भारतनगर में सुख-शांति का माहौल था|काफ़ी दिनों से ख़बरें फीकी-फीकी सी आ रही थीं|लोग अपने काम-काज में इतने व्यस्त और मस्त थे कि नगर में हो-हल्ला बिलकुल थम सा गया था|राम लाल और नूर मुहम्मद आपस में गहरे मित्र थे|भारतनगर के भाग्य का फैसला भी इन्हीं के हाथ में था.दोनों अपने-अपने इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में शुमार थे|शहर की इतनी शांति को देखकर दोनों को हैरानी हो रही थी|शहर की भलाई के लिए दोनों ने एक बैठक करने का फैसला किया|
राम लाल और नूर मुहम्मद की फ़ोन पर अकसर बातचीत होती थी,पर समाजसेवा और समुदाय की भलाई के लिए वे आपस में कम ही मिलते थे|अब जब छः महीने बाद नगरपालिका के चुनाव होने थे,ऐसे में शहर में इतनी शांति होने से वे चिंतित हो गए|इसलिए दोनों के शुभचिंतकों ने आज आखिर उनकी मुलाक़ात करा ही दी|दोनों दोस्तों ने गहन विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो शहर और वे दोनों खबर से बाहर हो जायेंगे|लोगों को उनके बिना जीने की आदत पड़ जायेगी,जिससे उनके कार्यकर्त्ता भी निकम्मे हो जायेंगे|साथ ही,समाज-सेवा के पुण्य-कार्य का अवसर उन्हें बराबर मिलते रहना चाहिए|इस बात पर दोनों में गंभीर सहमति बन गई|
भारतनगर के भविष्य का फैसला हो गया था|शाम होते-होते दोनों के कारिंदे अलग-अलग दिशाओं में बढ़ चुके थे|राम लाल और नूर मुहम्मद ने पहले से ही प्रेस-विज्ञप्ति तैयार करवा ली थी,जिसमें शहर में अमन और शांति बनाये रखने की अपील की गई थी|
धर्मनिरपेक्ष अपील!!
जवाब देंहटाएंआह!, कितना भाईचारा,कितना सौहार्द!!
समाज में शान्ति के कार्यों के लिए हमेशा अवसर उपलब्ध रहने चाहिए न!!
वाह......
जवाब देंहटाएंजनता जाने कब समझेगी इन राम लालों और नूर मोहम्मदों की चालें....
बढ़िया व्यंग...
सादर
अनु
मरें प्रतिष्ठा के लिए, जिन्दा झूठी शान |
जवाब देंहटाएंपूंछ पकड़कर कर रहे, मरती बछिया दान |
मरती बछिया दान, सुअर मस्जिद में घुसता |
राक्षस नहीं अघान, जला घर लेता सुस्ता |
होय घात प्रतिघात, रात दिन होता खेला |
सत्ता की शय-मात, लगा लाशों का मेला ||
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजाने दिन कब आएगा,जब समझेगें लोग
जवाब देंहटाएंभारत भविष्य सवारने,कब बनता संजोग,,,,,
जब तक लोग जाति-धर्म के नाम पर वोट करते रहेंगे ऐसी तैयारशुदा अपीलें खीसों में रखने वाले यहां परमानेंट जमे रहेंगे.
जवाब देंहटाएं(अच्छा लिखा है आपने)
पहली बार लिखी है लघुकथा । आभार
हटाएंक़ौमी एकता के खम्भे!
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहती लघु कथा....
जवाब देंहटाएंसदा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंपहली बार लिखी लघुकथा असरदार रही .
जवाब देंहटाएंसही सार .
राम लाल और नूर मुहम्मद आपस में गहरे मित्र थे|
जवाब देंहटाएं...राम लाल और नूर मुहम्मद आज भी गहरे मित्र हैं|
पुनः वही कहानी, कभी तो लोग समझें..
जवाब देंहटाएंइशारों इशारों में बडी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंईद की दिली मुबारकबाद।
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हर अदा पर निसार हो जाएँ...
यही हो रहा है ...
जवाब देंहटाएंअसली बात तो राजनीति की है ... दोस्त तो वो पहले भी थे आज भी हैं ... गहतरा कटाक्ष ....
जवाब देंहटाएंलगता है, अपीलों का असर आ रहा है....
जवाब देंहटाएं............
डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
आज 02/10/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आपका और विभा जी का !
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