29 अगस्त 2012

परिकल्पना से उनका कलपना !

वे बड़ी बेसब्री से किसी गंभीर खबर की प्रतीक्षा में थे. हर जगह टटोल और टोह रहे थे,पर कुछ ऐसा जो उन्हें चाहिए था,दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था. इस बहु-प्रतीक्षित मौके को वे अपने हाथ से यूँ ही जाया नहीं होने देना चाहते थे इसलिए वे अपनी ही फैक्ट्री की बनी लंबी टॉर्च लेकर हर अखबार ,उसके हर कॉलम और खबर पर उन्होंने दनादन्न बत्ती देना शुरू किया.कहीं किसी कोने में उन्हें अटका,मटका या खटका हुआ चेहरा नज़र आ जाये तो उनका जनम सुफल हो जाता पर धत तेरे की,अखबार वाले भी नालायक निकले.उन्होंने पहले से ही वैज्ञानिक-प्रतिभासंपन्न  और खिलखिलाते चेहरों को और गेट-अप दे दिया था.उनकी ख्वाहिश दम तोड़ती नज़र आई तो उन्होंने अपनी पुरानी खुरपेंची टॉर्च की लाइट सोशल-साइट पर भी मारी,पर वहाँ भी कई नासपीटे उन्हें अपने-अपने सम्मान का ढोल पीटते, ज़श्न मनाते नज़र आए.बस ,यहीं से उनका हाजमा खराब हो गया और तबीयत बिगड़ने लगी.

वे थोड़ी देर तक बरामदे में टहलते रहे,कभी अंदर,कभी बाहर घूमें भी पर दिल में बड़ा-सा पत्थर गड़ रहा था इसलिए ज़्यादा देर और दूर तक नहीं जा पाए .आखिर इसी दिन के इंतज़ार में उन्होंने सालों-साल कलम घिसने में नहीं लगाये थे.पहले ही जब उस नामुराद परिकल्पना की कल्पना और रूपरेखा का सृजन हो रहा था,तभी उसकी भ्रूण-हत्या करने की उन्होंने अपनी तरफ से जमकर कोशिश की थी,पर कुछ बलिष्ठ,वरिष्ठ और जमे-जमाए महंतों की वज़ह से उनकी इस महत्वकांक्षी योजना को पलीता लग गया था,पर वे ठहरे चिरकालीय विघ्न-संतोषी,अपने अंतिम अस्त्र चिरकुटई को बाहर निकाला,थोड़ा रगड़ा और की-बोर्ड पर गिटिर-पिटिर करने में जुट गए.वे अपना ज़हर बाहर करने पर उतारू हो चुके थे.

उनके कम्प्यूटर के टंकण-स्थल अचानक लहलहा उठे.मानों बरसों पुरानी प्यास पूरी हो रही हो.वे बार-बार बीच में अपने मुस्तैद संवाददाताओं को फोनिया भी रहे थे.उन्हें लग रहा था कि ज़रूर कहीं से भीषण आगजनी और गोलाबारी की खबर देर-सबेर आएगी.एक समर्पित कार्यकर्त्ता ने किसी रिमोट-स्थान से एक खबर का फैक्स उन्हें भेजा जिसमें लम्पटों की बढ़ती तादाद पर चिंता जताई गई थी.वैसे तो यह खबर उनके लिए सुकून देने वाली होती पर वे सुदूर की सोचने लगे.अगर ऐसा ही चलता रहा तो फ़िर उनकी सर्वमान्यता पर भी खतरा पैदा हो जायेगा.वे बीच में कवितायेँ बांचने लगे.इससे उनको अपने सरोकार को थुनाही (छप्पर साधने वाला जुगाड़ )मिल जाती है.

उन्होंने अपनी टॉर्च को आखिरी बार सूरज की ओर लपकाया,चमकाया और अपनी समझ से उसकी रोशनी को चुनौती दे दी थी.अब तक उनके दिल का दर्द और पेट के मरोड़ में आराम आ चुका था.उनकी अपने गिरोह के दो-तीन सक्रिय कार्यकर्ताओं से अग्रिम शाबाशी मिल चुकी थी और अब तक वह अगिया-बैताली लेख भी तैयार हो चुका था,जिससे वे कई खुशफहम चेहरों पर कालिख पोतने वाले थे .उनका की-बोर्ड उन्हें बार-बार गदगद-भरी नज़रों से निहार रहा था.आखिर उन्हें भी कहीं से इतनी प्यारी नज़र मिल ही गई थी .

22 अगस्त 2012

लाठी और उँगली का सहारा !

भइया(पिताजी) और अम्मा,जून २०११  

लाठी लिए हाथ में
कंपकंपाते हुए
पिताजी अपनी तरुणाई में
रस्ते पर बढ़ते हैं
गोद में हमको उठाकर
पगडंडियों पर कभी
जो दौड़ लगाते  थे |

हटिया के मेले में
उँगली पकड़
पूरा मेला घुमाते
बड़े खिलौनों में खामी बताकर
डमरू और पिपिहिरी से
हमारी ज़िद को मनाते थे |

घर की दहलीज से बाहर
कभी हो-हल्ला किया
या काका की भैंस खोल दी तो
अम्मा को डाँटते
हमें दो-चार चपत लगाते थे |

किताब लेकर बैठता तो
कोई काम या अढ़वा न कहते
मेरी किशोरावस्था

 
समय निकालकर
इमला बोलते
और पहाड़े रटाते थे |

सालों बाद
जब हम इतनी दूर हैं
अकसर हमारा हाल पूछते हैं
हम हैं कि अब भी
अपने पिताजी से
लाठी नहीं छीनते
अपनी उँगली पकड़ाते हैं ||





18 अगस्त 2012

अमन की अपील !

भारतनगर में सुख-शांति का माहौल था|काफ़ी दिनों से ख़बरें फीकी-फीकी सी आ रही थीं|लोग अपने काम-काज में इतने व्यस्त और मस्त थे कि नगर में हो-हल्ला बिलकुल थम सा गया था|राम लाल और नूर मुहम्मद आपस में गहरे मित्र थे|भारतनगर के भाग्य का फैसला भी इन्हीं के हाथ में था.दोनों अपने-अपने इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में शुमार थे|शहर की इतनी शांति को देखकर दोनों को हैरानी हो रही थी|शहर की भलाई के लिए दोनों ने एक बैठक करने का फैसला किया|

राम लाल और नूर मुहम्मद की फ़ोन पर अकसर बातचीत होती थी,पर समाजसेवा और समुदाय की भलाई के लिए वे आपस में कम ही मिलते थे|अब जब छः महीने बाद नगरपालिका के चुनाव होने थे,ऐसे में शहर में इतनी शांति होने से वे चिंतित हो गए|इसलिए दोनों के शुभचिंतकों ने आज आखिर उनकी मुलाक़ात करा ही दी|दोनों दोस्तों ने गहन विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो शहर और वे दोनों खबर से बाहर हो जायेंगे|लोगों को उनके बिना जीने की आदत पड़ जायेगी,जिससे उनके कार्यकर्त्ता भी निकम्मे हो जायेंगे|साथ ही,समाज-सेवा के पुण्य-कार्य का अवसर उन्हें बराबर मिलते रहना चाहिए|इस बात पर दोनों में गंभीर सहमति बन गई|

भारतनगर के भविष्य का फैसला हो गया था|शाम होते-होते दोनों के कारिंदे अलग-अलग दिशाओं में बढ़ चुके थे|राम लाल और नूर मुहम्मद ने पहले से ही प्रेस-विज्ञप्ति तैयार करवा ली थी,जिसमें शहर में अमन और शांति बनाये रखने की अपील की गई थी|

13 अगस्त 2012

आलोचनाएं अपने गले में डाल लो !

तुम्हारी
रोज़-रोज़ की चिक-चिक से
मैं तंग आ चुका हूँ,
मेरे कान
पक गए हैं
तुम्हारी उल-जलूल बातें सुन-सुनकर .
हमने तुम्हें
आज़ादी क्या दे दी बोलने की
तुमने
आसमान ही सिर पर उठा लिया.
मुझे अपनी चाल से
आगे बढ़ना ही अच्छा लगता है.
मैं बढ़ता हूँ समगति से,
पैरों से कुचलते हुए तिनकों को,
मंजिल की तरफ |

तुम्हारी आलोचनाएं
अब ऊब पैदा करती हैं
मुझे कचोटती नहीं |
सबके साथ
एक-सा व्यवहार करूँ,
मैं समदर्शी भी नहीं |
मुझे दिखता है केवल
मेरा सपना
और सुनाई देती है
अपनों की आवाज़ ,
हर दिन,हर रात
सुनती हैं विरुदावालियाँ |

क्या करूँ,
मेरे दर्पण में
मेरा ही चेहरा दिखता है
मैंने उसे अपनी जेब में ले रखा है
ताकि और कोई उसमें
कभी अपनी सूरत न पहचान ले
खुद से ज़्यादा ,
हमें जान ले !

तुम्हारे सपनों से
मुझे कोई नहीं वास्ता,
उन्हें मुल्तवी रखो
आखिरी साँस तक |
आलोचनाओं को
पिरोकर डाल लो अपने गले में
मैंने हार की मालाएं
पहननी छोड़ दी हैं !

9 अगस्त 2012

कुछ छुट्टा अहसास !

१)
हर हाथ को काम,
हर हाथ है वोट ,
मोबाइल थमा के
लेंगे बटोर नोट,
लाइसेंसी लूट-खसोट !

२)
हमें हर खेल में
मात मिली है,
राजनीति और ओलम्पिक में
सत्ता ने चाल चली है,
आगे अंधी गली है !


३)
एक चाँद था
जो था फ़िदा
फिज़ा के अंदाज़ पर,
मावस की रात आई
चाँद छुप गया कहीं
फिज़ा बदहवास थी
चाँदनी-सी बिछ गई
पुरुष की बिसात पर !!

5 अगस्त 2012

संयुक्त-राष्ट्र चले जाओ जी !


जब से देश की राजनीति से लालू-तत्व नदारद हुआ है,हमें ठठाकर हँसने का मौका शायद ही मिला हो. लगता है कि इस बात को हमारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने समझा है,तभी हमें पिछले कुछ दिनों से ज़ोरदार हँसी का अहसास कराया जा रहा है.सबसे मौलिक और सुखद अनुभूति हमारे कानून मंत्री ने कराई है.अन्ना टीम द्वारा लोकपाल की माँग पर उन्होंने सीधे और निष्कपट भाव से यह कहा कि भइया,इस बारे में अगर कुछ करना ही चाहते हो तो ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ चले जाओ,हम आपकी और सेवा नहीं कर सकते.सच पूछिए,इस बयान की साफ़गोई से हम तो बिलकुल गदगद हुए जा रहे हैं.

वैसे हम सबको आनंद प्रदान करने की यह इनकी पहली कोशिश नहीं है.इससे पहले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में ये अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज़ करा चुके हैं.तब हमें हंसाने के लिए ये खुद रोने लगे थे और सुबकते हुए बोले थे कि बाटला कांड को सुनकर उनकी नेता भी ऐसे ही जार-जार रोई थीं.हमें तो लगता है कि उनकी इस बात से इनकी पार्टी के समर्थक इतना दुखी हो गए कि वे वोट डालना ही भूल गए.फ़िर भी,अपने नुकसान की क़ीमत पर अगर इनका ज़ज्बा क़ायम है तो यह बड़ी बात है.

इस सरकार को महंगाई से इतना दुःख है कि वो लगातार हमें हंसाने और खुश रखने का प्रयास कर रही है.समय-समय पर इसके सहयोगी दल भी इस काम में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं,पर मुख्य सत्ता दल होने के नाते कांग्रेस अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहती.इसलिए उसके एक और मंत्री ने अन्ना-टीम के आन्दोलन को ड्रामा करार देने में ज़्यादा समय नहीं लिया.उनका मतलब यही था कि ड्रामा होगा तभी तो जनता का मनोरंजन होगा.वे भी यही चाहते हैं कि जनता ड्रामा देखती रहे और बाकी चीज़ें भूल जाय.

अभी लगातार दो दिन तक हमारे देश में बिजली के ग्रिड फेल हो गए ,तो अधिकतर हिस्से अँधेरे में ही मगन थे.बिजली मंत्री ने उन्हें यह कहकर खुश कर दिया कि इसी तरह के हालात से अमेरिका भी जूझा है और उसे उबरने में तो चार दिन लगे थे,जबकि हमने यह कमाल सिर्फ दस घंटे में ही कर दिखाया है.सरकार ने भी उनकी बात और उनके काम को गंभीरता से लिया और तुरत ही पदोन्नति के आदेश दे दिए.सुनते हैं कि मंत्रीजी ने भी नए मंत्रालय को सँभालने से पहले ही अमेरिका में हुई कई ऐसी घटनाओं का रिकॉर्ड तलब कर लिया है ताकि समय आने पर वे उनकी नज़ीर देकर हमारा मनोरंजन कर सकें.

हम तो कहते हैं कि बिजली नहीं है,पानी नहीं है,सड़क नहीं है तो बेखटके हम सबको संयुक्त राष्ट्र की शरण में जाना चाहिए क्योंकि वो भी समझदार है कि हमारी सरकार का मुखिया कितना लाचार है.अब जब तक राहुल बाबा का आगमन नहीं होता,लोकपाल तो छोड़ो, हमें हर ऐसे काम के लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र का मुँह देखना पड़ेगा.इससे हमारी पीर भी कम होगी और सरकार की भी.पर,यह भी हो सकता है कि ऐसा करते-करते हमारी इतनी आदत पड़ जाय और आगामी चुनावों में भी हम वोट मांगने वालों से कह दें कि भइया,आप भी संयुक्त राष्ट्र चले जाओ,वोट भी वही देगा,तब कैसा रहेगा ? कभी उनको भी तो हँसने का मौका हमें देना चाहिए कि नहीं..?