हमको अपनी ही ख़बर, मिलती नहीं है आजकल,
इस गुलिस्ताँ में कली, खिलती नहीं है आजकल . (१)
मन तड़पता है मेरा, दीदार करने को ,
तेरी थोड़ी भी झलक, मिलती नहीं है आजकल.(२)
राह ये कटती नहीं , डस रहीं तनहाइयाँ,
ख्वाब में भी वो, तडपा रही है आजकल.(३)
मेरे हमदम तू न जाने, क्या है मेरी दास्तां,
हर ख़ुशी से ग़म की बू आ रही है आजकल.(४)
आ भी जाओ अब मेरे महबूब ऐ "चंचल",
तेरे बिना ये ज़िन्दगी ,खाली रही है आजकल.(५)
विशेष :१९९४ की यह रचना ,पहली चार लाइनें गाँव(दूलापुर)
व बाद की दिल्ली में रहते हुए !
इस गुलिस्ताँ में कली, खिलती नहीं है आजकल . (१)
मन तड़पता है मेरा, दीदार करने को ,
तेरी थोड़ी भी झलक, मिलती नहीं है आजकल.(२)
राह ये कटती नहीं , डस रहीं तनहाइयाँ,
ख्वाब में भी वो, तडपा रही है आजकल.(३)
मेरे हमदम तू न जाने, क्या है मेरी दास्तां,
हर ख़ुशी से ग़म की बू आ रही है आजकल.(४)
आ भी जाओ अब मेरे महबूब ऐ "चंचल",
तेरे बिना ये ज़िन्दगी ,खाली रही है आजकल.(५)
विशेष :१९९४ की यह रचना ,पहली चार लाइनें गाँव(दूलापुर)
व बाद की दिल्ली में रहते हुए !
राह ये कटती नहीं , डस रहीं तनहाइयाँ,
जवाब देंहटाएंख्वाब में भी वो, तडपा रही है आजकल.
बेचैन मन की सुंदर अभिव्यक्ति। ग़ज़ल का एक-एक शे’र दिल को छू गया। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::मदिरा
साहित्यकार-श्रीराम शर्मा
निर्वात में हवायें तेजी से जा समा जाती हैं।
जवाब देंहटाएं@मनोज कुमार उत्साह-वर्धन के लिए शुक्रिया.बचपन की दास्ताँ बुढ़ापे तक 'पिछुवाये' है!
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय भैया,इतना बड़ा 'बाउंसर' मारा है कि झेल नहीं पा रहा हूँ.क्या मैं 'निर्वात' हूँ और 'वो' हवा है?अभिप्राय समझाने का कष्ट करें !
ग़ज़ल के हिसाब से बहर (Meter) में थोड़ी गड़बड़ी है पर भाव अच्छे हैं। यदि बहर का ध्यान रखें तो अच्छी ग़ज़लेँ कह सकते हैं आप।
जवाब देंहटाएं@ सोमेश सक्सेना भाई,'पकड़ने' के लिए धन्यवाद,दर-असल अपन ने कोई 'टरेनिंग' वगैरह नहीं ली है,बचपन से लेकर आज तक,जो मन में आया,कह दिया.अब तो ज़्यादा कुछ बनता भी नहीं है!
जवाब देंहटाएंमीटर दुरुस्त हो जाय .. बाकी साधने की अच्छी कोशिश दिखी ! आभार !
जवाब देंहटाएं@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी बहर की समझ तो अपन की समझ के बाहर है पर युवावस्था में तुरत-फ़ुरत जो बात दिमाग में आ जाती उसे कागज़ पर उतार देता था.पहली दो लाइनें अच्छी बन पड़ी थीं पर बाद वाली तो ग़ज़ल पूरा करने की मजबूरी में,इसलिए 'कुछ' गड़बड़ है.साधुवाद सहित !
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