कहते हैं समय के अनुसार व्यक्ति की रुचियाँ बदलती हैं,पर ये बदलाव कई बार बड़ा भारी पड़ता है !अपन को पहले लिखने-पढ़ने का शौक था पर यह कभी इतना कष्टप्रद नहीं रहा जितना इस इलेक्ट्रानिक युग की चकाचौंध में संचार के सबसे आकर्षक व प्रभावी हथियार मोबाइल के साथ हो रहा है.
पिछले दो सालों में हमने क़रीब पाँच फ़ोन बदल लिए हैं.पहले मोटोरोला का L-9 ,फिर E -6 और उसके बाद नोकिया का 5800 फोन लिया पर सबसे ज़्यादा रुलाया नोकिया के इसी फोन ने . ख़रीदने के सात महीने के अन्दर ही इसके बार-बार हैंग और ऑन-ऑफ हो जाने से तंग आ गया और आधी क़ीमत पर उसे हटा दिया . स्पाइस का MI-300 लेने से पहले रोज़ इन्टरनेट पर नए और मन-मुताबिक फ़ीचर वाले फ़ोन की तलाश में खूब लगा था,पर अचानक कम बजट में ज़्यादा फ़ीचर के लालच में मैंने इसे लिया और लेते ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.फ़ोन में जो वेब-सर्फिंग,कैमरा ,बैटरी ,रफ़्तार,लुक आदि चाहिए था,वह सब नदारद था.
बहरहाल,मैंने विक्रेता से बात की तो उसने बमुश्किल मेरी परेशानी को देखते हुए उसे वापस कराने का आश्वासन दिया और मैंने भी झट से वह फ़ोन वापस दे दिया. तीन दिन के अन्दर मुझे 'क्रेडिट-नोट' मिलना था जिसकी बिना पर मैं दूसरा फ़ोन ले सकता था,पर हाय मेरी किस्मत ! वह विक्रेता दुर्घटना में ऐसा घायल हुआ कि पूरे तीस दिन मुझे भारी यंत्रणा में गुज़ारने पड़े ! इस बीच में मैं लगातार नेट पर ऐसा फ़ोन ढूँढ रहा था, जिसमें सारे आधुनिक फ़ीचर हों,साथ ही हिंदी का समर्थन भी,पर नोकिया के सिम्बियन फ़ोन के अलावा मुझे ऐसे फ़ीचर-युक्त फ़ोन के दीदार कहीं नहीं हुए.
सैमसंग के वेव पर मेरी नज़र थी पर इसमें बाडा का ऑपरेटिंग सिस्टम था,मोटोरोला का बैक-फ्लिप andriod के पुराने वर्जन और ग्राहक-सेवा की वज़ह से नापसंद था और सोनी का xperia -10 भी इसी तरह की कमियों के चलते मेरी सूची से हट गया.
अंत तक काफी सोच-विचार करके और माथा पकड़ के मैंने सैमसंग का गैलेक्सी एस फ़ोन ले लिया जो मेरी ज़ेब के लिए तो भारी था ही घर में श्रीमती जी भी हमारे ऊपर अपना नजला गिराने वाली थीं,पर खुदा का शुक्र कि उन्होंने यह कहकर हमें बख्श दिया कि तुमसे कहना क्या,तुम्हें जो करना है वही करोगे! मैं भी उन्हें और शायद अपने को भी यह कहकर समझाता रहा कि भाई !लोग तो अपनी बीमारी में कितना खर्च कर देते हैं और यदि मैंने 28000 रूपये देकर अपनी बीमारी से निज़ात पा ली है तो बुरा क्या है ?
नए फ़ोन को लेकर खुश भी हूँ,हिंदी फिर भी हाथ नहीं आई,बजट अलग से बिगड़ गया,फिर भी अगर हमारी नए-नए फ़ोन की तलब शांत हो गयी हो तो बड़ा नेक काम होगा,पर यह शायद मैं भी नहीं जानता !
वैसे आपके बारे में भाभी जी की राय से हम भी सहमत हैं ! एनड्राएड में हिन्दी में हिन्दी का समर्थम कतई नहीं है !
जवाब देंहटाएं........ई-पंडित जी से प्रेरित हो हमने जब तक एनड्राएड में हिन्दी ना आ जाए ...तब तक अगले फोन की खरीद मुल्तवी कर रखी है !
हमने उस बीच इतनी रिसर्च करी थी जितनी कभी पढ़ाई में ना की थी ! आपसे,ई-पंडितजी से विचार भी किया था,प्रवीण पांडेयजी की पोस्ट(24000 रूपये बचाने वाली ) भी पढ़ी थी,पर मन कहीं नहीं ठुका,जब तक मेरी जेब नहीं साफ़ हो गई !
जवाब देंहटाएंविन्डो मोबाइल लेकर पिछले 3 वर्षों से चुप्पी साध कर बैठे हैं। बीच में दो माह के लिये LG का GS290 लिया और उससे संतुष्ट भी हैं। अब खराब हुआ विन्डो फोन पुनः ठीक हो हमारे हाथ में आ गया है। अब तो विन्डो फोन 7 को तब ही लेना है जब हिन्दी कीबोर्ड उसमें आयेगा। मॉडल सोच रखा है सैमसंग फोकस, यह गैलेक्सी एस का ही विन्डो-भ्राता है, हार्डवेयर वही है।
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय आपकी सलाह (२४००० रुपये बचाने वाली)पर भी ध्यान दिया था,पर खूब-सारे फिचेर वाला फोन लेकर स्मार्ट बनने का भूत जो सवार था,दूसरे तेज़ रफ़्तार और ग्लैमरस लुक भी होनी चाहिए थी.अब देखेंगे विंडो-7 कितना खर्चा कराके क्या फायदा देता है ?
जवाब देंहटाएं