24 मई 2011

तिहाड़ जेल लाइव !

राजा: आओ कनिमोझी स्वागत है!
कनि: हाँ,अब तो तेरे कलेजा में ठण्ड पड़ गयी होगी .
राजा: हमरे तो हाथ बंधे थे,केवल अकाउंट खुला था.
कनि : हे राजा,ई तूने ठीक नय किया है.
राजा : अब हमरा नाम भी भूल गई हो,मैं ए राजा हूँ .
कनि: तुमरा नाम तो 'टाइम' पर आया है,एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ मा खाली दू सौ करोड़ हमरे नाम !
राजा: शुक्र मनाओ,हमरी वज़ह से ही 'फर्स्ट-क्लास' जेल मिली है !छोटी-मोटी रकम में तो 'टाइम' क्या 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में भी न आ पाते !

इसी बीच फूलों का गुच्छा लेकर कनि के पप्पा आ जाते हैं ,राजा साइड में छुप जाते हैं !


ब्रेक के बाद ....

कनि बिटिया से मिल-मिला के जब उनके पप्पा चले गए तो राजा तिलमिला गवा !ओटरे से निकल के कनि से बूझै लगा:

राजा: ई आदमी केतना अहसानफरामोश निकला !हम इसके खातिर ससुर रिज़र्व बैंक बने थे और ऊ एक बार भी हमसे मिलने नय आवा.
कनि: लगता है तुम अब संठियाय गए हो !हमरे पप्पा अभी-अभी 'गद्दी' से उतरे हैं,उनको कुच्छौ नय सूझ रहा है.एकदम ललुयाय गये हैं.
राजा : अब ई लालू से उनकी कउनो बराबरी है का ?
कनि: हे राजा ,ऊ चारा खा के  ज़मीन  पर आये और हमरे पप्पा ,ई का कहत हैं टू जी-सूजी से !

अचानक तिहाड़ में बिजली गुल हो जाती है और उसके बाद आँखों देखा हाल तो कउनो उल्लू ही बताएगा !

14 टिप्‍पणियां:

  1. गजब !
    बड़ा धासूं व्यंग लिखा वह भी सामयिक !
    जय जय !

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  2. क्यों बेईमानों को तंग करते हो, अच्छा लिखा है,

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  3. ये तो होना ही था, जहाँ चाह वहाँ राह।

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  4. चारा जमीं पर और अब सूजी पाक रही है ! जबरदस्त

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  5. तीखा व्यंग्य लिखा है।
    बहुत बढ़िया।

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  6. जबरदस्त व्यंग । बहुत बढ़िया लिखा है संतोष जी। सटीक !

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  7. बहुत बढ़िया और शानदार रूप से प्रस्तुत किया है आपने! ज़बरदस्त व्यंग्य! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  8. कुछ फेसबुकिया टिप्पणी:

    अविनाश वाचस्पति अन्नाभाई :दिल्‍ली की लाइट का भी यही हाल है,तिहाड़ वैसे भी दिलवालों की ही जेल है !

    अजय कुमार झा : अरे मार के भगाइए उसके पापा को और ई कथा को जारी रखिए जी ...साला एतना जल्दी ई पापा को आना ही नय चाहिए था ...गलत आ गए हैं ...साला कहानी अभी ठीक से जमने भी नहीं पाया था कि आ गए ..छोडिए उनको इग्नोर करिए और .कथा आगे बढाइए ..भक्त हाथ जोड के बैठे हैं!

    संतोष त्रिवेदी Santosh Trivedi आपकी फरमाइश पूरी कर दी है,दूसरी व अंतिम किश्त जारी...

    अविनाश वाचस्पति अन्नाभाई : अजय जी, हम तो अपना बैंक एकाउंट खोल के बैठे हैं !

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