा पहला संपर्क अधूरा रह गया था.
जब भी मास्टरजी श्याम-पट में कुछ लिखते,मैं तुम्हारे बालों को निहारता .तुम कनखियों से कभी-कभी मुझे देखती तो मैं बल्लियों उछल जाता.तुम्हारे हाथ की लिखावट आकर्षक थी और मेरी बहुत साधारण. मास्टरजी जब इमला बोलते तो हम दोनों के बराबर अंक आते.इस बहाने कक्षा में हम दोनों ही खड़े होते और साथी इस पर भी कहानियां बनाते.मुझे तो खुशी इस बात की होती कि किसी बहाने मेरा नाम तुम्हारे साथ जुड़ा तो !
एक बार किसी लड़के ने कुछ बच्चों की कॉपियों में तुम्हारा और मेरा नाम एक साथ लिख दिया था.बात धीरे-धीरे मास्टरजी तक पहुंची और इसके लिए मुझे ही दोषी बनाया गया.मैंने पहली बार तुम्हारे नाम के दो डंडे अपने हाथ में खाए थे .शुरू में तुम्हें भी लगा था कि शायद मैंने कुछ किया हो पर बाद में उस लड़के के पकड़े जाने पर वह बात खत्म हो गई थी .सच में,मुझे मार का कोई रंज न था,बस मुझे तुम्हारी रुसवाई नागवार लगी थी.
मैंने तुमसे कभी सीधी बात नहीं की थी पर जिस दिन तुम स्कूल नहीं आतीं थीं ,मेरा मूड खराब रहता,कुछ भी नहीं अच्छा लगता.मैं नहीं जानता कि मेरे स्कूल न आने पर तुम्हें कभी ऐसा लगा हो ?मैं किसी न किसी बहाने तुम्हारी खैर-खबर ज़रूर ले लेता था.
स्कूल की घंटी बजने पर सभी बच्चे खुश होते पर मैं तुमसे बिछड़ने को लेकर अकसर उदास हो जाता.मुझे याद नहीं आता ,जब तुम्हें मैंने उदास देखा हो.तुम्हारा चेहरा हर समय खिलखिलाता रहता और मुझे लगता कि यह सब तुम मेरे लिए करती हो.
क्या कभी तुमको भी मुझसे अलग होने का अहसास हुआ था ?
जब भी मास्टरजी श्याम-पट में कुछ लिखते,मैं तुम्हारे बालों को निहारता .तुम कनखियों से कभी-कभी मुझे देखती तो मैं बल्लियों उछल जाता.तुम्हारे हाथ की लिखावट आकर्षक थी और मेरी बहुत साधारण. मास्टरजी जब इमला बोलते तो हम दोनों के बराबर अंक आते.इस बहाने कक्षा में हम दोनों ही खड़े होते और साथी इस पर भी कहानियां बनाते.मुझे तो खुशी इस बात की होती कि किसी बहाने मेरा नाम तुम्हारे साथ जुड़ा तो !
एक बार किसी लड़के ने कुछ बच्चों की कॉपियों में तुम्हारा और मेरा नाम एक साथ लिख दिया था.बात धीरे-धीरे मास्टरजी तक पहुंची और इसके लिए मुझे ही दोषी बनाया गया.मैंने पहली बार तुम्हारे नाम के दो डंडे अपने हाथ में खाए थे .शुरू में तुम्हें भी लगा था कि शायद मैंने कुछ किया हो पर बाद में उस लड़के के पकड़े जाने पर वह बात खत्म हो गई थी .सच में,मुझे मार का कोई रंज न था,बस मुझे तुम्हारी रुसवाई नागवार लगी थी.
मैंने तुमसे कभी सीधी बात नहीं की थी पर जिस दिन तुम स्कूल नहीं आतीं थीं ,मेरा मूड खराब रहता,कुछ भी नहीं अच्छा लगता.मैं नहीं जानता कि मेरे स्कूल न आने पर तुम्हें कभी ऐसा लगा हो ?मैं किसी न किसी बहाने तुम्हारी खैर-खबर ज़रूर ले लेता था.
स्कूल की घंटी बजने पर सभी बच्चे खुश होते पर मैं तुमसे बिछड़ने को लेकर अकसर उदास हो जाता.मुझे याद नहीं आता ,जब तुम्हें मैंने उदास देखा हो.तुम्हारा चेहरा हर समय खिलखिलाता रहता और मुझे लगता कि यह सब तुम मेरे लिए करती हो.
क्या कभी तुमको भी मुझसे अलग होने का अहसास हुआ था ?