13 अप्रैल 2012

तुम आओ तो आ जाओ !


डायरी के पुराने पन्नों को
उलट-पुलट के देखता हूँ,
तुम्हारी मुलाकातों का ज़िक्र
अब अतीत में ढूँढता हूँ.
खुद की पकड़ में सूर्यास्त 

सोचता हूँ,
इसी बहाने
तुमसे फिर मुलाक़ात हो जाये,
न वे दिन रहे,न तुम
जब घूमते रहे हम बौराए.

तुम्हारा हँसता-खनकता चेहरा
बाखुदा,अब भी मुझको याद है,
आम के पत्ते जब सिमट गए थे,
गुलाब चू पड़ा था,
तुम्हारी जुल्फ के झोंके से !

बसंत भी ठिठक गया था
निहारकर तुम्हें,
और तुमने उसी अंदाज़ से
अवाक् कर दिया था मुझको !

बिलकुल उसी तरह
अवाक हूँ मैं आज भी ,
इसीलिए
तुम्हें पन्नों में
गर्द पड़े हर्फों में
तलाश रहा हूँ इधर-उधर  !

तुम्हारा इंतजार है
हकीकत में
सपनों में,
पर अब तुम खामोश हो
युगों से,
अनजान हो
मेरे एहसास से,
और यह कि तुम तनहा हो !

तुम आओ तो आ जाओ
मेरे लिए,अपने लिए ,
क्या तुम्हें भी इंतजार है
हमारे खामोश होने का ,
मेरी तन्हाई का ?

99 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे यह तो बड़ी गहन है ....जो बिछड़े वे कब मिले हैं फराज ..फिर भी तू इंतज़ार कर शायद!

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    1. अत्यन्त भावपूर्ण और अतीतोंमुखी कविता ! वर्तमान यदि तुलनात्मक रूप से असंतोषप्रद हो तो अतीत आह्लाद भरता है ! उससे वे क्षण एक बार फिर से मांग लेना चाहिये जो संतोष दें ! लगता है कि आपकी डायरी इस तरह के मामलात में काफी समृद्ध है यानि कि वर्तमान के भूगोल से अतीत का इतिहास ज्यादा बेहतर प्रतीत होता है :)

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    2. मान गए हम आप को,रखते सबका मान
      वर्त्तमान को भी अतीत के हाथो करते दान

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    3. अली साब....भूगोल के मामले में मैं हमेशा अनलकी रहा हूँ...अतीत के ही भरोसे जीने की कोशिश जारी है,डायरी में मगर अब कुछ नहीं मिलता !

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    4. मिश्रजी...यह सब आपकी सोहबत का असर है !

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  2. यह इंतज़ार बड़ा बेबस कर देता है ... बेहद उम्दा लिखा आपने !

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  3. यादों की घनी छाँव तले लिखी गाई गहन अभिव्यक्ती .....मर्मस्पर्शी है ...
    शुभकामनायें ....!

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    1. यादों की यह छाँव ही,जीवन का आधार
      खुसनसीब होते यहाँ, जो पाते हैं प्यार

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    2. अनुपमजी...आभार आपका और शुभकामनाएँ भी !

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  4. यादों के आँगन में दिल के रास्ते स्मृतियों की आवाजाही का संवेदनशील चित्रण !

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    1. दिल के आँगन में स्मृतियों का बाजार लगायेगें
      आज यहाँ कल और कही पर हम दूकान सजायेगें

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  5. माट्साब!
    दोनों तनहा हैं अपनी-अपनी दुनिया में..
    शायद पूर्णता तभी संभव है जब दोनों तन्हाइयां मिल जाए.. शून्य के साथ शून्य मिलकर ही परिपूर्ण बनता है! लगता है पिछली यात्रा में गाँव की पुरबाई छूकर गुजारी है!! बरकरार रखिये!!

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    1. बनने आये कुछ यहाँ,क्यां बन बैठे, यार
      शून्य मिला के पूर्ण की रचना की साकार

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    2. सलिलजी....आप गहरी नज़र रखते हैं...आभार

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  6. पुरानी यादों की कशिश तड़पाती भी है और जिलाए भी रखती है...भावुक कविता

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    1. सच कहना है आप का नारी ठहरीं आप
      बात काट कर आप की,लेना है क्यां श्राप

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    2. दीपिका जी....अतीत के सहारे ही समय व्यतीत हो रहा है !

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  7. उफ़ !!

    बहुत मुश्किल,

    समझाना दिल ।

    आज भी हुलकता-

    अब तो मिल ।।

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    1. इतना मत हुलाकाइये,दिल आखिर है दिल
      होश उडा ले जाएगा ,माशूका का बिल

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  8. तडपते थे हम एक दिन अपने प्यार में कभी,
    मुझको भुला के तुम वह दिन न भुला सकोगी!

    अनुपम भाव लिए पुरानी यादो की कशिश में लिखी सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट संतोष जी

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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    1. आप यहाँ भी आ गये ,देने को संतोष
      अरे संभल भी जाइये,घर में फैला रोष

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  9. सोचता हूँ,
    इसी बहाने
    तुमसे फिर मुलाक़ात हो जाये,
    bahut sundar srijan, aabhaar.

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    1. इतना भी मत सोचिये,बहुत बड़ा ये रोग
      कही आप को लग गया,भूलेगा हर भोग

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  10. यादों की बरसात में ,भीग रहे क्यूँ यार
    घर वापस भी जाइये,वही मिलेगा प्यार

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  11. बहुत सुंदर................
    डायरी के पन्नो में जाने क्या क्या छुपा होता है......

    सादर.

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    1. पन्नो में क्यां क्या लिखा पढ पाते जो यार
      कहते सबसे बस यही नहीं करेगें प्यार

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    2. अनु जी,पर आपकी डायरी ज़्यादा समृद्ध है !

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  12. तुम आओ तो आ जाओ
    पहले भी ऐसे ही भगाते थे
    बुलाते थे और जाने के लिए
    जाओ कहकर जोर से चिल्‍लाते थे
    इसलिए अब दोबारा आना
    नहीं है पॉसीबल
    अब नहीं है किसी में इतना बल
    कि आए और फिर जाए
    अब इतना चला नहीं जाता
    आएंगे तो ठहरेंगे
    ठहरेंगे तो अगले दिन भी
    नहीं जाएंगे
    फिर आप शोर मचाओगे
    अतिथि कब जाओगे
    जबकि हम अतिथि नहीं हैं
    आपने बुलाया है
    पर जाओ पहले ही सुनाया है।

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  13. माफी सबसे चाहता ,माफ करेगें यार
    इसी बहानें चाहता आप सभी का प्यार
    कल कहाँ मिलूगा इंतजार करिये....शुभ रात्रि

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    1. कुछ लोग अपने निशान छोड़ने में समर्थ होते हैं, शुभकामनायें विजय सिंह !

      हम जहाँ पंहुचें वहां कुछ ख़ास लगना चाहिए,
      हम विदा हो जाएँ तो पदचिन्ह रहने चाहिए !

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    2. आते ही कर दी विजय,दोहों की बौछार,
      रविकर भाई की तरह,लिया नया अवतार !!

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    3. सतीशजी,
      आप जहाँ जाते हैं,खुशहाली छा जाय,
      कविता पूरे रंग में ,संग पधारे आय!

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    4. यह नज़र आप जैसे मित्रों की है , अन्यथा कई लोग बड़े खफा रहते हैं ...
      नज़र नज़र का फर्क है !
      दोस्तों की दुआएं चाहिए !
      आभार भाई जी ...

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  14. बहुत ही सुंदर और प्यारी कविता... मन के भावों का मंद मंद झोंका मन प्रसन्न कर गया.

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  15. तुम आओ तो आ जाओ
    मेरे लिए,अपने लिए ,
    क्या तुम्हें भी इंतजार है
    हमारे खामोश होने का ,
    मेरी तन्हाई का ?

    .............इस आभास को बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है!

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  16. बसंत भी ठिठक गया था
    निहारकर तुम्हें,
    और तुमने उसी अंदाज़ से
    अवाक् कर दिया था मुझको !.... बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति

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  17. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.......

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  18. डायरी के पन्नों से निकल के साक्षात सामने आ जाएँ और फिर हम दोनों उन लम्हों में खो जाएँ ...
    गजाब का एहसास है ...

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  19. वक़्त बदला न बदला, कोई बात नहीं
    तू जो बदला तो मैं टूट के गिर जाऊंगा

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  20. राह तके हैं, थाल सजाये, सुख आता ही होगा, घर में।

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  21. पुकार दिल से होगी तो वे जरूर आयेंगी । सुंदर रचना ।

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  22. भाउक दिल की मीठी पुकार।

    वैसे मैं जब अपने डायरी के पुराने पन्ने पलटता हूँ तो मनाता हूँ...

    तू आये तो
    तू ही आये
    पूरी
    वैसी की वैसी
    जैसी थी
    तीस साल पहले :)

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    1. ...भाई,उसकी कोई उम्र नहीं,कोई मियाद नहीं,
      जब भी कोई देखे,सदाबहार दिखे !

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  23. यानि किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है !
    इंतज़ार में जो सुख है , वह मिलन में नहीं ।
    बाकि तो देवेन्द्र जी ने दुखती रग पर हाथ रख ही दिया ।

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    1. डॉ.साब ,मिलन में आनंद नहीं है,इसीलिए श्रृंगार रस में वियोग का अलग ही मजा है !

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  24. कृपया अवलोकन करें

    vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....

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  25. बहुत खूब अभिव्यक्ति !! सच कहा आपने, कि वो आ जाएगी तो रचना नहीं रह जाएगी, वियोग ही रचना को जन्म देता है !

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  26. कृपया अवलोकन करे ,मेरी नई पोस्ट ''अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी''

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  27. बहुत खूब ..... मन के सरल भावों को सुंदर शब्द दिए .....

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  28. गुलाब चू पड़ा था,
    तुम्हारी जुल्फ के झोंके से !

    सुंदर...
    शुभकामनायें आपको !

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  29. अद्भुत एहसास - उन लम्हों का.... मजेदार.. सादर.

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  30. बसंत भी ठिठक गया था
    निहारकर तुम्हें,
    और तुमने उसी अंदाज़ से
    अवाक् कर दिया था मुझको !
    वाह .......
    बेहतरीन रचना
    अरे विजय जी यहाँ भी ..........

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    1. विजय जी ने बरसात कर दी,आपने भेजा था क्या ?
      आभार विक्रम भाई !

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  31. कभी- कभी किसी एक के न होने से कितना सूनापन हो जाता है.
    भावुक करती कविता.

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  32. सोचता हूँ,
    इसी बहाने
    तुमसे फिर मुलाक़ात हो जाये,
    न वे दिन रहे,न तुम
    जब घूमते रहे हम बौराए.
    ....सब समय के फेर है ....
    बीते लम्हें यूँ ही देर सबेर मन में उमड़-घुमड़ उठते हैं ..
    बहुत बढ़िया रचना

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  33. बैसवारी जी कहाँ छुप कर बैठे आप ,
    कविता वाली दे गई,लगता लाली पाप .

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    1. ...हमें तो लगा था कि कविता वाली आप ही हैं !

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    2. अरे नही ऐसा मत करना,शाक लगेगा मुझको तगड़ा
      ब्लॉग जगत को मिल जायेगा,मिर्च -मशाला तगड़ा
      मानी नेक सलाह आपकी,नाम बदल है डाला
      पीने वाले कही आ गए,मुझे समझ मधु-शाला

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  34. उत्तर
    1. प्रेम भाई ! आपके पास कित्ते निमंत्रण-कार्ड हैं ?

      आभार !

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    2. कार्ड बहुत रखते भाई जी ,भले कार्ड न चलते
      भरत संग उर्मिला मिलाया,तुलसी की न सुनते ?

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  35. kuch rishte sirf yaadon aur panno mein hi simat kar rah jate hai...sundar prastuti

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  36. तुम्हारा हँसता-खनकता चेहरा
    बाखुदा,अब भी मुझको याद है,
    आम के पत्ते जब सिमट गए थे,
    गुलाब चू पड़ा था,
    तुम्हारी जुल्फ के झोंके से !

    बहुत ही बेहतरीन कविता, सुन्दर भाव लिये, उस भूमि का प्रभाव है जहाँ से आप है,हिन्दी भाषा के नए रूप के जनक परम पूज्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की धरा से,j

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  37. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  38. सुन्दर,गहरे भाव, मनभावन अभिव्यक्ति .-वाह

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