बलात्कार जैसी
घटनाएँ सीधे-सीधे कानून-व्यवस्था का मामला हैं। हमारे समाज में जब तक यह धारणा
नहीं मज़बूत होगी कि किसी भी दुष्कृत्य के लिए अभियुक्त को जल्द और निश्चित रूप से
उसके परिणाम भुगतने होंगे,तब तक ऐसी घटनाओं पर पचास बार फाँसी देने या गोली मार
देने की सज़ा का प्रावधान महज़ कागजी ही रहेगा। आज यह धारणा पुख्ता हो चुकी है कि
कोई ,कहीं भी किसी महिला को छेड़ दे,उसे
ज़बरिया उठा ले और यहाँ तक कि हवस पूरी करके मार भी दे तो कोर्ट-कचहरी में कुछ नहीं
होना है। अव्वल तो कई मामले थाने या न्यायालय तक आते ही नहीं और यदि आए भी तो उनमें
से अधिकांश सबूतों के अभाव में न्याय की दहलीज पर ही दम तोड़ देते हैं। इसलिए कई
बार इन मामलों की शिकायत भी नहीं की जाती।
संसद में कई महिला-प्रतिनिधियों
की चिंताएं सच्ची जान पड़ती हैं पर आखिर में कानून-व्यवस्था को लागू करना-करवाना आम
जनता की जिम्मेदारी तो नहीं है। कानून अभी भी इतने कमज़ोर नहीं हैं पर मुख्य बात
इन्हें लागू करने की है। जब हमारी राजनीतिक-व्यवस्था भ्रष्टाचार और अपने-अपने
सत्तारोहण पर जुटी हुई हो,ऐसे में नौकरशाही या पुलिस-प्रशासन क्यों पीछे रहे ?हमारे
प्रतिनिधि इस तरह की घटनाओं की सीधी जिम्मेदारी पुलिस-प्रशासन पर डालकर निश्चिन्त
हो जाते हैं पर क्या सबसे बड़े जिम्मेदार वे स्वयं नहीं हैं?सरकार गरीबों को कैश-सब्सिडी का झुनझुना पकड़ाकर आत्म-मुग्ध हो रही है और उसकी लुटती हुई आबरू की कोई कीमत नहीं है.यह आम जनता के साथ मजाक नहीं तो क्या है ?हास्यास्पद तो यह है कि कानून-व्यवस्था तहस-नहस होने पर सरकार और हमारे प्रतिनिधि ही चिंताएं भी ज़ाहिर कर देते हैं. आखिर जनता ने सत्ता की
लगाम जिनको सौंपी है तो किसी भी प्रकार की अराजकता होने पर वे पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं ?
आज पूरे देश में
कानून का कोई खौफ नहीं है। जिसको जो मन में आ रहा है,कर रहा है। संसद में हमला
करके,हत्याएं-बलात्कार करके,सरे-आम उगाही करके भी अगर कोई सुरक्षित रह सकता है तो ऐसे
जंगलराज में कोई क्यों डरे ?हम पूरी तरह से अराजक-राज में रह रहे हैं। अब ज़रूरत
केवल कानून के राज को स्थापित करने की है,संसद में भाषणबाज़ी करने की नहीं। ऐसा न
हो पाने पर वहाँ फफक-फफककर रोना महज़ घडियाली आँसू बहाने से ज़्यादा कुछ नहीं है।
बेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंदण्ड त्वरित हो और कठोर भी।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है ... पर जब तक लोग पूरी तरह आक्रोश के साथ जागते नहीं ... इन हुक्मरानों को झंझोड़ते नहीं ... इनके कानों पे जूं नहीं रेंगने वाली ...
जवाब देंहटाएंउँगली उँगली काटके
जवाब देंहटाएंहाथ पैर छाँटके
एक आँख फोड़के
बंद करे अजायब घर में
न कि फाँसी पर लटकायें
मुक्ति दे दें अपराधियों को ।
अराजकता का जिम्मेवार कौन ..??
जवाब देंहटाएंहम, तुम और कौन ???
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जवाब देंहटाएंदुष्कृत्य के लिए अभियुक्त को जल्द से जल्द फैसला सुना कर सजा देनी चाहिए,,,,न्याय प्रक्रिया में देरी के कारण अभियुक्त बच निकलते है,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
सही है.. जरूरत कानून के राज को स्थापित करने की है।
जवाब देंहटाएंबेख़ौफ़ अपराधी खुलेआम वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और वह भी देश की राजधानी में -यह तो हद है!
जवाब देंहटाएंजनप्रतिनिधि कहेंगे कि हम तो मात्र पांच सौ पचास हैं। हम तो कानून बना सकते हैं बस्स।
जवाब देंहटाएंआज दैनिक जनसत्ता में आपका यह आलेख मु्द्रित हुआ है। बधाई।
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