राजा: आओ कनिमोझी स्वागत है!
कनि: हाँ,अब तो तेरे कलेजा में ठण्ड पड़ गयी होगी .
राजा: हमरे तो हाथ बंधे थे,केवल अकाउंट खुला था.
कनि : हे राजा,ई तूने ठीक नय किया है.
राजा : अब हमरा नाम भी भूल गई हो,मैं ए राजा हूँ .
कनि: तुमरा नाम तो 'टाइम' पर आया है,एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ मा खाली दू सौ करोड़ हमरे नाम !
राजा: शुक्र मनाओ,हमरी वज़ह से ही 'फर्स्ट-क्लास' जेल मिली है !छोटी-मोटी रकम में तो 'टाइम' क्या 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में भी न आ पाते !
इसी बीच फूलों का गुच्छा लेकर कनि के पप्पा आ जाते हैं ,राजा साइड में छुप जाते हैं !
ब्रेक के बाद ....
कनि बिटिया से मिल-मिला के जब उनके पप्पा चले गए तो राजा तिलमिला गवा !ओटरे से निकल के कनि से बूझै लगा:
राजा: ई आदमी केतना अहसानफरामोश निकला !हम इसके खातिर ससुर रिज़र्व बैंक बने थे और ऊ एक बार भी हमसे मिलने नय आवा.
कनि: लगता है तुम अब संठियाय गए हो !हमरे पप्पा अभी-अभी 'गद्दी' से उतरे हैं,उनको कुच्छौ नय सूझ रहा है.एकदम ललुयाय गये हैं.
राजा : अब ई लालू से उनकी कउनो बराबरी है का ?
कनि: हे राजा ,ऊ चारा खा के ज़मीन पर आये और हमरे पप्पा ,ई का कहत हैं टू जी-सूजी से !
अचानक तिहाड़ में बिजली गुल हो जाती है और उसके बाद आँखों देखा हाल तो कउनो उल्लू ही बताएगा !
कनि: हाँ,अब तो तेरे कलेजा में ठण्ड पड़ गयी होगी .
राजा: हमरे तो हाथ बंधे थे,केवल अकाउंट खुला था.
कनि : हे राजा,ई तूने ठीक नय किया है.
राजा : अब हमरा नाम भी भूल गई हो,मैं ए राजा हूँ .
कनि: तुमरा नाम तो 'टाइम' पर आया है,एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ मा खाली दू सौ करोड़ हमरे नाम !
राजा: शुक्र मनाओ,हमरी वज़ह से ही 'फर्स्ट-क्लास' जेल मिली है !छोटी-मोटी रकम में तो 'टाइम' क्या 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में भी न आ पाते !
इसी बीच फूलों का गुच्छा लेकर कनि के पप्पा आ जाते हैं ,राजा साइड में छुप जाते हैं !
ब्रेक के बाद ....
कनि बिटिया से मिल-मिला के जब उनके पप्पा चले गए तो राजा तिलमिला गवा !ओटरे से निकल के कनि से बूझै लगा:
राजा: ई आदमी केतना अहसानफरामोश निकला !हम इसके खातिर ससुर रिज़र्व बैंक बने थे और ऊ एक बार भी हमसे मिलने नय आवा.
कनि: लगता है तुम अब संठियाय गए हो !हमरे पप्पा अभी-अभी 'गद्दी' से उतरे हैं,उनको कुच्छौ नय सूझ रहा है.एकदम ललुयाय गये हैं.
राजा : अब ई लालू से उनकी कउनो बराबरी है का ?
कनि: हे राजा ,ऊ चारा खा के ज़मीन पर आये और हमरे पप्पा ,ई का कहत हैं टू जी-सूजी से !
अचानक तिहाड़ में बिजली गुल हो जाती है और उसके बाद आँखों देखा हाल तो कउनो उल्लू ही बताएगा !
गजब !
जवाब देंहटाएंबड़ा धासूं व्यंग लिखा वह भी सामयिक !
जय जय !
bahut sateek vyang hai....
जवाब देंहटाएंक्यों बेईमानों को तंग करते हो, अच्छा लिखा है,
जवाब देंहटाएंये तो होना ही था, जहाँ चाह वहाँ राह।
जवाब देंहटाएंचारा जमीं पर और अब सूजी पाक रही है ! जबरदस्त
जवाब देंहटाएंतीखा व्यंग्य लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
करारा व्यंग्य|
जवाब देंहटाएंजबरदस्त व्यंग । बहुत बढ़िया लिखा है संतोष जी। सटीक !
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
जबरदस्त, शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत बढ़िया और शानदार रूप से प्रस्तुत किया है आपने! ज़बरदस्त व्यंग्य! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
कुछ फेसबुकिया टिप्पणी:
जवाब देंहटाएंअविनाश वाचस्पति अन्नाभाई :दिल्ली की लाइट का भी यही हाल है,तिहाड़ वैसे भी दिलवालों की ही जेल है !
अजय कुमार झा : अरे मार के भगाइए उसके पापा को और ई कथा को जारी रखिए जी ...साला एतना जल्दी ई पापा को आना ही नय चाहिए था ...गलत आ गए हैं ...साला कहानी अभी ठीक से जमने भी नहीं पाया था कि आ गए ..छोडिए उनको इग्नोर करिए और .कथा आगे बढाइए ..भक्त हाथ जोड के बैठे हैं!
संतोष त्रिवेदी Santosh Trivedi आपकी फरमाइश पूरी कर दी है,दूसरी व अंतिम किश्त जारी...
अविनाश वाचस्पति अन्नाभाई : अजय जी, हम तो अपना बैंक एकाउंट खोल के बैठे हैं !
:) सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया, क्या बात है..
जवाब देंहटाएं