23 जनवरी 2011

जीवनसाथी

      आँखों में समाई हो,सोचों में समाई हो,
      घनघोर घटा बनकर,मेरे मन में छाई हो !

         जब से तुम ज़ुदा हुईं ,ये जीवन सूख गया,
        अब तुम ही याद मेरी,तुम ही तनहाई हो !

        जिस तरफ़,  जहाँ तक भी , ये नज़रें जाती हैं,
          ज़र्रे में, दरिया में ,हरसूं दिखलाई हो !

          तेरे साँसों की खुशबू,अब तक है ताज़ादम,
          हर पल यह लगता है,जैसे  तुम  आई हो !

          नज़रों के पास नहीं , पर साथ मेरे हरदम ,
          ग़ज़ल भी  हो मेरी, तुम मेरी रुबाई हो !


विशेष: पत्नी-वियोग  में,रचनाकाल--२६/०६/१९९२ (संशोधन के साथ)
दूलापुर (रायबरेली )

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपका प्रेम यूँ ही पलता रहे बढ़ता रहे ....यही कामना है |

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  2. आपकी पोस्टों के लिंक पोस्ट के पर्मालिंक की बजाय चिट्ठाजगत.इन पर ले जाते हैं। ब्लॉगर की सैटिंग में जाकर इसे सही कर लें ताकि अकेली पोस्टों को खोलना आसान हो।

    एक अन्य सुझाव है कि ब्लॉग पर कमेण्ट बॉक्स को ऍम्बैडिड वाला सैट कर दें ताकि टिप्पणी पोस्ट के नीचे ही बिना अलग पेज पर जाये की जा सके।

    साथ ही एक और अनुरोध है कि http://draft.blogger.com में जाकर अपने ब्लॉग हेतु मोबाइल टैम्पलेट सक्षम करें ताकि मोबाइल पर ब्लॉग पढ़ना आसान हो।

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  3. @प्रवीण त्रिवेदी आपका बहुत आभार !

    @सोमेश सक्सेना आपकी शुभकामनाओं की ही दरकार है,धन्यवाद !

    @प्रवीण पाण्डेय हौसला-अफ़जाई का शुक्रिया !

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  4. @ePandit आपकी सलाह काफ़ी काम आई है,भविष्य में भी अनुग्रह बनाए रखिये !

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  5. मन के कोमल भावों की अभिव्यक्ति।

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