कई सालों से दिल्ली में ही होली मन रही है। पिछले सोलह वर्षों से जब से दिल्ली में हूँ ,शायद एक -दो बार ही होली में गाँव जाना हुआ है।काफ़ी दिनों बाद अबकी बार सोचा था कि बेटे को गाँव की होली दिखाकर लाऊँगा ,पर अंतिम समय में टिकट रद्द करवाना पड़ गया. वह उदास हो गया है,पर का करें ! दिल्ली आकर तो लगता है सारे त्यौहार ही ठप पड़ गए हैं। बचपन में
जब गाँव में रहना होता था तो हर त्यौहार का एक अलग ही उल्लास था। होली और दिवाली में तो बच्चे अपने मन की खूब करते थे और बड़े भी
उसमें शामिल होते थे।
होली की बात चल रही है तो इसी की बात करते हैं। हमें याद आता है कि होलिका-दहन में शाम को सारे लोग गाँव के बाहर इकठ्ठा होते थे,और वहाँ हम सब अपने साथ गोबर से बने हुए 'बल्ले' ले जाते थे । इन 'बल्लों' के बारे में भी दिलचस्प बात यह है कि होली से क़रीब पन्द्रह दिन पहले से सबके यहाँ 'बल्ले' बनते थे ,जिनकी आक्रतियों में कई तरह के जानवर व खिलौने होते थे । इन्हीं सूखे बल्लों को बच्चे रस्सियों में बाँध लेते थे तथा यह ध्यान रखा जाता था कि एक रस्सी में पाँच बल्ले ज़रूर हों!
होलिका-दहन में गाँव से एक पंडितजी होते थे और जब वो 'बल्लों' के ढेर में आग लगाते तो सारे लोग उधर अपनी पीठ कर लेते थे। इस तरह जब पूरी तरह आग लग जाती तो लोग उसमें से अपना-अपना हिस्सा (जलते हुए बल्लों के टुकड़े) लेते और उसे घर लाया जाता। घर की बड़ी-बूढ़ी उसी आग से पूजा के लिए आँगन में होली जलाती और इसके बाद प्रसाद बाँटा जाता।
अगले दिन धुलेंडी होती थी और इसके लिए गाँव में कई टोलियाँ तैयार होती, जो गाँव के पास ही एक मन्दिर के पास इकट्ठा होती थीं । रास्ते में हम-लोग विचित्र प्रकार की वेश-भूषा बनाकर लोगों को डराते व उनपर कीचड़ डालते या लोगों को कोयले से रंग देते।
दोपहर बाद गाँव में फ़ाग की शुरुआत होती और यह सिलसिला तीन दिन तक चलता था । फ़ाग की मंडली हर घर के दरवाजे जाती थी और गृह-स्वामी यथा-शक्ति खातिरदारी करते थे। इस खातिरदारी में 'गुड़-भंगा' ,गन्ने का रस,गुझिया ,पेड़े व घिसी हुई शकर और पान शामिल था।
तीन दिनों तक गाँव के लोग फ़ाग का आनंद लेते जिसमें कई लोग तो इतने मस्त हो जाते कि पूछो मत। तब की होली में अपुन की भी सक्रिय भागीदारी होती थी,जबकि अब दिल्ली में 'फ्लैट' के अन्दर ही धुलेंडी के दिन रहना पड़ता है। वाकई में अब होली कितनी रंग-हीन हो गयी है!अब गाँव में भी न वे फगुहार रहे,न वे भौजाइयाँ और ना ही जोश-ओ-ख़रोश !बस,यहीं पैकेट-बंद गुझिया(कुसुली) खा लेते हैं,थोड़ा गुलाल लगा-लगवा लेते हैं,इस तरह होली हो लेती है !
हाँ,उस समय के फाग की एक पंक्ति ,जो हर दरवाजे पर गाई जाती थी,अभी तक याद है...''सदा अनंद रहै यहि द्वारा,मोहन ख्यालैं होरी..."
साभार -गूगल बाबा |
उसमें शामिल होते थे।
होली की बात चल रही है तो इसी की बात करते हैं। हमें याद आता है कि होलिका-दहन में शाम को सारे लोग गाँव के बाहर इकठ्ठा होते थे,और वहाँ हम सब अपने साथ गोबर से बने हुए 'बल्ले' ले जाते थे । इन 'बल्लों' के बारे में भी दिलचस्प बात यह है कि होली से क़रीब पन्द्रह दिन पहले से सबके यहाँ 'बल्ले' बनते थे ,जिनकी आक्रतियों में कई तरह के जानवर व खिलौने होते थे । इन्हीं सूखे बल्लों को बच्चे रस्सियों में बाँध लेते थे तथा यह ध्यान रखा जाता था कि एक रस्सी में पाँच बल्ले ज़रूर हों!
होलिका-दहन में गाँव से एक पंडितजी होते थे और जब वो 'बल्लों' के ढेर में आग लगाते तो सारे लोग उधर अपनी पीठ कर लेते थे। इस तरह जब पूरी तरह आग लग जाती तो लोग उसमें से अपना-अपना हिस्सा (जलते हुए बल्लों के टुकड़े) लेते और उसे घर लाया जाता। घर की बड़ी-बूढ़ी उसी आग से पूजा के लिए आँगन में होली जलाती और इसके बाद प्रसाद बाँटा जाता।
अगले दिन धुलेंडी होती थी और इसके लिए गाँव में कई टोलियाँ तैयार होती, जो गाँव के पास ही एक मन्दिर के पास इकट्ठा होती थीं । रास्ते में हम-लोग विचित्र प्रकार की वेश-भूषा बनाकर लोगों को डराते व उनपर कीचड़ डालते या लोगों को कोयले से रंग देते।
दोपहर बाद गाँव में फ़ाग की शुरुआत होती और यह सिलसिला तीन दिन तक चलता था । फ़ाग की मंडली हर घर के दरवाजे जाती थी और गृह-स्वामी यथा-शक्ति खातिरदारी करते थे। इस खातिरदारी में 'गुड़-भंगा' ,गन्ने का रस,गुझिया ,पेड़े व घिसी हुई शकर और पान शामिल था।
तीन दिनों तक गाँव के लोग फ़ाग का आनंद लेते जिसमें कई लोग तो इतने मस्त हो जाते कि पूछो मत। तब की होली में अपुन की भी सक्रिय भागीदारी होती थी,जबकि अब दिल्ली में 'फ्लैट' के अन्दर ही धुलेंडी के दिन रहना पड़ता है। वाकई में अब होली कितनी रंग-हीन हो गयी है!अब गाँव में भी न वे फगुहार रहे,न वे भौजाइयाँ और ना ही जोश-ओ-ख़रोश !बस,यहीं पैकेट-बंद गुझिया(कुसुली) खा लेते हैं,थोड़ा गुलाल लगा-लगवा लेते हैं,इस तरह होली हो लेती है !
हाँ,उस समय के फाग की एक पंक्ति ,जो हर दरवाजे पर गाई जाती थी,अभी तक याद है...''सदा अनंद रहै यहि द्वारा,मोहन ख्यालैं होरी..."
बस,यहीं पैकेट-बंद गुझिया(कुसुली) खा लेते हैं,थोड़ा गुलाल लगा-लगवा लेते हैं,इस तरह होली हो लेती है : काफी कर लेते हैं, यहाँ तो यह भी नहीं :)
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक!!
होलिका दहन की आग की भभक और हम लोगों की उस ओर पीठ कर लेना, अहा, सब याद आ गया।
जवाब देंहटाएंहोली के बहाने पुरानी यादें ताज़ा कर ली आपने. बढ़िया.
जवाब देंहटाएंआप ने बिलकुल जिवंत याद दिला दी !होली की शुभ कामनाये !
जवाब देंहटाएंUncle this article
जवाब देंहटाएंis amazing.
apne holi ki yaad dila di.
u r really a great writer.
Happy Holi
@Udan Tashtari आप दूर-देश रहकर भी हम सबके पास रहते हैं,होली पर ढेर सारा रंग और गुलाल !
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय पहले के त्यौहार और वैसा माहौल अब इतिहास में दर्ज़ हो चुका है !
@सोमेश सक्सेना अब तो याद करने के लिए बहाने ही रह गए हैं,नई पीढ़ी तो इससे भी वंचित रहेगी !
@G.N .SHAW (B .TECH )आपको की होली की ढेर-सारी शुभकामनाएँ !
होली प़र आपको सपरिवार मंगल कामनाये अर्पित कर रहा हूँ !
जवाब देंहटाएं@सतीश सक्सेना आपको भी होली मंगलमय हो !
जवाब देंहटाएंarchana shukla की टीप :
Uncle this article
is amazing.
apne holi ki yaad dila di.
u r really a great writer.
Happy Holi
@archana shukla तुम्हें पसंद आया,मेरा लिखना सार्थक हुआ.
होली की शुभकामनाएँ !
होली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंप्रिय संतोष त्रिवेदी जी
जवाब देंहटाएंरंग भरा स्नेह भरा अभिवादन !
आपके गांव की होली में आपके आलेख के माध्यम से सम्मिलित होना अच्छा लगा । बहुत मनभावन है आपकी रचना … पढ़ कर आनन्द आया ।
आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई !
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@Patali-The-Village आपको भी होली की शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएं@Rajendra Swarnkar :राजेंद्र स्वर्णकार आपको हमारा अनुभव अच्छा लगा ,धन्यवाद !
होली की ज़बरदस्त शुभकामना !
holi gaon me kaise mantee hai iskee jaankaree jeevant rahee.
जवाब देंहटाएंaabhar
हर त्यौहार का गावों में एक अलग ही आनंद है।
जवाब देंहटाएं@Apnatva आपने आनंद लिया,आभार !
जवाब देंहटाएं@ZEAL वास्तव में पर्व मनाये ही जाते हैं गाँवों में !
यादों को ताजा कर लिया रंगों के त्यौहार के बहाने ...देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...आपका आभार
जवाब देंहटाएं@केवल राम आभार आपका .....देर आये दुरुस्त आये !
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