हम फ़िलहाल घनी फुरसत
में हैं,तो सोचा कि थोड़ा मौजिया लिया जाए। मौज लेने का सबसे ताज़ा मौका ई ज़र्मनी
वाला डायचे-वेले दे रहा है। पता नहीं ऊ वेला है या वो समझता है कि हम ही वेल्ले
हैं ? फ़ोकट में ही ऐसा प्रोग्राम बनाया है कि उसकी साईट पे रोज़ हम हिट करते रहें
,इससे और कोई हिट हो न हो,वह ज़रूर हिट हो जायेगा। इसके बरक्स हमारा देसी परिकल्पना
था,नाम से ही चिढ़ पैदा करता है। कहाँ अंतर्राष्ट्रीय बिल्ले के साथ डायचे-वेले और कहाँ
अपने ही बिरादरी के छुटभैये द्वारा शुरू किया गया परिकल्पना ? नाम सुनते ही ससुरा मन
कलपने लगता है।
जो ब्लॉग-जगत
डायनासोर की तरह विलुप्त होने की कगार पे था,उसे ज़र्मनी वालों ने संजीवनी देकर
पुनर्जीवित कर दिया है। हम ठहरे अल्ट्रा-प्रगतिशील,सो हमारे हाथ में इसका झंडा
होना ही चाहिए था। लो जी,हमने वो भी पकड़ लिया है जैसा कि शुरू में ही हमने बताया
है कि इस समय हम गज़ब की फुरसत में हैं। अब प्रगतिशील सिद्ध होना है तो उसका इकलौता
उपाय नारीवाद है,भले ही इसमें वाद कहीं नहीं हो पर हम वादी तो हो सकते हैं। इसमें
ऐसी विषय-वस्तु है जो सबसे ज़्यादा अपील करती है और हमने इसीलिए अपनी तरफ़ से पुरस्कार
समेटने के लिए अपील जारी कर दी है। सबसे खुशी की बात है कि वह अपील अख़बारों में भी
सुर्खी बन चुकी है,इससे हम काफ़ी लहालोट हैं।
रही बात परिकल्पना-टाइप
सम्मेलनों की,सो हमें तो उनके आयोजकों की सूरत से ही परहेज है। वे परले दर्जे के
बनिये लगते हैं। सम्मान-समारोह में किसी का सम्मान हो न हो,पर अपना सम्मान करने का
मंच पा जाते हैं। हमें इसीलिए पुरस्कारों की अवधारणा ही नहीं पसंद रही है। इसमें
लाख खामियां होती हैं। यहाँ तक कि हमारे सवालों की फेहरिस्त भी उनके आगे कम पड़
जाती है। परिकल्पना में हमने प्रक्रियागत मसलों को ख़ूब फुरसत से बिन्दुवार दर्ज़
किया था,पर इस डायचे-वेले में हमें कोई कमी नहीं दिखती है। इसमें जो भी ब्लॉग
नामांकित किए गए हैं,उसका तरीका बिलकुल पारदर्शी रहा है।
डायचे-वेले के इस
आयोजन में सर्व-समाज की भागीदारी ज़रूरी है। इसमें ब्लॉगर ही होना पर्याप्त नहीं है।
यदि आप फेसबुक या ट्विटर या अन्य सोशल मीडिया पर खाता खोले हैं तो इसमें भोट कर
सकते हैं। यह काम आप बिला-नागा महीने भर से अधिक समय तक करते रहें क्योंकि आयोजक
जानते हैं कि आप वेल्ले हैं। इस तरह गज़ब की लाबीइंग के चांस हैं और भाई-बहन लोग कर
भी रहे हैं। इसमें आयोजकों का कोई व्यावसायिक-हित नहीं है,यह हमें पक्का पता है। इस
आयोजन में क्वालिटी या किसी तरह के मापदंड पर सोचना फ़िज़ूल है क्योंकि वो
अंतर्राष्ट्रीय है ,परिकल्पना की तरह चिरकुट नहीं।
हमें वैसे पुरस्कार
वगैरह सब बकवास लगते हैं पर जब मामला प्रगतिशीलता की दौड़ में दिखने और देसी
सम्मान-समारोह की प्रेतछाया से उबरने का हो,तो यह सब मुफीद लगता है। इस सबके बीच
वो पुराने उसूल फ़िर कभी,फ़िलहाल फुरसतिया-चिंतन चालू है । और हाँ,उधर वोटिंग भी चालू
है। आप लोग कहीं मत जाइयेगा। आपको भोट एक बार ही नहीं देनी है,रोज़ दबाते रहिये। इससे
मताधिकार और प्रजातान्त्रिक अधिकारों को ज़बरन हथियाने का भी मौका है।