29 नवंबर 2012

पुस्तकें मौन हैं !

पुस्तकों ने
बोलना बंद कर दिया है
और हमने सुनना,
हमारा बहरापन
खत्म हो जायेगा जिस दिन
पुस्तकें अपना मौन-व्रत खोल देंगी !

अभी पुस्तकों के मुँह बंद हैं
हमारी ज़बान की तरह,
बंद पड़े पन्नों पर
गर्द की मोटी परत है
हमारे पास इतना भी वक्त नहीं बचा
उन्हें झाड़ने और टहलाने का!

किताबें गुम हो गई हैं हममें
या हमीं बेखबर हैं इनसे,
जिस रोज़ हम तलाश लेंगे उन्हें
हम भी पा लेंगे खुद को !
 

14 टिप्‍पणियां:

  1. आप जख्म कुरेद गये, आज पढ़ते हैं जाकर पुस्तकें..

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  2. अच्छी प्रतिक्रिया , अपनी बेवफाई पर-



    महबूबा नाराज है, कूड़े में सरताज ।

    बोल चाल कुल बंद है, कौन उठावे नाज ।

    कौन उठावे नाज, अकेले खेले झेले ।

    तीनों बन्दर मस्त, दूर सब हुवे झमेले ।

    खाली कर ये रैक, पुस्तकें नहीं अजूबा ।

    करदे या तो पैक, रही अब न महबूबा ।।

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  3. हमीं बेखबर हैं इनसे ... सच तो यही है

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  4. मौन पुस्तकें ही ज्ञान देती है । सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ।
    मेरी नयी पोस्ट "10 रुपये के नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के" को भी एक बार अवश्य पढ़े ।
    मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com

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  5. किताबें कुछ कहना चाहती हैं
    संग हमारे रहना चाहती हैं

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  6. ये तो सीधा राम बाण लगा है उन सबको जो पुस्तकों को छोड़ चुके हैं..
    बहुत अच्छा लगा.. पुस्तक हर दिन पढ़ने की आदत डालनी पड़ेगी..

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  7. संवेदना जगाती है यह रचना अपने प्रति पुस्तकों के प्रति .

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  8. पुस्तकों की जगह तेज़ी से नेट ले रहा है ...
    जो कुछ पल के बाद खत्म सा हो जाता है .. गहरा संबंध पुस्तकें ही रखती हैं ..

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  9. दोस्ती कल्लो भाई! जरूरी थोड़ी कि हमेशा वही हेलो कहें।

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