पुस्तकों ने
बोलना बंद कर दिया है
और हमने सुनना,
हमारा बहरापन
खत्म हो जायेगा जिस दिन
पुस्तकें अपना मौन-व्रत खोल देंगी !
अभी पुस्तकों के मुँह बंद हैं
हमारी ज़बान की तरह,
बंद पड़े पन्नों पर
गर्द की मोटी परत है
हमारे पास इतना भी वक्त नहीं बचा
उन्हें झाड़ने और टहलाने का!
किताबें गुम हो गई हैं हममें
या हमीं बेखबर हैं इनसे,
जिस रोज़ हम तलाश लेंगे उन्हें
हम भी पा लेंगे खुद को !
बोलना बंद कर दिया है
और हमने सुनना,
हमारा बहरापन
खत्म हो जायेगा जिस दिन
पुस्तकें अपना मौन-व्रत खोल देंगी !
अभी पुस्तकों के मुँह बंद हैं
हमारी ज़बान की तरह,
बंद पड़े पन्नों पर
गर्द की मोटी परत है
हमारे पास इतना भी वक्त नहीं बचा
उन्हें झाड़ने और टहलाने का!
किताबें गुम हो गई हैं हममें
या हमीं बेखबर हैं इनसे,
जिस रोज़ हम तलाश लेंगे उन्हें
हम भी पा लेंगे खुद को !
आप जख्म कुरेद गये, आज पढ़ते हैं जाकर पुस्तकें..
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रतिक्रिया , अपनी बेवफाई पर-
जवाब देंहटाएंमहबूबा नाराज है, कूड़े में सरताज ।
बोल चाल कुल बंद है, कौन उठावे नाज ।
कौन उठावे नाज, अकेले खेले झेले ।
तीनों बन्दर मस्त, दूर सब हुवे झमेले ।
खाली कर ये रैक, पुस्तकें नहीं अजूबा ।
करदे या तो पैक, रही अब न महबूबा ।।
(:(:
हटाएंpranam.
हमीं बेखबर हैं इनसे ... सच तो यही है
जवाब देंहटाएंpustakonn ko apnana hoga... koshish karte hain:)
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट अभिव्यक्ति प्रेरक भाव,,
जवाब देंहटाएंresent post : तड़प,,,
मौन पुस्तकें ही ज्ञान देती है । सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट "10 रुपये के नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के" को भी एक बार अवश्य पढ़े ।
मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
जवाब देंहटाएंसंग हमारे रहना चाहती हैं
ये तो सीधा राम बाण लगा है उन सबको जो पुस्तकों को छोड़ चुके हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा.. पुस्तक हर दिन पढ़ने की आदत डालनी पड़ेगी..
संवेदना जगाती है यह रचना अपने प्रति पुस्तकों के प्रति .
जवाब देंहटाएंउम्दा शैली...वाह-वाह-वाह...
जवाब देंहटाएंkya bat kya bat kya bat
जवाब देंहटाएंपुस्तकों की जगह तेज़ी से नेट ले रहा है ...
जवाब देंहटाएंजो कुछ पल के बाद खत्म सा हो जाता है .. गहरा संबंध पुस्तकें ही रखती हैं ..
दोस्ती कल्लो भाई! जरूरी थोड़ी कि हमेशा वही हेलो कहें।
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