गलियारे,पगडंडी,बरगद,जीवन के थे नाम !!
गौरैया आ पास बैठती,कौआ लाता नित पैग़ाम !
खुला हुआ दरवाजा घर का , रहता आठों याम!!
रोज सबेरे सूरज उगता,अस्त होय हर शाम !
छाया मिलती नीम की ,नहीं करारा घाम !!
सुबह-शाम पनघट में आतीं, चपला और ललाम!
दूर बैठ हम देखा करते दिल को दिए लगाम !!
काका,अजिया,नानी, छूट गए दालान !!
चिट्ठी आती एक तो, पढ़ते दस-दस बार !
खानापूरी बन गया शहरी पत्राचार !!
ना जाने किस जनम में ,होगा ऐसा प्यार!
दुःख में होते साथ सब,कई-कई मनुहार !!
अब गांव जायेंगे तो भागकर वापस आयेंगे। :)
जवाब देंहटाएंबढिया लिखा है। :)
अब गाँव सिर्फ शब्दों में रह गया है .....! बहुत याद आता है मुझे भी मेरा गाँव ....हर पंक्ति में नया भाव भर दिया है आपने ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंहाय... हमारा भी कोई गांव होता तो हम भी उसे याद करके थोड़ा भावुक हो लेते!:(
जवाब देंहटाएंगाँव की याद तो मुझे भी बहुत आती है ........................अब तो यह सब एक सुन्दर सपना सा बनके रह गया है .भावुक करती हुइ रचना
जवाब देंहटाएंगाँव का वह खुलापन और समय की आवारगी।
जवाब देंहटाएंअपने गांव की बात ही निराली है...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना...
बहुत बढ़िया , गाँव की यादें ताज़ा कर दिया आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव, गांव की बात ही निराली होती है,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत भावभीनी प्रस्तुति की है आपने.
जवाब देंहटाएंगांव का मोहक अहसास कराती हुई.
सुन्दर शब्द दिल को छूते हैं.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
gaanv ki mahima hai aparampaar,
जवाब देंहटाएंkhaao iski goli din me teen bar.
गाँव की मोहकता को खींचा है आपने, यह दोहात्मकता बढ़ियां लगी!
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