सबने अब हुँकार भरी है,
वही देश का प्रहरी है||
अपनी अपनी विजय पताका,
अपनी अपनी गगरी है ||
फिर से आस लगाए हम,
कब हालत ये सुधरी है ?
गाँव,शहर वाकिफ़ उनसे ,
वाकिफ़ काशी नगरी है ||
टीका,टोपी स्वाँग सभी,
स्वर्ग से काया उतरी है ||
पंडित,मुल्ला धरम बचाते,
इतनी पाप की गठरी है ||
छँट जायेगा जल्द कुहासा,
बेमौसम की बदरी है ||
वही देश का प्रहरी है||
अपनी अपनी विजय पताका,
अपनी अपनी गगरी है ||
फिर से आस लगाए हम,
कब हालत ये सुधरी है ?
गाँव,शहर वाकिफ़ उनसे ,
वाकिफ़ काशी नगरी है ||
टीका,टोपी स्वाँग सभी,
स्वर्ग से काया उतरी है ||
पंडित,मुल्ला धरम बचाते,
इतनी पाप की गठरी है ||
छँट जायेगा जल्द कुहासा,
बेमौसम की बदरी है ||
वाह...उम्दा और सामयिक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम
बहुत सुंदर , आपकी कामनाएं पूरी हों भाई !!
जवाब देंहटाएंमाह शेष दो।
जवाब देंहटाएंसुधरी न हो देश की हालत , मगर जनता के पास उम्मीद के सिवा चारा क्या है !
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