कहते हैं अँधेरा अज्ञान का प्रतीक है
अँधेरे से सब कोई बचना चाहता है
उजाले को सबने अपनाया है
पर,अँधेरे को ज़िन्दगी से हटाना चाहता है.
मुझे तो अँधेरा बड़ा प्यारा लगे है
जब भी सुकून पाना हो
अपने से बतियाना हो
उजास में पोती जा रही कालिख से
आँखें चुराना हो
अँधेरे की आड़ लेना कितना सुखद होता है.
अँधेरा यूं भी कित्ता अच्छा है,
उसमें न कोई छोटा दीखता है न बड़ा
न गोरा न काला
हमें अपने को छुपाने की ज़रुरत भी नहीं होती
सब बराबर होते हैं,
किसी में भेद नहीं रखता अँधेरा !
हमारे पास केवल 'हम' होते हैं
अपना सुख हँसते हैं,दुःख रोते हैं.
अँधेरा अज्ञान का नाम नहीं
आँखें खोलने वाला होता है
जो बात हमें दिन के उजाले में नहीं समझ आती
यह उसकी हर परत खोल देता है.
कोलाहल से दूर
जीवन की भागमभाग से ज़ुदा
दो पल सुकून के देता है अँधेरा
गहरी नींद के आगोश में सुलाता है अँधेरा
हमें तो बहुत भाता है अँधेरा !
अँधेरे से सब कोई बचना चाहता है
उजाले को सबने अपनाया है
पर,अँधेरे को ज़िन्दगी से हटाना चाहता है.
मुझे तो अँधेरा बड़ा प्यारा लगे है
जब भी सुकून पाना हो
अपने से बतियाना हो
उजास में पोती जा रही कालिख से
आँखें चुराना हो
अँधेरे की आड़ लेना कितना सुखद होता है.
अँधेरा यूं भी कित्ता अच्छा है,
उसमें न कोई छोटा दीखता है न बड़ा
न गोरा न काला
हमें अपने को छुपाने की ज़रुरत भी नहीं होती
सब बराबर होते हैं,
किसी में भेद नहीं रखता अँधेरा !
हमारे पास केवल 'हम' होते हैं
अपना सुख हँसते हैं,दुःख रोते हैं.
अँधेरा अज्ञान का नाम नहीं
आँखें खोलने वाला होता है
जो बात हमें दिन के उजाले में नहीं समझ आती
यह उसकी हर परत खोल देता है.
कोलाहल से दूर
जीवन की भागमभाग से ज़ुदा
दो पल सुकून के देता है अँधेरा
गहरी नींद के आगोश में सुलाता है अँधेरा
हमें तो बहुत भाता है अँधेरा !
अँधेरे में एक आस है
जवाब देंहटाएंउजाले की प्यास है !!
....जय जय !
@प्रवीण त्रिवेदी फिर क्यों हम उदास हैं
जवाब देंहटाएंजब अँधेरे में भी आस है !
बन्द आँखों का अँधेरा, चिन्तन का उजाला लेकर आता है।
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय इसीलिए सनातन काल से ऋषि-मुनि भी बंद आँखों से ध्यान करते रहे हैं,क्योंकि ज्ञान की उजास और एकाग्रता अँधेरे में ही मिलती है !
जवाब देंहटाएंअँधेरा कायम रहे...
जवाब देंहटाएं@सोमेश सक्सेना अँधेरा कायम रहेगा तभी उजाले का 'सौदा'अच्छी तरह से हो सकेगा!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ...अँधेरा न हो तो रोशनी का भी एहसास कैसे होगा ....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया ...
हाथ की लकीरें केवल ज्योतिष ही नहीं पढते ...हम स्वयं भी पढते हैं जब चिंतन मनन में होते हैं
@संगीता स्वरुप(गीत)आपका कहना सोलहों आने सच है पर चिंतन-मनन में जो हम पढ़ते हैं वो हाथ की कम अंतर-मन की लकीरें ज़्यादा होती हैं !
जवाब देंहटाएंअपनी अल्प-बुद्धि में तो यही आता है !
बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएं@Udan Tashtari आप जैसे महानुभावों और विद्वत्जनों का आशीर्वाद ही प्रेरणा है !
जवाब देंहटाएंगहन बात कही..
जवाब देंहटाएंआत्ममंथन का अवसर देते हैं..अँधेरे हमें..
बहुत अच्छी रचना..
विद्या जी आभार !
हटाएंजीवन की भागमभाग से ज़ुदा
जवाब देंहटाएंदो पल सुकून के देता है अँधेरा
गहरी नींद के आगोश में सुलाता है अँधेरा
हमें तो बहुत भाता है अँधेरा !
खुद को खुद के और करीब लाता है अन्धेरा .काले गोरे का भेद मिटाता है अन्धेरा .
आभार !
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