14 दिसंबर 2012

बहुत दिन हुए !

बहुत दिन हुए
जब आखिरी बार
चिड़िया चहचहाई थी,
पौधों में नई कोंपलें आईं थीं
सोंधी हवा चली थी,
आम बौराए थे और टपका था महुआ |
भोर होते ही बोले थे मुर्गे
और किसान गया था खेत सींचने
पूस की रात में 
ठण्ड में जलाये हुए कौड़ा
गांव में छप्पर के नीचे
आग तापे थे हम !
बहुत दिन हुए
जब आखिरी बार
माँ चौके पर बैठी थीं
घी का मर्तबान लेकर
और उड़ेल दिया था
ढेर सारा घी दाल मे,
ना-ना करते-करते !
याद नहीं आता 
पिछली बार कब खाया था
चने का साग
और जोंधरी की रोटी
या कडुवे तेल से चुपड़ी
धनियहा-नमक के साथ !
बहुत दिन हुए
आम,जामुन या बैर पर
निशाना साधते पत्थर मारे,
चने का झाड़ उखाड़े
और निमोना चबाये,
खेत में घुसकर
तोड़े हुए गन्ने !
याद नहीं रहा
कब जिए थे अपनी मर्ज़ी से
खुली हवा में साँस ली थी
और साइकिल में चलते हुए
दोनों हाथ छोड़कर
कब गुनगुनाये थे !
अब कुछ भी याद नहीं रहा,
बहुत दिन हुए
घर में रहे हुए
ज़िन्दगी से मिले हुए !

19 टिप्‍पणियां:

  1. क्या ख़ूबसूरती से यादों को संजो दिया है आपने.. दिल को छू गयी यह कविता..

    जवाब देंहटाएं
  2. सोंधी सी यादों को सहेजा है इस रचना में ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन शब्दचित्र मास्साब ...
    गज़ब !

    जवाब देंहटाएं
  4. हमें तो हर चीज में बहुत दिन हुये, यह लगता है।

    जवाब देंहटाएं
  5. जिन्‍दगी जीने की ललक का अभिनंदन..नर्क भोग के दुख से संवेदना।

    जवाब देंहटाएं
  6. चने का झाड़ उखाड़े
    और निमोना चबाये,
    निमोना पढ़ कर ही बड़ा अच्छा लगा ....कम लोग जानते हैं निमोना के बारे मे ...
    यादों की महक ....सुंदर अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
  7. खट्टी मीठी यादें.....
    खजाना है ये..........
    कभी खाली न हो.

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत घर -विरही हो गए हो और दूसरों को भी कर रहे हो :-)
    बहुत दिन बीते ऐसी कविता पढ़े हुए!

    जवाब देंहटाएं
  9. कब गुनगुनाये थे !
    अब कुछ भी याद नहीं रहा,
    बहुत दिन हुए,,,

    बहुत बढिया उम्दा सृजन,,,, बधाई। संतोष त्रिवेदी जी,,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत दिन हुए
    जब आखिरी बार
    चिड़िया चहचहाई थी

    ..यह खटका, बाकी सबने प्यारा एहसास जगाया। थोड़ी जल्दबाजी न करते माट्साब तो कविता बेहतरीन हो जाती।

    जवाब देंहटाएं
  11. यह कविता पढ़कर एक गजल बहुत ही याद आ रही है ----

    ये शहरे-तमन्ना अमीरों की दुनिया ,
    ये खुदगर्ज औ बेजमीरों की दुनिया ,
    यहाँ सुख मुझे दो जहाँ का मिला है ,
    मेरा गाँव जाने कहाँ खो गया है ?

    जवाब देंहटाएं
  12. बढिया है!
    वैसे देवेंद्र पाण्डेय बता रहे हैं कि गड़बड़ा दी कविता हड़बड़ी में।

    जवाब देंहटाएं
  13. ऐसा भी क्या बहुत दिन हुए ...किसी दिन पत्नी को कहिये बना कर खिला दे चूल्हे पर रोटी , चिड़िया को दाना डाले छत पर , पौधे जमीन में ना तो गमले में ही लगा ले !

    जवाब देंहटाएं
  14. chaliye gaon ghum kar aate hain... bahut din ho gaye.. kheton ke pagdandiyaon pe chale hue.......

    जवाब देंहटाएं
  15. अच्छी बड़ी सूची है, एक-एक करके सब काम निबटा दीजिये!

    जवाब देंहटाएं
  16. आम के पेड़ों पर पहरे लगेंगे
    अगर यूँ ही नष्ट करते रहे पर्यावरण को तो शायद ..
    एक दिन हरे पेड़ अजूबे लगेगे

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत खूब संतोष जी,आप भाग्यशाली हैं जो लगातार अपने गाँव से बावस्ता हैं।

    जवाब देंहटाएं