पढ़ाई हमेशा से समाज में चर्चा का विषय रही है.सरकार,अभिभावक ,शिक्षक और छात्र इसे अपने-अपने ढंग से व्याख्यायित करते रहे हैं.सरकार के लिए जहाँ यह अन्य मदों की तरह एक मद है,अभिभावकों के लिए दायित्व है,शिक्षकों के लिए एक पेशा है वहीँ छात्रों के लिए एक ज़रूरी क्रिया-कर्म !
दर-असल,आज की पढ़ाई ज्ञान व बोध केन्द्रित न होकर परिणाम व रोज़गार-केन्द्रित हो गई है . यही वज़ह है कि विद्यालयों में पढ़ाई का माहौल नदारद-सा है.सरकार कागज़ों में परिणाम को लेकर चिंतित है तो अभिभावक बच्चों के रोज़गार को लेकर. शिक्षक अपना नौकरीय दायित्व निभा रहे हैं वहीँ छात्र 'रिमोट-चालित' से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं !शिक्षा के बाक़ी घटकों के बारे में अपनी राय गलत भी हो सकती है,पर कम-से-कम एक शिक्षक के दृष्टिकोण से ज़रूर कुछ कहना चाहूँगा !
लगभग ६०-७० की संख्या वाली कक्षाओं में अव्वल तो अपनी बात रखने का समय ही बमुश्किल मिल पाता है.फिर भी,बच्चों का 'मूड' यदि ठीक होता है तो उन्हें यही बताता हूँ कि इस पढ़ाई का उद्देश्य महज़ परीक्षा पास करना ही नहीं है,इनमें जो लिखा है वह हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए भी ज़रूरी है.परीक्षा पास करना या न कर पाना ज्ञान या बोध प्राप्त करने से बिलकुल अलग है.आज के प्रतिस्पर्धी माहौल को देखते हुए भी उन्हें पढ़ाई के प्रति एक नियमित योजना बनानी होगी.लेकिन ,अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तब भी हमीं दोषी हैं क्योंकि वे तो ठहरे 'नाबालिग़'!
छात्रों को अकसर नशे की प्रवृत्ति से भी दूर रहने के लिए कहता हूँ,हालाँकि अपेक्षाएं ज़्यादा नहीं रखता. अधिकतर बच्चे किशोरावस्था में विपरीत-लिंग के प्रति आकर्षित रहते हैं और इसमें कलियुग के नए 'यंत्र'(मोबाइल) का ख़ासा दुरूपयोग हो रहा है ! गाहे-बगाहे ,बड़े बच्चों से किशोरावस्था की इस समस्या के बारे में भी बातें हो जाती हैं.सबसे बड़ी चिंता बच्चों का धड़ल्ले से सिगरेट पीना है और इसे वे विद्यालय के अंदर व बाहर बेख़ौफ़ होके अंज़ाम देते हैं ! कई बार शिक्षक चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते क्योंकि उन्हें नियम-कायदों का हवाला दिया जाता है. क्या अभिभावकों की तरह शिक्षक उन्हें डांट भी नहीं सकता ? क्या एक तरह से वह उनका अभिभावक भी नहीं है ?
आज,शिक्षा के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए इस बात की ज़रुरत अधिक है कि वर्तमान पद्धति ज़मीनी हकीक़त से कितनी दूर या पास है ? यह तभी हो सकता है जब इसके सभी घटकों का दृष्टिकोण सकारात्मक और रचनात्मक हो !!
दर-असल,आज की पढ़ाई ज्ञान व बोध केन्द्रित न होकर परिणाम व रोज़गार-केन्द्रित हो गई है . यही वज़ह है कि विद्यालयों में पढ़ाई का माहौल नदारद-सा है.सरकार कागज़ों में परिणाम को लेकर चिंतित है तो अभिभावक बच्चों के रोज़गार को लेकर. शिक्षक अपना नौकरीय दायित्व निभा रहे हैं वहीँ छात्र 'रिमोट-चालित' से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं !शिक्षा के बाक़ी घटकों के बारे में अपनी राय गलत भी हो सकती है,पर कम-से-कम एक शिक्षक के दृष्टिकोण से ज़रूर कुछ कहना चाहूँगा !
लगभग ६०-७० की संख्या वाली कक्षाओं में अव्वल तो अपनी बात रखने का समय ही बमुश्किल मिल पाता है.फिर भी,बच्चों का 'मूड' यदि ठीक होता है तो उन्हें यही बताता हूँ कि इस पढ़ाई का उद्देश्य महज़ परीक्षा पास करना ही नहीं है,इनमें जो लिखा है वह हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए भी ज़रूरी है.परीक्षा पास करना या न कर पाना ज्ञान या बोध प्राप्त करने से बिलकुल अलग है.आज के प्रतिस्पर्धी माहौल को देखते हुए भी उन्हें पढ़ाई के प्रति एक नियमित योजना बनानी होगी.लेकिन ,अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तब भी हमीं दोषी हैं क्योंकि वे तो ठहरे 'नाबालिग़'!
छात्रों को अकसर नशे की प्रवृत्ति से भी दूर रहने के लिए कहता हूँ,हालाँकि अपेक्षाएं ज़्यादा नहीं रखता. अधिकतर बच्चे किशोरावस्था में विपरीत-लिंग के प्रति आकर्षित रहते हैं और इसमें कलियुग के नए 'यंत्र'(मोबाइल) का ख़ासा दुरूपयोग हो रहा है ! गाहे-बगाहे ,बड़े बच्चों से किशोरावस्था की इस समस्या के बारे में भी बातें हो जाती हैं.सबसे बड़ी चिंता बच्चों का धड़ल्ले से सिगरेट पीना है और इसे वे विद्यालय के अंदर व बाहर बेख़ौफ़ होके अंज़ाम देते हैं ! कई बार शिक्षक चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते क्योंकि उन्हें नियम-कायदों का हवाला दिया जाता है. क्या अभिभावकों की तरह शिक्षक उन्हें डांट भी नहीं सकता ? क्या एक तरह से वह उनका अभिभावक भी नहीं है ?
आज,शिक्षा के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए इस बात की ज़रुरत अधिक है कि वर्तमान पद्धति ज़मीनी हकीक़त से कितनी दूर या पास है ? यह तभी हो सकता है जब इसके सभी घटकों का दृष्टिकोण सकारात्मक और रचनात्मक हो !!
60-70 की कक्षा में बहुत बच्चे ऐसे हैं जो संकोच में कभी बोलना नहीं सीख पाते हैं और अन्ततः वैसे ही पास होकर निकल आते हैं। अध्यापक के लिये भी कठिन है हर एक को बोलने का अवसर देना 20-25 से अधिक कक्षा का आकार न हो।
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय कक्षा में छात्र-संख्या अधिक होने पर अनुशासन की मुख्य समस्या आती है तथा हर बच्चे को व्यक्तिगत रूप से देख पाना या मौका देना संभव नहीं होता. ऐसी पढाई में 'घेरे' रहने और यथा संभव पाठ्यक्रम पूरा करने पर जोर रहता है,भले ही छात्र कुछ ग्रहण करें या नहीं !
जवाब देंहटाएंशिक्षा का वर्तमान परिद्रश्य और छात्रों का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण आपकी पोत में अफ उभर कर आया है ....इस पर गंभीरता से विचार और अमल करने की जरुरत है ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है
पोत की जगह पोस्ट और उफ़ की जगह साफ पढ़ा जाये ...तकनीकी कारणों से ऐसा हुआ है ..माफ़ करना
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है
हमारी शिक्षा पद्धति में बहुत से दोष हैं। अब समय आ गया है कि इस पूरी प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन किया जाए।
जवाब देंहटाएं@केवल राम शिक्षा के प्रति छात्रों का दृष्टिकोण इस व्यवस्था के चलते ही बदला है इसलिए इसमें उनका अधिक दोष नहीं है !
जवाब देंहटाएं@सोमेश सक्सेना सारी समस्या यहीं पर आती है कि जिनकी वज़ह से ये समस्याएं हैं वही दुर्भाग्य से, इसके निदानकर्ता भी हैं !