3 अप्रैल 2011

माँ की दुआ !

हमारी अम्मा करीब सत्तर की हो रही हैं.अभी कुछ दिनों पहले उनकी तबियत खराब हुई तो उन्हें भइया (पिताजी को हम सब यही कहते हैं) गाँव से लखनऊ ले आए .वहाँ हमारी बहन के यहाँ अम्मा रुकीं .तीन-चार दिन के इलाज़ के बाद मुझसे जब बात हुई तो उन्होंने बताया कि तबियत ज़्यादा ठीक नहीं है.मैंने तुरत-फुरत लखनऊ जाने का कार्यक्रम बना लिया .

अम्मा-भइया
मुझे  देखकर अम्मा बड़ी खुश हुईं .हमने उन्हें यही बताया कि जो भी परेशानी है,बुढ़ापे  की वज़ह से है और पैरों में जो दर्द रहता है तो थोड़ा टहला करो (हालाँकि इस फार्मूले पर मैं स्वयं अमल नहीं करता ).हमारे पास समय ज़्यादा था नहीं सो थोड़ी देर के बाद वहाँ से निकलने लगे .अम्मा के पैर छूकर जब विदा लेने लगे तो उन्होंने अपनी धोती में बंधे एक रुमाल को निकाला .रूमाल में तीन जगह गाँठें लगी हुई थीं .मैंने देखा, उसमें एक में  तम्बाकू की पुड़िया थी,दूसरी में दवाई का पत्ता.अम्मा अभी भी कुछ ढूंढें जा रही थीं .आखिर तीसरी गाँठ में से एक मुड़ा-तुडा  नोट निकालकर उन्होंने  मेरी ओर बढ़ा दिया .

मैंने अचकचाकर सवालिया नज़रों से उन्हें देखा तो उन्होंने कहा,"हम जानिथ तू कमात है मुदा यह हम अपने पोता-पोतिन के बरे दई रहिन!" सच मानिए ,उस वक़्त मुझे ऐसा लगा कि हमारी ढेर सारी कमाई उस एक नोट के आगे पानी माँग रही थी ,लज्जित थी.उनका आशीर्वाद समझकर मैंने सर-माथे लिया और दुखी मन से अम्मा से विदा ली .मैं उनके लिए तो कोई कारगर दवा नहीं दे पाया ,पर मेरे पास माँ की दुआ थी जो दुनिया में सबसे बड़ी दवा होती है !

मुझे पहले भी शहर में रहते हुए कई बार लगा कि हमने अपने जीवन में माँ-बाप की सेवा का मौका हमेशा के लिए गवाँ दिया है क्योंकि दोनों लोग शहरी-जीवन को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकते. कई बार मैं जब बातों-बातों में गाँव में न रहने की बात करता तो सबसे ज़्यादा बेचैनी अम्मा को ही  होती.इसीलिये लखनऊ में घर की व्यवस्था हो जाने के बावजूद अम्मा ने अपनी जिद से गाँव में हमारे लिए अलग घर भी बनवा दिया है,इस उम्मीद में कि यदि घर रहेगा तो एक दिन मैं ज़रूर उसमें रहने आऊँगा !

अम्मा ने बचपन में हमारे लिए जान लगा दी,अब भी हमारे बिना हूकती हैं,पर का करें,बिना नौकरी किये भी गुजारा  नहीं है.हम वहाँ नहीं जा सकते ,वे यहाँ नहीं आ सकतीं !क्या हर माँ-बाप अपने बच्चों के पैदा होने पर उनसे यही उम्मीद करते हैं? जीवन के जिस मोड़ पर उन्हें अपनी संतानों की  ज़रूरत होती है,तभी वह उनसे दूर होते हैं! यह हमारी,आपकी, सबकी विडम्बना है !

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या किया जाये,,यही विडम्बना है.

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  2. माता पिता के निर्मल प्रेम का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। माताजी को प्रणाम।

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  3. क्या करें ....जीवन चलने का नाम|
    माँ के पास सब है ......और आपके पास माँ की दुआ ......यह क्या कम है|
    हमारा प्रणाम कहियेगा अम्मा और बाबू जी से|

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  4. @Udan Tashtari धन्यवाद !

    @प्रवीण पाण्डेय आप सही कह रहे हैं ,साभार !

    @प्रवीण त्रिवेदी सब कुछ है माँ के पास ,पर लोग समझ लें तब न !
    साभार !

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  5. "Dost mere !ye kyaa kam hai ,samvednaayen ,bakaayaa hain .
    Maa -Baap ek svaarth -heen chhaate(umbrella ) kaa naam hai santosh trivediji ,Naukri janyaa vichhoh koi vichhoh nahin hotaa agar dil jude hon ,dilon me pyaar ho ,Gunjaaish ho auron ke liye .
    "abhi to haal ye hai -MERA PET HAAU AUR MAIN NAA JAANU KAAU "main ,meri bivi ,mere bachche aur bas .
    veerubhai .

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  6. @Veerubhai आपकी भावनाओं को पूरा सम्मान !
    साभार !

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  7. पोस्ट पुरानी है, लेकिन तस्वीर देखने के बाद खुद को रोक न पाया. असल में पता नहीं क्या है, शायद दुनिया की सारी महतारी एक जैसी लगती हैं. बाबूजी का गमछा भी कितना जाना-पहचाना सा है.मजबूरियों के बाद भी बड़े भाई जितना हो सके उनके साथ वक़्त बिताना. और क्या कहूँ, आप तो खुद समझदार हो. नमस्कार.

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  8. @संतोष पाण्डेय मेरी चिंता में अपने को शामिल करने के लिए आभार....वैसे माँ धरती के समान होती है और उसकी ममता दुनिया के सारे बेटों के लिए इक जैसी है !

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