8 अप्रैल 2012

महफूज़, तुम अब फ्यूज़ हो गए हो !

कभी प्यारे रहे महफूज़ ,
बहुत दुखी होकर तुमसे मुखातिब हूँ.जब से अविनाश वाचस्पति जी के बारे में तुम्हारी पोस्ट पढ़ी है,तुम्हारे प्रति मेरा नज़रिया बिलकुल बदल गया है.ऐसा नहीं है कि इससे भी तुम्हें या तुम्हारी सेहत पर रत्ती भर भी फर्क पड़ने वाला है,पर यह मेरी एक ब्लॉगर के नाते जिम्मेदारी है कि इस लिखने-लिखाने के मैदान को पहलवानों का अखाडा न बनने दिया जाये.कुछ शालीन और शांति-प्रिय लोगों की तरह या फिर तुमसे दोस्ती के चलते मैं  भी मौन धारण कर सकता था,पर फिर केवल एक कागजी-ब्लॉगर भर बना रह जाता.

पहले मैं यह बता दूँ कि कम ही लोग ऐसे हैं जिन्हें मैंने फेसबुक के ज़रिये उनकी ब्लॉगिंग को जाना और उनमें तुम भी शामिल रहे हो.हमारी बातें भी गाहे-बगाहे होती रही हैं और तुम्हीं से यह  भी जाना कि कई लोग तुमसे बेवजह जलते हैं.बहरहाल कई लोगों के नज़रिए को दरकिनार करते हुए मैंने तुमसे राब्ता कायम रखा और तुम्हें अपनी नज़रों से जानना चाहा.मैं कल अविनाश वाचस्पति जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर के बारे में तुम्हारी शाब्दिक हिंसा से अन्दर तक हिल गया हूँ.जिस तरह की ललकारनुमा  शैली तुमने ईजाद की है ,क्या वह स्वस्थ-लेखन की किसी श्रेणी या खाँचे में फिट हो सकती है ? किसी भी जायज या नाजायज तर्क के चलते कोई भी किसी की आलोचना का अधिकार रखता है,पर भाई उसके लिए शब्द-कोश की कमी नहीं है.यदि इससे इतर कोई भी किसी के जीते जी उसके मरने-मारने की कसमें खाता है ,खुले-आम धमकाता है,अपने मसल्स की मसल्सल  नुमाइश करता है तो कौन-से तर्क से यह सभ्य-समाज की परंपरा का द्योतक कहा जाएगा?

मैं अब इस बात की पृष्ठभूमि में भी थोडा जाऊँगा ,जिसकी बिना पर तुमने यह गुस्ताखी की है.जिस कविता को लेकर इतना बावेला मचा,उसे मैंने भी देखा था और ज़रूरी नहीं कि कुछ लोगों की धारणाओं के अनुसार हर कोई उसकी प्रशंसा ही करे.कवयित्री ने जानबूझकर उसे 'बोल्ड' विषय बताया था सो कुछ बोल्ड कमेन्ट आने की भी आशंका तो थी ही.यदि वह कविता निरा कविताई अंदाज़ और उद्देश्यों को लेकर लिखी गई होती तो उसका शीर्षक ही कुछ और होता.'बोल्ड' कहकर कवयित्री लोगों को आकर्षित करने का साहस तो दिखाती हैं  पर फिर आलोचनात्मक टीपों को भी अश्लीलता की आंड़ में हटा देती हैं.

निश्चित ही, अलबेला जी की टीप बहुत आपत्तिजनक रही,जिसका विरोध मुझ सहित कई लोगों ने वहाँ भी दर्ज किया.इसमें अविनाशजी की साधारण आपत्ति को निशाना बनाकर उनपर ही हमले शुरू हो गए.वे इतने बड़े और छपने वाले ब्लॉगर हैं कि इस तरह के ओछे हथकंडों की उन्हें ज़रुरत नहीं है.तुमसे उनकी खुन्नस यही रही कि उन्हीं कवयित्री की तुमसे सम्बंधित एक पोस्ट रही,जिस पर अविनाशजी ने कुछ सवाल उठाये थे.उसमें कहा गया था कि जर्मनी के किसी विश्वविद्यालय में तुम्हारी कविता पढाई जाएगी.अविनाशजी ने यही खता कर दी कि इस तरह की ख़बरों की प्रमाणिकता की माँग कर दी,तिस पर वो कवयित्री सारा साज-सामान सहित लापता हो गईं .क्या ऐसा सवाल उठाना भी गैर-ज़रूरी था?यदि बात में तथ्य होता तो क्यों सारे भाग खड़े हुए ? अब तुम्हारी इस गोलीबारी और हिंसक शैली को देखकर पता नहीं जर्मनी वाले अपने समाज और देश को किस तरह की प्रेरणा देना चाहेंगे?

महफूज़,अविनाशजी  में हो सकता है कुछ कमियाँ हों,पर ऐसी मारधाड़ और स्टंट वाली भाषा का प्रयोग उन्होंने नहीं किया है.एक व्यंग्यकार होने के नाते कई बार वह वक्र बोलते या लिखते हैं तो उसी शैली में जवाब दिया जा सकता है,पर तुमने अपना पूरा गोला-बारूद निकाल लिया और लड़ाई का मोर्चा खोल दिया.इसे किस तरह की ब्लॉगिंग कहेंगे ? जिस  विषय पर उन कवयित्री ने अपनी कलम चलाई है,मजाल है कोई पुरुष ऐसा लिख लेता.कई अनामिकाएँ वहीँ पर स्यापा पढने लगतीं.ऐसे लोग खुद तो अपने कमेन्ट-बॉक्स पर ताला लगा लेते हैं और दूसरों को गरिया आते हैं.इस मामले में यहाँ तक कि अलबेला जी ने भी सभी टीपों को सम्मान दिया.खुद कवयित्री को अविनाशजी की आपत्ति असहनीय लगती है पर तुम्हारी हर गाली उनके लिए प्रेमगीत !

यह पत्र लिखना ज़रूरी था और उतना ही यह बताना भी  कि ऐसी हिंसक भाषा और गैर-तमीज़ का मुजाहिरा करके तुमने  सिद्ध कर दिया है कि अब हीलियम का पाँच सौ वाट का तुम्हारा बल्ब फ्यूज़ हो चुका है.तुम अब एक गैर ज़रूरी दोस्त,इन्सान और ब्लॉगर हो गए हो !

गालियों और गोलियों की बौछार के लिए तैयार,
तुम्हारा रहा कभी !

35 टिप्‍पणियां:

  1. गर्मी में पारा वैसे ही बढ़ा है, ऐसे में ब्लॉगजगत ठंड की बहार बहाये।

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  2. जब एक सुंदर चेहरे के अंदर
    वो दिखाई दे जाता है जो वो है
    फिर कहाँ कुछ रह जाता है
    किसी के लिये
    और फिर लौटना पड़ता है
    अल्विदा महफूज
    तुम खुश रहो आबाद रहो
    पर ऊपर वाला मेरे पर
    रहम करे
    तुम से कभी
    मुलाकात ना हो ।

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  3. महफूज़, तुम अब फ्यूज़ हो गए
    अब सिर्फ तुम सो पीस रह गए,
    बेहतरीन प्रस्तुति,
    संतोष जी ....सटीक करारा जबाब,...

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
    RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

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  4. वोह ||
    तो यही महफूज हैं जो जर्मनी में पढाये जायेंगे -
    खुदा खैर करे नाजियों का |
    ना जियो |

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  5. एक सच्चे मित्र का यही धर्म है कि वो अपने मित्र को सही मार्ग दिखाये !

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  6. सही मार्ग ?? मतलब बाहर का रास्ता? ...:) रुकिए अभी सीरिअस टाइप टिप्पणी भी करूंगा :)

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  7. वंदना जी की कविता में कुछ आपत्तिजनक पंक्तियाँ थी जो न होती तो अच्छा होता । लेकिन जिस तरह अलबेला जी ने प्रत्युत्तर पोस्ट लिखी , उसने सारे ब्लॉगजगत को शर्मसार कर दिया । अविनाश जी ने अपने अंदाज़ में विरोध प्रकट किया । लेकिन अफ़सोस महफूज़ ने जो लिखा वह हिंदी ब्लोगिंग में एक काला धब्बा बनकर रहेगा ।
    अलबेला जी को मैं व्यक्तिगत रूप में नहीं जानता । लेकिन महफूज़ से वास्तव में बेहद निराशा हुई ।
    महफूज़ , आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी ।

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  8. गारी-गुप्ता हो रहा, जाल जगत पर आज ।
    मूल विषय खोता रहा, गिरी गजल पर गाज ।

    गिरी गजल पर गाज, वंदना के स्वर रूठे ।
    कौन यहाँ महफूज, मिटे सब दुष्ट अनूठे ।

    भौतिकता धन धान्य, जला सकती चिंगारी ।
    मन जीवन सम्मान, जलाती कटुता गारी ।।

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  9. मैं क्या कहूं -बच्चू इस अखाड़े में अब आये हो जब इनामी कुश्तियां बीत चुकी ....
    महफूज कोई नया नाम नहीं है ब्लागिंग का .....वे हिन्दी ब्लॉग जगत के नब्बे फीसदी
    नारी ब्लागरों के दुलारे, प्राण प्यारे हैं -कैसानोवा है -आपकी यह जुर्रत उसे ललकारने की ?
    हिन्दी पट्टी की नारी ब्लागरों की हैसियत महफूज भर की है ..दोनों एक दूसरे को डिजर्व करते हैं हमारे और आपके लिए अंगूर खट्टे हैं !
    उन्हें जिसे भी जो चाहिए महफूज मुहैया करा रहा है ..जो भी ..प्यार दुलार सपोर्ट आदि कुछ भी ...
    आप हम नहीं कर सकते भाई -वह एक प्यारा सा चंगेज खान है ....कुछ न कहिये उसे ,कुछ भी !
    बाकी वंदना गुप्ता की कविता का जो स्वत्व था जो सारभूत था उसे ठीक से समझा नहीं गया ..लोग शब्दों पर बिफर पड़े ...
    मगर अब तो वह कविता भी नेपथ्य में है सामने हैं महफूज सीना ताने!
    अविनाश जी सरीखी विनम्रता का मैं कायल हूँ ,आपके साथ मैंने उनसे जो दो घड़ी मुलाक़ात की तो दिल जीत लिया था उन्होंने बस चुप रहकर ,संजीदा रहकर ....उनकी शान में कोई गुस्ताखी मुझे भी बर्दाश्त नहीं है .....महफूज को माफी मांगनी होगी..
    नहीं तो सबसे कठिन जाति अवमाना आप जानते ही हैं !

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  10. आपने तो अपनी भड़ास निकाल ली... अब हमारी भी सुनिए
    1- सोचिए ब्लॉग जगत मे क्या हम यही करने आए थे?
    2- ब्लॉग धनात्मक(positive)सृजन के लिए होना चाहिए। किसी के खिलाफ पोस्ट लिख कर उसे खामखा प्रसिद्ध करने की नीयत नहीं रखनी चाहिए।
    3- माना महफ़ूज गधा है और दुलत्ती मारता है... तो क्या आप भी दुलत्ती मारने लगोगे? पोस्ट का जवाब पोस्ट कभी नहीं होता।
    4- व्यक्तिगत आक्षेप, शक्ति प्रदर्शन, और हैसियत के दिखावे को मै उचित नहीं मानता... वो चाहे कोई भी हो।
    अच्छा हो हम प्रातिक्रियावादी न हों।

    इत्ता काफी है न ?

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  11. दराल साब जैसा ही मुझे भी महसूस हुआ...

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  12. डॉक्टर दराल की टिप्पणी के एक-एक शब्द को ही मेरी प्रतिक्रिया माना जाए....

    यह प्रार्थना और करूंगा....सब को सम्मति दे भगवान...

    जय हिंद...

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  13. क्या संतोष भाई.. इसमें पोस्ट लिखने जैसी कोई बात नहीं थी... मुझे शिवम् ने बताया ... उस वक़्त मैं रस्ते में था.. औरे मेरी कार का वाय-फाय भी काम नहीं कर रहा था... अभी घर आ कर देखा.. तो मुझे अफ़सोस तो नहीं हुआ.. रही बात गाली की तो मैं गालियाँ बहुत देता हूँ.. और मेरा फितरा ही रिफाइंड गुंडे का है.. और शरीर से तो मैं पहलवान हूँ ही... आप यही चीज़ अविनाश वाचस्पति को भी समझा सकते थे.. वो जब किसी भी महिला को नंगई... और छिनाल जैसे शब्दों से नवाजेगा... तो भई मैं तो वैसे भी गुंडा टाइप का हूँ.... और मुझे गुंडा कहलाने का शौक भी है.. हम लोग राजनीतिक लोग हैं... हमें हर टाइप का बिहेवियर करना पड़ता है... शरीफों के साथ हम शरीफ हैं.. और खराब के साथ खराब... स्वस्थ लेखन भी मैं बहुत ज्यादा करता हूँ... और रहा सवाल गाली का तो मेरा यह मानना है की मर्द आदमी ही गालियाँ देता है... जो गालियाँ ना दे... वो वो ढीला .... अब पता नहीं आपने कैसे फ्यूज़ कह दिया... अगर मैं फ्यूज़ हूँ तो भई मेरे घर में घुस कर मुझे मारो... मैं तो अभी भी किसी के भी घर घुस सकता हूँ... और रिकॉर्ड यही बोलेंगे ... की मैं यू.एस.ऐ. में हूँ... तो भई... संतोष जी... पहले किसी भी इंसान के बारे में अगला पिछला जान लिया जाता है.... फिर ऐसे कहा जाता है.. अविनाश में खामियां ही नहीं.. वो खामियों का होलसेल स्टॉक है... पूरा शौपिंग मौल है... और मैं दो तरफ़ा ज़िन्दगी नहीं जीता... जो बोलता हूँ वही करता हूँ... और भई मैं ब्लौगर नहीं हूँ... मैं सिर्फ लिखता हूँ.. और लिखते हुए मुझे पैंतीस साल हो गए हैं... तो बेसिकली आय ऍम अ राइटर... और मेरी राइटिंग रिकौन्ग्नाइज़्द है.. मैं यहाँ पैसे देकर या जन्संदेश टाइप में नहीं छपता... और मेरे पास घमंड दिखाने के लिए हेल्थ, वेल्थ और नॉलेज है... तो मैं घमंडी हूँ.. ऐसी पोस्टें लिखने से कुछ नहीं होगा.. मैं यह चाहता हूँ की मेरे खिलाफ सब लोग मिल कर ऍफ़.आई.आर. करें... और फिर मुझसे लड़ें तो कोई मर्दों वाली बात होगी... मेरी ज़रूरत मेरे परिवार, मेरे मोहल्ले, मेरे देश, और मेरे वर्क को है.. मैंने अपने जिले, अपने देश अपने मोहल्ले के लिए काम किया है.. और जग-ज़ाहिर है.. और किसी ने यह काम किया हो तो बता दे.. चार साल पहले का चुनाव सिर्फ चार सौ वोटों से हारा था.. अविनाश ने कौन सा झांसी का तोप उखाड़ दिया है यह भी बता देते... अब अगर मेरे बारे में कोई पोस्ट लिखेगा तो कभी तो कोई मिलेगा .. मुझे कहीं ... वही मारूंगा पकड़ के... यह आपकी पहली और आखिरी गलती है... इसीलिए छोड़ रहा हूँ... आइन्दा अत्र-पत्र लिखने की ज़रूरत नहीं है... बात वही है ... पिछवाड़े में दम नहीं... हम किसी से कम नहीं... यहाँ पोस्ट लिखने से क्या होगा.. अरे इतना ही तकलीफ हुई थी तो मुझसे फोन कर के बात करते.. तो बताता... एक तरफ़ा नहीं सोचा जाता... अब अगर अविनाश ने किसी से पोस्ट लिख्व्वाई ... तो कभी तो वो भी मिलेगा... इतना मारूंगा... कि... तीन साल से पहले उठेगा नहीं... और रिकॉर्ड यही बोलेंगे... फिर.. कि महफूज़ ने नहीं मारा.. महफूज़ तो उस वक़्त ... लन्दन में था... अब कोई जवाब किसी को नहीं दूंगा.. यह संतोष भाई आप थे जिसको जवाब दिया है.. अब जो भी लिखेगा.. कहीं भी मार खायेगा... वो दर्दनाक वाला... और मेरा कुछ बिगाड़ भी नहीं पायेगा.... यह पहली और लास्ट वार्निंग है.. अविनाश वाचस्पति को... अब कोई जवाब नहीं दूंगा.. जिसने मार खाना होगा ...वही लिखेगा..

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    1. महफूज़ तुमसे और उम्मीद रह भी नहीं गई थी,संवाद की गुंजाइश तुमने बचाई कहाँ थी,जब सब कुछ कर-धर लिया .
      बहरहाल ,तुम्हारा ज़वाब ही मेरे लिखे के औचित्य को सिद्ध करता है.

      तुम खुश रहो,यूँ ही रहो
      पर खुद को तनहा पाओगे कभी !

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    2. fb pe itni bakwas padi aur blogs par b.....
      sab dekh lagta h Mahfooz sir aap sahi h.....
      but itta saara gussa........ :P

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  14. कमेन्ट क्यूँ डिलीट कर रहे हो... संतोष भाई..

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  15. दराल जी आपके कमेन्ट को ही मेरा भी कमेन्ट माना जाए.. मुझे भी खुद से बहुत निराशा हुई है... लेकिन कभी कभी हमें समाज में एस अबिहेवियर करना पड़ता है... और मुझे इस बिहेवियर का कोई अफ़सोस भी नहीं है.. अफ़सोस कमज़ोर लोग करते हैं.. हाँ! आपको मेरे कमेन्ट से दुःख हुआ तो मैं सिवाय आपसे सॉरी के और कुछ नहीं कर सकता.. यही मैं खुशदीप भैया को भी कह रहा हूँ..

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  16. कुछ दिन पहले एक खबर आई थी जिसमें महफ़ूज को गोली लगने का समाचार था। तमाम लोगों ने उनको शुभकामनायें दीं। पोस्ट लिखीं- महफ़ूज खतरे से बाहर! उसमें फ़िर लोगों ने शुभकामनायें दीं।

    सबकी दुआओं का कुछ न कुछ असर तो रहा होगा कि महफ़ूज के स्वस्थ होने में। आज सोचता हूं कि अगर महफ़ूज को कुछ हो जाता तो अपन इस मर्दानगी के दर्शन कैसे कर पाते।

    लेकिन एक ख्याल यह भी आता है कि ये वाले महफ़ूज और वो वाले महफ़ूज कोई और हों। असली वाले महफ़ूज यू.एस.ए. में हों।

    आगे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। बड़ा डर लग रहा है। सिट्टी और पिट्टी दोनों अपने को नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर बता रहे हैं।

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  17. मैं कुछ नहीं कहूंगा वक्‍त खुद बोलेगा कि न्‍यू मीडिया को बुराई की कितनी अधिक जरूरत है। सफाई भी नहीं करूंगा मैं, जो कर रहे हैं अच्‍छी तरह कर रहे हैं, सफाई जो करना जानता है, वही अच्‍छी तरह कर सकता है। यहां सफाई लिंक परोसकर की जा रही है। सबके अपने तरीके हैं, अब तरीकों पर फिर से लिखना ... न बाबा न ... गूगल बाबा भी पहलवानों से बचकर रहे। खोजने और खोदने के काम से में मैं नहीं उलझता हूं। मन में मैल तो हो सकता है जिसकी सफाई की जा सकती है लेकिन मन में भेद की सफाई पॉसीबल नहीं है। मन में भेद डालने के लिए फोन कर करके कोशिशें जारी हैं। मानो किसी भारतीय पत्रिका में विश्‍व भर के 111 रचनाकारों में नाम जुड़वाने के लिए प्रयास किए जा रहे हों। अब धन्‍यवाद के सिवाय कोई और वाद नहीं,, साम्‍यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद, धनवाद, बलवाद, कवायद के लिए मेरे पास जगह नहीं है।

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  18. मै इतना ही कहूगा ,जो हुआ अच्छा नहीं है,और जो हो रहा है वह भी, मेरा आग्रह है वैचारिक मतभेदों को व्यक्त करते वक्त शब्दों की मर्यादा का ख्याल रखें,अपनें लेखन में भी,इससे आपसी मधुरता बनी रहेगी.

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  19. यहां से चुपचाप निकल लेना ही बेहतर है।

    हर शख्स अपनी तस्वीर को बचाकर निकले,
    ना जाने किस मोड़ पर किस हाथ से पत्थर निकले।

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  20. जो पलक झपकते ही गायब हो जाए
    अमर बन ललकारे
    ऐसे विनाश को आप ना जान पाए

    इस बात से मुझे संतोष नहीं

    फोन पर नहीं, आमने सामने होंगे तो करेंगे बातें
    फिलहाल एक शब्द -अफ़सोस

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  21. ek blogar samelan is vivad ko suljhane ke liye aap sabhi sudhi log aayojit kar len .

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  22. ये हिंदी ब्लॉग जगत पर हिंदी समालोचना का साया ,चैनलिया 'मुकाबला 'का परछायाँ,हमें यारों फूटी आँख न सुहाया .

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  23. आपने जिस पोस्ट का ज़िक्र किया है यहाँ पर, शायद उसमें तब्दीलियाँ आ चुकी हैं...ऐसा सुनने में आया है, मैंने देखा नहीं है, किन्तु मुझे किसी ने उसकी ओरिजिनल कॉपी भेज दी थी...मैंने भाषा की शालीनता की बात हमेशा कही है, और आज भी कहूँगी...अविनाश जी ने अगर ग़लत भाषा का प्रयोग किया है, जैसा उस पोस्ट से विदित हुआ है (मुझे नहीं मालूम है क्योंकि मैं फेसबुक पर भी नहीं हूँ, और न ही फिलहाल ऐसा कोई इरादा है ) तो उनका प्रतिकार, उससे भी ज्यादा भोंडी भाषा में करना कहाँ तक उचित है, यह बात अपने आप में ही ग़लत है...हमलोगों में एक कहावत है, चलनी कहे सूप से तोर में हजार गो छेद...और अगर भाषा की शालीनता की ही लड़ाई है, तो फिर अलबेला जी को किसी ने कुछ क्यों नहीं कहा..जहां तक और जितना मैंने देखा है...उनकी भाषा की अभद्रता, हमेशा की तरह, अपनी सीमा पार कर चुकी है...एक पोस्ट उनके लिए भी होनी चाहिए थी...
    एक बात और भी कहना चाहूँगी...उस तथाकथित पोस्ट में महिलाओं को हर तरह से अपमानित किया गया है...जबकि महफूज़ जी को हमेशा ही महिलाओं का साथ मिला है...क्या उनकी ये बातें उन महिलाओं पर लागू नहीं होतीं, जो आज भी उनके साथ हैं ? ऐसी निम्न कोटि की अवधारणा बना लेना उचित नहीं है...
    आपकी बात से सहमत हूँ, अगर यही हाल रहा तो जीवन में, वो सचमुच अकेले रह जायेंगे...उनकी भाषा की दुरुहता से मुझे हमेशा ही समस्या रही है..

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    उत्तर
    1. आपने सब-कुछ तार-तार कर दिया पर भले ही किसी की सेहत पर फर्क न पड़े,हमने समाज के प्रति ज़िम्मेदारी निभाई है और इसमें आप जैसे कई लोगों ने सार्थक योगदान दिया है,सभी का आभार !

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  24. i wanna write something....
    1. kisi perticular par cmmnt krna galat h....shayad santosh ji aap isliye galat h.
    2. agar aapko kuchh galat lga h to uski publicly (even on fb) burai karna galat h. aap mail kr k b gusse ka izhar kar sakte h to avinashji shayad galat h.
    3. chhoti si baat ko badaaya ja rha h....ye galat h.

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  25. महफूज़ से मिले हैं हम एक बार..
    अविनाश से दो बार...
    दोनों से हाथ भी मिलाया है...चेहरा भी देखा है...


    और इतना काफी है हमारे लिए....

    बाकी हम आदमी के लेखन पर ज़्यादा गौर नहीं करते...कि कौन क्या और कैसे लिख रहा है



    दोनों में कोई ख़ास फर्क नहीं है..
    मिजाज़ को छोड़ दें तो ...

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  26. हर शख्स अपनी तस्वीर को बचाकर निकले,
    ना जाने किस मोड़ पर किस हाथ से पत्थर निकले।

    Aurat ki haisiyat ko samman dena hi chahiye. jo n de uska ilaaj milkar doondhna chahiye.

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