22 अगस्त 2012

लाठी और उँगली का सहारा !

भइया(पिताजी) और अम्मा,जून २०११  

लाठी लिए हाथ में
कंपकंपाते हुए
पिताजी अपनी तरुणाई में
रस्ते पर बढ़ते हैं
गोद में हमको उठाकर
पगडंडियों पर कभी
जो दौड़ लगाते  थे |

हटिया के मेले में
उँगली पकड़
पूरा मेला घुमाते
बड़े खिलौनों में खामी बताकर
डमरू और पिपिहिरी से
हमारी ज़िद को मनाते थे |

घर की दहलीज से बाहर
कभी हो-हल्ला किया
या काका की भैंस खोल दी तो
अम्मा को डाँटते
हमें दो-चार चपत लगाते थे |

किताब लेकर बैठता तो
कोई काम या अढ़वा न कहते
मेरी किशोरावस्था

 
समय निकालकर
इमला बोलते
और पहाड़े रटाते थे |

सालों बाद
जब हम इतनी दूर हैं
अकसर हमारा हाल पूछते हैं
हम हैं कि अब भी
अपने पिताजी से
लाठी नहीं छीनते
अपनी उँगली पकड़ाते हैं ||





45 टिप्‍पणियां:

  1. ऊंगली पकड़ लो
    तो अनुभवी बनते हो
    फिर मजबूत अंगूठा बनते हो
    उस अंगूठे को दिखलाकर अंगूठा
    चिढ़ाते हो ऊंगली को
    और अपनी चालबाजी से
    'बाज' नहीं आते हो
    और 'उल्‍लू' बनाने का करते हो प्रयत्‍न
    बना लिया तो 'रत्‍न'
    वरना जारी रहता है 'प्रयत्‍न'।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ....आपको तो समझना भी ख़तरनाक है !

      हटाएं
    2. इनको जो समझ जाओगे
      तो फिर इनके हाथ कहाँ आओगे
      उतना ही समझ लो काफी है
      जितने में फिसलने से बच जाओगे ।

      हटाएं
  2. हमेशा ही एक अंगुली की जरूरत होती है | इसे बनाये रखना चाहिए | सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. कितनी भी दूर हों हम ... इस उंगली के पकड़े होने का अहसास

    हमेशा पास रखता है ...
    उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ... आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ...कभी-कभी प्रस्तुति गड़बड़ भी बता दिया करो सदा जी !

      हटाएं
  4. हम कितने भी बड़े हो जाएँ ..माता-पिता के लिए बच्चे ही रहते हैं..उतने ही नासमझ जितने बचपन में हुआ करते थे.
    बचपन के संस्मरण हों या उनकी याद करते हुए कुछ भी लिखना-पढ़ना , सुनना-सुनाना हमेशा ही मन को छू जाता है.
    'काकी की भैंस खोल देते थे?'लगता है ,बचपन में आप खूब शरारती रहें हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भैंस तो काका की थी...।

      ....वैसे मैं बचपन में बड़ा सीधा था !

      हटाएं
  5. गजब!, लाठी लिए हुए भी हमारी अंगुली थाम लेते है। कितने समर्थ?
    और अगर हमारे कंधे पर हाथ रखे तो वे कमजोर झुकते चले जाते है।

    जवाब देंहटाएं
  6. एक समय आता है जब अपने सहारे का सहारा बनना ही पड़ता है .
    शुभकामनायें आपको और पिताश्री को भी .

    जवाब देंहटाएं
  7. कद-काठी छ: फुट दिखे, चुस्त पिताजी बेश ।

    नाक नक्श तो एक से, तनिक अलहदा केश ।

    तनिक अलहदा केश, रेस करवाया करते ।

    माँ न करे क्लेश, हाथ में ऊँगली धरते ।

    मन रविकर भरजाय, आज वे टेके लाठी।

    चौथे पन में आय, रही वो कद न काठी ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. rahe nahin o kad na o kathi.....
      balyapan ke baten karte jajbati...

      dil karta unhen mela le jawoon...
      kachri-jhhilli aur murhi oonhen khilawwon....


      pranam.

      हटाएं
  8. पिता का सहारा बहुत बड़ा होता है ... सुंदर भाव

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह ... भावनाओं का संगम लिए ... ये सच है की बच्चे बड़े होने पर भी ऊँगली थामते हैं ... सहारा नहीं दे पाते ... दिल के गहरे एहसास को शब्द दिये हैं आपने ... बहुत खूब ..

    जवाब देंहटाएं
  10. एक उँगली जीवन पार करा देती है..बहुत सुन्दर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  11. आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊँ,
    कल हाथ पकडना मेरा जब मैं बूढ़ा हो जाऊं,
    टू मिला तो मैंने पाया, जीने का नया सहारा
    मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा..
    /
    बस इससे अधिक की चाहत नहीं होती उस वृद्ध महापुरुष को!! इतना भी किया तो बहुत है!!
    माट्साब, कमाल के भाव हैं कविता में!!

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर कविता.....एक उम्र के बाद रोल एक्सचेंज हो जाते हैं.....जिनकी उंगलियां थाम बड़े हुए हम उनके हाथ थामना क्यूँ भूलते हैं हम...
    पापा बेटा एकदम लुक अलाइक :-)
    अब उनकी एक लेटेस्ट फोटो भी दिखाएँ सो सब समझ जाए कि २० साल बाद आप कैसे लगेंगे :)

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिलकुल जी...सब लोग यही कहते हैं कि शकल मिलती है.उनकी नई फ़ोटो जल्द डालता हूँ ।

      हटाएं
  13. उंगलियां थमाने वाले हाथों में अपना हाथ थमाना याद रह जाए यही मूल तत्व है ......

    जवाब देंहटाएं
  14. बचपन के सीधे को
    पिता की अंगुलियों का सहारा
    नवपिता की स्मृतियों के दरीचों से
    पुरनियां सहारे को इशारा
    सहारे और इशारे आगत हर पल में
    बस यूंहीं जीवित बने रहते हैं

    जवाब देंहटाएं

  15. पिता को समर्पित आपकी यह शब्दांजलि मन को भा गई।
    ..........
    हम हैं कि अब भी
    अपने पिताजी से
    लाठी नहीं छीनते
    अपनी उँगली पकड़ाते हैं ||

    ...यहाँ लाठी छीनने से मतलब खुद लाठी बन जाने, सहारा बन जाने से है..का भाव मान कर चलता हूँ। अगली पंक्ति..अपनी उँगली पकड़ाते हैं..से यह भाव आता है।
    ...नमन आपकी यादों में बसे पिता श्री को, नमन आपकी शब्दांजलि को।..बधाई।

    

    जवाब देंहटाएं
  16. हृदयस्पर्शी कविता ..... जिन्होंने जीवन भर संभाला है उन्हें संभाल लें .... इससे अच्छा क्या...?

    जवाब देंहटाएं
  17. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-08 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... मेरी पसंद .

    जवाब देंहटाएं
  18. wah ! bahut acchi kavita.....sach may umar kar har padav par hume mata pita ki zaroorat padti hi hai........

    जवाब देंहटाएं
  19. बेहतरीन ....बहुत सुन्दर रचना .........पिता का पालन भाव ही बड़ा होता है

    जवाब देंहटाएं
  20. बेटा कितना भी कसरत कर ले
    सेर ही हो पाता है सवा सेर नहीं
    बाप लेकिन बेटे को सवा कहता है
    देखता है जब कि वो सेर भी
    नहीं हुआ अभी !

    जवाब देंहटाएं
  21. पिता का स्नेह धरती और आकाश होता है हमारा । यह नही तो सब कछ होकर भी कुछ नही होता । बहुत भावपूर्ण रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  22. पिता की स्थिति एक छाते की तरह होती है।पिता ही सब कुच होता है। बहुत ही भाव-प्रवण पोस्ट।धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  23. दो पीढ़ियों का अर्थ समझाती रचना .पिता तो होता ही एक स्वार्थ हीन छाता है ,खुद धूप खा औरों को बचाता है .बढ़िया और मर्म को छूने वाली भाव विरेचक रचना ,लिखी आपने एहसास सांझा है ...कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं .
    गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

    जवाब देंहटाएं