अब नींद भी किश्तों की तरह आती है,
सावन की तरह झूम के नहीं आती है !
हम जानते थे उनके दिल में बैठे हैं,
मेरी सूरत भी उन्हें याद नहीं आती है !
बारिश के महीने में कैसी ये तपिश,
बदले हुए मौसम की तरह आती है!
अब मुझे हँसने की इतनी आदत है,
रोती हुई सूरत को हँसी आती है !
उनकी हर बात मुझे जँचती है,
यही बात नहीं उनको नज़र आती है !
संतोष जी,
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है आपने
अब मुझे हँसने की इतनी आदत है,
रोती हुई सूरत को हँसी आती है !
मेरा तो मानना है आपमें 'हंसने' की ही नहीं
'हंसाने' की भी खूब आदत है.
किसका साहस है कि आपके पास आकर रोती हुई सूरत ही बनाये रखे.हंसना तो पड़ेगा ही उसे.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर दर्शन दें .
काश उन्हें यह बात नजर आती।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
उनकी हर बात मुझे जँचती है,
जवाब देंहटाएंयही बात नहीं उनको नज़र आती है ..
ये बात उन्हें नज़र आती है .. पर ये उनकी अदा है की देखते नहीं ...
जो हम समझाना चाहें ........वह समझ ना पायें .......बस यही जद्दोजहद जारी है !
जवाब देंहटाएंजय राम जी की !!!!
संतोष जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना !
अपना ही लिखा एक शेर याद आ गया::
जवाब देंहटाएं“ खिला गुलाब हंसाता है तेरी यादों को,
हँसी के जिस्म में अफसोस ढ्ल गया, जाना!”