अभी तक हम अनजान थे इस बात से
कि विचार के कई रंग होते हैं,
वह आँखों में चश्मा पहनता है,
उसे किसी पर दया आती है
प्यार और संकोच होता है.
विचार अब रिश्तेदारी निभाता है,
उसे लिंग और स्वत्व की पहचान होती है !
विचार गोल-मोल होता है,
छलयुक्त भी होता है विचार,
महाभारत काल से लेकर आज तक
विचार इधर-उधर देखता है,
गोटियाँ चलाता है,
विचार अब होता नहीं,
उसको संस्कारित और परिष्कृत किया जाता है.
अमूमन मौलिक नहीं,
अनूदित होता है विचार .
वह संकल्प नहीं
विकल्प बन जाता है,
सामने वाले को देखकर
मौन होता है,डर जाता है !
विचार अब खेमों में बंटते हैं,
मौका मिलते ही
आपस में निपटते है !
पर क्या इस विचार को
हम विकलांग नहीं कहेंगे ?
शब्दों की आँड़ लेकर
उन्हें उधार के अर्थ देंगे ?
अगर तुम्हें शब्दों से खेलना है,
विचार को डंडी मारकर तौलना है,
लोक-लाज के डर से आत्मा को मारना है,
तो हे शब्द-चोर !
तुम इधर मत आना
क्योंकि यहाँ विचार बनते-बिगड़ते नहीं,
विचार बिकते,पलटते नहीं !
विचार होते हैं
सूरज की रोशनी की तरह,
मंदिर की प्रार्थना की तरह,
धरती की क्षमा की तरह,
जल और आग के गुणों की तरह !
सूरज की रोशनी की तरह,
जवाब देंहटाएंमंदिर की प्रार्थना की तरह,
धरती की क्षमा की तरह,
जल और आग के गुणों की तरह !
विचारों का आदान प्रदान ही आपस में नजदीकियां लाते है,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
शुक्रिया धीरेन्द्र भाई !
हटाएंविचार गोल-मोल होता है,
जवाब देंहटाएंछलयुक्त भी होता है विचार,
महाभारत काल से लेकर आज तक
विचार इधर-उधर देखता है,
गोटियाँ चलाता है,
विचार अब होता नहीं,
उसको संस्कारित और परिष्कृत किया जाता है.
बहुत गहरी बात कह दी आपने....
सादर...
..पर शायद पहले आपने सुनी नहीं थी !!
हटाएंअच्छे लोगों के विचार, कभी गोल-मोल नहीं होते..
जवाब देंहटाएंअच्छे लोगों के विचार छलयुक्त नहीं होते
अच्छे विचार वाले, विचारों की गोटियाँ नहीं खेलते
वो सिर्फ़ अपने सही विचार रखते हैं...
महभारत काल में अच्छे विचार वालों से धरा अटी पड़ी थी, हाँ कुछ बुरे विचार वाले भी थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र में भले विचार वालों को जाने को बाध्य किया...
और ..परिष्कृत मन से परिष्कृत विचार ही आते हैं...जिन्हें परिष्कृत करने की आवश्यकता नहीं होती...
अंत में ज़रूरी नहीं कि विचार अगर व्यक्त नहीं किये गए तो, विचार थे ही नहीं...कभी कभी मौन भी एक परिष्कृत विचार हो सकता है...
धन्यवाद..
अदा जी,
हटाएंयहाँ विचार सत्य के ज़्यादा नजदीक है जिसे काट-छाँट के बिना प्रस्तुत किये जाने से है.इसीलिए यदि हम अलग से सहज विचार को अपनी तरह से संस्कारित या परिष्कृत करते हैं तो वह क्या उचित है ?
द्रोपदी की साड़ी खींचे जाने पर सभा का मौन क्या सही था?
यह भी तो कहा गया है कि 'मौनं हि स्वीकृतिलक्षणम' और silence is half acceptence.
हम कवि-ह्रदय होते हैं,भारी संवेदनाएं भरी होती हैं,सच की वकालत भी खूब करते हैं पर हकीकत में जब ऐसा करने का समय आता है तो हम मौन हो जाते हैं !!
आपका आभार
त्रिवेदी जी,
हटाएंअपना-अपना तरीका होता है, कुछ लोग मुखर होते हैं, कुछ चुपचाप अपना काम करते हैं..
मुझे अपने तरीके से अपना विचार रखना भाता है, और मैंने वही किया भी है...
लिंक देने की मुझे आदत नहीं, लेकिन आज देकर जा रही हूँ...कितनी सफल हूँ, मैं नहीं जानती, लेकिन कोशिश करती हूँ, ये मैं जानती हूँ...
आपका धन्यवाद..
http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/04/blog-post_7319.html
http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/04/blog-post_07.html
अदा जी ,
हटाएंआपका कविता में बहुत सी बातें सही हैं,हम यहाँ ज़ोर इस बात पर दे रहे हैं कि कोई भी आपत्ति कर सकने को स्वतंत्र हो,शालीन तरीके से ,पर उसकी आपत्ति के विरोध में लाठी-डंडा,बल्लम और निहायत आपत्तिजनक शब्दों से युक्त विचार को हम आँख मूँद कर देख सकते हैं क्या ? इसके लिए ज़रूरी नहीं है कि उस व्यक्ति के साथ वैसा ही पेश आया जाये,पर सार्वभौमिक सत्य के लिए हम बोल तो सकते हैं.उस कविता के समर्थन में तो खुलकर लोग आ गए,पर यथार्थ में जो शाब्दिक-हिंसा हो रही है,उस पर मौन क्यों ? क्या हम रचनाकारों का धर्म यही है कि ऐसे समय में हम अपनी रुसवाई एवं मित्रता के नाम पर चुपचाप बगल से निकल जाएं ?
बहरहाल,साहित्य को समाज से अलग नहीं कर सकते.हमारी,आपकी चिंताएं एक-जैसी हैं,बस यह चिंतन लिखने और होने में अलग-सा न हो !
..विमर्श के लिए आभार !
http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/04/blog-post_03.html
हटाएंhttp://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/03/blog-post_04.html
'ada'
आपने बिलकुल शालीन तरीके से विरोध दर्ज किया था...सारी बातें साफ़ कही हैं,पर यह देखिये कि एक 'पुरुष' के ऐसा करने पर उसको जान से मारने की धमकी और अश्लीलता से नवाज़ा गया और बकायदा उसी कवयित्री ने उसका आभार व्यक्त किया !
हटाएंआपकी भावनाओं को समझ गया हूँ...बेहद आदर के साथ आभार !
यूँ तो मैं टिप्पणी ही करना छोड़ चुकी हूँ, परन्तु आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ, इसलिए यहाँ जवाब देना उचित समझती हूँ...
हटाएंआपने सही कहा, बिल्कुल नहीं रहना चाहिए आँख मूँद कर..और इस तरह के व्यवहार का अंत होना ही चाहिए...इसका विरोध होना ही चाहिए..परन्तु हम आप तो कुछ कह भी ले रहे हैं..कहाँ हैं वो तथाकथित अभिजात वर्ग ? वो बड़े-बड़े ब्लोग्गर, जो हमेशा हर जगह टिपियाते हुए नज़र आते हैं...वो ऐसे समय में क्यों नज़र नहीं आते...क्या उनका सामने आना उचित नहीं?
पिछली बार जब अलबेला जी ने अपनी क्लिष्ट हिंदी का उपयोग किया था, मैंने तब भी आवाज़ उठाई थी, आज भी मेरी कविता महफूज़ अली जी और अलबेला जी के लिए ही है..
हालांकि मैं इन दोनों ब्लॉग पर जाती ही नहीं हूँ..लेकिन कहीं कुछ थोड़ा बहुत नज़र आ ही जाता है...मुझे अलबेला जी ने अभिशप्त कहा है आज, कोई आपत्ति नहीं है मुझे...बल्कि शुक्रगुजार हूँ...और कुछ नहीं कहा...
आपने, अपने तरीके से सही स्टैंड लिया है...
मैंने भी, अपने तरीके से, ऐसा ही कुछ स्टैंड लिया था...आज से कुछ समय पहले....मात्र एक टिप्पणी पर...आप पढ़ सकते हैं..
http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/03/blog-post_04.html
हो सकता है, मुझ पर भी उन दोनों का क़हर बरसे..लेकिन अब मैं भी झेलने को तैयार हूँ...
..बिलकुल यही बात मुझे अखर रही है कि जो बड़े ब्लॉगर हैं उनकी और बड़ी जिम्मेदारी है पर वे इस मुद्दे पर चुप हो गए.इसका मतलब यहाँ बिलकुल यह नहीं है कि किसी के गाली-गलौज में शामिल हुआ जाए,पर क्या ऐसा करने वाले की हम भर्त्सना भी नहीं कर सकते ?आखिर हम लिखने और होने में दोहरा-जीवन क्यों जीते हैं ?
हटाएंसबसे बड़ा आश्चर्य और धक्का यह लगा कि विचारशील लोग(खासकर महिलाएं) इस मुद्दे पर चुप हो गए. आखिर क्या हम साहित्य-सर्जना केवल काल्पनिकता और फंतासी के लिए करते हैं ? हमारे लिए समाज की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है या नहीं ? ऐसा भी नहीं है कि किसी के लिख देने से कोई सुधर जायेगा,पर क्या यही सोचकर हम ऐसी बातों को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं?
आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि ईश्वर हमें अपने विचारों पर दृढ़ रहने दे,भले ही हमें यश या समृद्धि न मिले.
सुंदर
जवाब देंहटाएंकविता या विचार ?
हटाएंसच है कुछ लोगों के विचार आजकल दूसरों के कंधे पर रखे बन्दूक की गोलियों की तरह चलते हैं ...
जवाब देंहटाएंवैसे विचारों का परिष्कृत होते रहना क्या बुरा है यदि स्वार्थ और लालच से प्रेरित ना हो !
अच्छे लोंग अपने विचारों को स्पष्ट प्रकट करते हैं जबकि मित्रता और रिश्तेदारी से प्रेरित व्यक्ति अपनी सुविधा से उन्हें ढाल लेते हैं !
इन लोगों का मानना होता है हमरा प्यार प्रेम है तुम्हरा व्यभिचार !
पूर्ण सहमति!
हटाएंसत्य वाणी……जी!!
हटाएं"हमरा प्यार प्रेम है तुम्हरा व्यभिचार !"
-हमारा पक्ष सत्य संरक्षण तुम्हारे भांड विचार!
-हमारे दुराचार व्यवहार अभिव्यक्ति, तुम्हारी आंख भी अगम्य अनाचार!
राजकवि पद पाने के स्वार्थ व लालचवश प्राचीन काल से ही साहित्यकार भांड समकक्ष प्रशस्ती साहित्य की रचना करते आए है।
..सही समय पर वाणी फूटे,यही कामना है !
हटाएंआभार !
वाणी जी, मेरे लिए यह समय बड़ा विचलन का रहा है,ऐसे माहौल में काम करने का मेरा तजुर्बा नहीं रहा है,इसीलिए कुछ कठिन शब्द निकल पड़े,मुझे माफ करियेगा !
हटाएंसादर !
बहुत विचार तो मन में न जाने कब से डेरा जमाये हुये हैं
जवाब देंहटाएं...उन्हें उबलने का भी मौका मुहैया कराते रहिये !
हटाएंकुविचारी के शब्द भी, बदल-बदल दें अर्थ ।
जवाब देंहटाएंपूर्वाग्राही है अगर, समझाना है व्यर्थ ।
समझाना है व्यर्थ, बना सौदागर बेंचे ।
सुविधा-भोगी दुष्ट, स्वयं ना रेखा खैंचे ।
चोरी के ले शब्द, तोड़ मर्यादा सारी ।
द्वंदर अपरस गिद्ध, बड़ा भारी कुविचारी ।।
दोषों को जाने नहीं, त्रुटियों पर इनकार ।
हटाएंज्ञानी बतलाने गया, दुष्ट करे तकरार ।
दुष्ट करे तकरार, योग्यता न होते भी ।
भड़के मुक्का मार, चलाए चर-फ़र जीभी ।
ज्ञान गंग अति-दूर, हकीकत को ना माने ।
बन सकता विद्वान, अगर दोषों को जाने
न्योच्छावर आप पर कविराज!! मिला है आज रवि प्रकाश!!
हटाएंहमेशा की तरह रविकर भाई का जवाब नहीं !
हटाएंआदरणीया त्रिवेदी जी हार्दिक अभिवादन
जवाब देंहटाएंविचार होते हैं
सूरज की रोशनी की तरह,
मंदिर की प्रार्थना की तरह,
धरती की क्षमा की तरह,
जल और आग के गुणों की तरह !
.......-----बहुत सुन्दर पंक्तियाँ....विचार ही आजकल नजदीकिया बढ़ाते है !!
धन्यवाद भाई !
हटाएंविचार अब खेमों में बंटते हैं,
जवाब देंहटाएंमौका मिलते ही
आपस में निपटते है !
पर क्या इस विचार को
हम विकलांग नहीं कहेंगे ,...
सही कहा है आपने ऐसे विचार जो स्वाभाविक नहीं किसी की बातों में आ के बदल जाते हैं ... विकलांग ही होते हैं ... सार्थक चिंतन ...
आभार आपका !
हटाएंकविता अच्छी है!
जवाब देंहटाएं...पर भाव ज़्यादा अच्छे होने चाहिए !
हटाएंसंतोष जी, विचारों का डालकर अचार
जवाब देंहटाएंजो उनमें तेल नहीं डालते हैं
वह
सड़ा देते हैं विचारों को
अपने व्यवहार को
फिर उसे ही पेश करते हैं
भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए
जबकि वह स्वास्थ्य के लिए
कदापि नहीं होता है हितकर
अचार वही जो रचे तेल पीकर
जिसमें बुराईयों का वायरस न समा पाए
जिस पर कोई बुरी नजर न डाल पाए
अचार वही सबके मन को भाए
जो स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी हो
वही खुद खाएं और सबको खिलाएं
पर अपने सड़े हुए विचार के समर्थन के लिए
सड़कों पर मत उतर आएं
जो उतरे उसे तुरंत वहां से भगाएं
जिससे वह अच्छे सार्थक विचारों का
न कर पाएं अहित
कहने को तो बहुत है
पर इतना ही काफी है अभी तक।
अविनाशजी....समय हर ज़ख्म का इलाज़ कर देता है !
हटाएंआप खुश रहें,स्वस्थ रहें अपनी ऊर्जा बचाएं !
विचार सुसंकृत और विकृत दोनो हो सकते है। हर विचार अपने सही होने के तर्क देता है।
जवाब देंहटाएंपुष्कल रूप-अनूप है विकल रूप विचार!!
...जो विकृत हो वह विचार नहीं,मेरे मुताबिक !
हटाएंविचार पर विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएं...उम्मीद है,आगे सकारात्मक परिणाम निकलेंगे !
हटाएंवाह, यह निकली है कविता -असली खालिस देशी घी के मानिंद! सही है कविता का उद्गम घनीभूत पीड़ा से ही है.....विचार हमेशा से ही सापेक्षिक भये हैं भईया...इतिहास पुराण तो हमें यही सबक देते आये हैं -बहरहाल इस तेजोपम काव्य रचना पर बधाई !
जवाब देंहटाएंआपसे बहुत प्रेरणा और ऊर्जा मिल रही है ,गुरूजी !
हटाएंगलत बात का विरोध --ईंट का ज़वाब पत्थर से देना भी सही नहीं है .
जवाब देंहटाएंमौन रहकर नज़रअंदाज़ करने से भी गलती करने वाला अपने आप कुंठित हो जाता है .
हवा देने से तो आग और भड़कती है . कुछ लोग यही चाहते भी हैं . ऐसा अनुभव मित्रगण पहले भी कर चुके हैं .
ऐसे में अपने तरीके से ही विरोध करना चाहिए .
दराल साब ,आप ठीक कह रहे हैं,पर कुछ अवसरों पर हम मूक नहीं रह सकते !
हटाएंआपके स्नेह का आभारी हूँ !
उफ़ इतना लिखा सब गायब हो गया.
जवाब देंहटाएंविचार होते हैं
जवाब देंहटाएंसूरज की रोशनी की तरह,
मंदिर की प्रार्थना की तरह,
धरती की क्षमा की तरह,
जल और आग के गुणों की तरह !
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ है ये.
विचार सड़ और कुत्सित होते हैं.जीवन और व्यक्तित्त्व का निर्माण करते हैं.क्रम को प्रभावित करते हैं.दोस्तों दुश्मनों की संख्यां घटाते या बढाते हैं.संसार की हर नई कृति ,अविष्कार का जन्म विचारों के गर्भ से हुआ है.विचार हमारे ओरा-आभामंडल- को घटाने या बढाने में अहम भूमिका अदा करते हैं तो फिर....विचार को केन्द्र में रखकर लिखी गई रचना को विचारपूर्ण होना ही था. है न? स्माइल प्लीज़ सन्तु दा!
हम तो हंसकर जियेंगे,हर हाल में माँ,
हटाएंपर हमें फ़िक्र है कि तू भी जिए !
माट्साब!! इं दिनों स्माइली व्रत ले रखा है.. मगर पता है कि आपका स्नेह मेरे मौन को समझेगा, विचार या टिप्पणी.. कभी मिलेंगे तो इस पर भी विचार करेंगे!!
जवाब देंहटाएंआपके इत्ते कहे से भी हम बहुत कुछ समझ गए,मेरे आर्तनाद की आवश्यकता को आपने भी महसूस किया होगा !
हटाएंबहुतै आभार,स्नेह के लिए !
ऐसा वक्त आया है,गुजर भी जायेगा,
हटाएंपीढ़ियों को ये फ़साने,याद रह-रह आयेंगे !
दो दिन से नेट खराब था। धीरे-धीरे पढ़ा। हो सकता है पूरा न पढ़ पाया हूँ। जितना पढ़ा उससे लगा कि इन दो दिनो में विचारों की बाढ़ सी आ गई। वह कविता थी या नहीं लेकिन एक विचार था। मुझे तो उसमें कुछ भी खराबी नहीं दिखी। वे ऐसे शब्द नहीं थे जिनसे हमारा शील भंग हुआ। वैसे शब्दों से हम प्रायः दो चार होते रहते हैं। जिन्हें दिखी उन्होने विरोध किया मगर विचार का प्रतिकार जिस ढंग से हुआ वह ठीक नहीं था। प्रतिकार पर प्रहार तो और भी निंदनीय। लगा जैसे हम विचारवानो की नहीं बदतमीजों और लठ्ठमारों की बस्ती में आ गये हैं ! यह पढ़ने लिखने वालों की भाषा नहीं हो सकती। ऐसे में कोई पतली, प्यार वाली गली, ढूँढता निकल जाय तो उसे विचार शून्य/कायर नहीं कहते। यह भी उसकी एक सोच है। लठ्ठ चलाने के लिए अड़ोस-पड़ोस में मुद्दों की कमी नहीं मगर सभी लठैत नहीं होते। यही हाल रहा तो हमारे जैसे लोग यहां लिखना पढ़ना तो छोड़ ही देंगे। जब बोलो तो बुरा, ना बोलो तो बुरा वाली स्थिति हो तो कौन यहां मुंह पिटाने के लिए लिखता रहेगा। जो नहीं बोलते वे विचार रिश्तेदारी निभाते हों..ऐसा सोचना, कम सोचना है। यह मेरे विचार हैं। गलत लगे तो भी ठीक, सही लगे तो भी ठीक। हम तो यही जानते हैं।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र भाई,हमारे लिए ऐसा मामला नया था,चूंकि हम एक परिवार की तरह रहते हैं और जब कोई बात सार्वजानिक हो जाए तो उस पर न बोलना भी कई बार उसी तरह की प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है.
हटाएंजो सहज रूप से आ जाएँ,उन्हें हम व्यक्त कर सकें,ऐसे विचार तो अपेक्षित हैं हीं,आपके ऐसे विचार भी ज़रूरी हैं जो अलग द्रष्टिकोण और पहलू से अवगत कराते हैं.इस तरह से भी हमें संबल मिलता है !
आप सहित किसी अन्य मित्र से शिकायत नहीं है,बस....मुद्दों को पकड़े रहें और बिना परपंच में पड़े लिखते रहें !
सादर !
विचार बिकते,पलटते नहीं !
जवाब देंहटाएंविचार होते हैं
सूरज की रोशनी की तरह,
मंदिर की प्रार्थना की तरह,
धरती की क्षमा की तरह,
जल और आग के गुणों की तरह !
बहुत ही सुन्दर,
शुक्रिया जी...!
हटाएंविचार का अचार बड़ा शानदार होता है ।
जवाब देंहटाएंआहा ! आहा !
वाह !
विचार को आचार में लाना चाहिए !
हटाएंआभार रविकर भाई !
जवाब देंहटाएंआपकी रचना को पढ़कर ऐसा विचार मन में कौंधने लगा है कि अब हमे अपने सड़े-गले और दकियानूसी विचारों को सामाजिकता रुपी पोस्टमार्टम हाउस में भेजने की सख्त जरूरत है !
जवाब देंहटाएं