शुक्र है अभी
कच्चा नहीं निगलते हम मानव-शरीर
मसलते हैं मांसल देह
खरोंचते हैं नाखूनों से
चबाते नहीं हड्डियाँ
पीते नहीं रक्त
भागकर छुप जाते हैं,
इस पहचान से
हम मनुष्य हैं अभी !
प्रलय का दिन
निश्चित नहीं है
हम उसे लाते हैं मन-मुताबिक
परमात्मा से नहीं डरते
हमसे काँपती है मानवता
अपने पंजे फैला लिए हैं हमने ,
शुक्र है अभी
खुला आसमान बचा है
धरती भी नहीं फटी
सूरज चुआ नहीं अपने केन्द्र से
और भूमि-अभिलेखों में
हम मनुष्य हैं अभी !
देवेन्द्र पाण्डेय जी की कविता से प्रेरित होकर
नहीं हुआ प्रलय..नहीं होगा यदि हम मनुष्य बने रहें।
जवाब देंहटाएं...आपका विशेष आभार .आपकी कविता पढ़कर ही निकली है यह !
हटाएंहमारे देश में मानवता तो बची ही नहीं है।
जवाब देंहटाएंवाकई शुक्र है....
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र पांडे की सद्य प्रकाशित ब्लॉग कविता की छाया है यहाँ -
जवाब देंहटाएंमनुष्य आज भी बेहतर है दीगर पशुओं से !
जी,उसी कविता से प्रेरित है यह.मैंने उन्हें बता दिया था पर यहाँ उल्लेख नहीं कर पाया .
हटाएंप्रलय का दिन
जवाब देंहटाएंनिश्चित नहीं है
हम उसे लाते हैं मन-मुताबिक
परमात्मा से नहीं डरते
हमसे काँपती है मानवता
फिर भी धरती फटी नहीं .... अभी मनुष्य हैं ... तीखी रचना ।
धरती भी नहीं फटी ...
जवाब देंहटाएंप्रलय का दिन
जवाब देंहटाएंनिश्चित नहीं है
हम उसे लाते हैं मन-मुताबिक
परमात्मा से नहीं डरते
हमसे काँपती है मानवता
अपने पंजे फैला लिए हैं हमने ,
शुक्र है अभी
खुला आसमान बचा है
धरती भी नहीं फटी
----------------------ये पंक्तियां परिस्थिति का खूब रोना रोती हैं।
शुक्र है,
जवाब देंहटाएंकि मनुष्य हैं हम,
बने रहें,
पतन से बचे रहें।
प्रलय का दिन
जवाब देंहटाएंनिश्चित नहीं है
हम उसे लाते हैं मन-मुताबिक
परमात्मा से नहीं डरते
हमसे काँपती है मानवता
....आज की सोच का सटीक चित्रण...
प्रलय का दिन
जवाब देंहटाएंनिश्चित नहीं है...
शायद इसी एक उम्मेद पर दुनिया कायम है...
जवाब देंहटाएंहम मनुष्य हैं अभी ..... पर कितनी मात्रा में , यह सोचने को मजबूर भी हैं !
जवाब देंहटाएंशुक्र है अभी
जवाब देंहटाएंखुला आसमान बचा है
धरती भी नहीं फटी
सूरज चुआ नहीं अपने केन्द्र से
और भूमि-अभिलेखों में
हम मनुष्य हैं अभी !
वाह ! अति सुन्दर प्रस्तुति ... सादर.
बेहतरीन,तीखी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंआज विश्वास हो गया है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। इसमें यम तो है पर वह उम्मीद का एक सनातन नियम है।
जवाब देंहटाएंइन्सान सिर्फ एक ही डर से डरता है -- मौत के डर से ।
जवाब देंहटाएंइसमें कोई रियायत नहीं होनी चाहिए।
बढिया वक्तव्य है!
जवाब देंहटाएंआशा से आकाश थमा ......
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