25 मार्च 2014

बेमौसम की बदरी !

सबने अब हुँकार भरी है,
वही देश का प्रहरी है||



अपनी अपनी विजय पताका,
अपनी अपनी गगरी है ||



फिर से आस लगाए हम,
कब हालत ये  सुधरी है ?



गाँव,शहर वाकिफ़ उनसे ,
वाकिफ़ काशी नगरी है ||



टीका,टोपी स्वाँग सभी,
स्वर्ग से काया उतरी है ||



पंडित,मुल्ला धरम बचाते,
इतनी पाप की गठरी है ||



छँट जायेगा जल्द कुहासा,
बेमौसम की बदरी है ||






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