28 मई 2011

फेरीवाले कहाँ गए ?

पिछले कई सालों से दिल्ली में हूँ.अब कभी-कभार ही गाँव जाना होता है.शहरी जीवन जीते हुए मन इसी में रच-बस सा गया है.गर्मियों के दिन हैं,अंदर वाले कमरे में बैठा अखबार पढ़ रहा हूँ .'काले-काले फालसे,खट्ठे-मीठे फालसे ' की  आवाज़ मुझे अपने अतीत में ले जाती है.


मैं जब छोटा था,गाँव में अकसर फेरीवाले आया करते.इनमें कपडे ,सब्जी,फल,आइसक्रीम ,गुब्बारे,खिलौने आदि बेचने वाले आते और अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की आवाजें निकालते थे.उनमें एक बुज़ुर्ग की आवाज़ मेरे कानों में गूँजती रहती है.वह महिलाओं से सम्बंधित छोटे-मोटे सामान का विक्रेता था.अपनी साइकिल को वह सामान से सजा के लाता था.उसकी पुकार सुनते ही खरीदारों से पहले हम बच्चे उसकी साइकिल के पीछे हो लेते !
वह एक ही साँस में कह जाता,"हींग,रंग,सेंदुर,काँटा,बाला,कंघा,शीशा......... "आगे हमें  याद भी  नहीं !


साभार:गूगल बाबा
उसके जाने के बाद हम खेल-खेल में यूँ ही आवाज़ लगाया करते.मखौलबाजी करना मेरा बचपन से ही मुख्य शगल रहा है.पास की दो-तीन औरतें मेरी इस नक़ल पे खूब हँसती और उनको 'मिमिक्री' सुनाकर मुझे बहुत मजा आता !

आइसक्रीमवाला तो केवल 'पों-पों' से ही काम चला लेता था.हम लोग भरी दुपहरी में 'बरफ' खाने के लिए चुपचाप घर के पिछवाड़े से सरक लेते.तीन और पाँच पैसे की वह बरफ होती थी !वह 'पों-पों' बजाकर अपना काम पूरा कर लेता.

ऐसे ही याद आते हैं पत्थर काटने वाले,जिन्हें हम 'पथर-कटा' कहते थे.वे पडोसी जिले फतेहपुर से आते और 'जांत',चकिया ,सिलोंटी ,जांत ' की आवाजें लगाते थे !वे सिलवट और जांत (पीसने का देसी यंत्र) आदि को धार देते थे  !

अभी थोड़े दिन पहले गाँव जाना हुआ था,पर अब वहाँ भी वैसे फेरीवाले नहीं दीखते.इसकी खास वजह यह हो सकती है कि गाँव के आस-पास बड़ी-बड़ी दुकानें खुल गई हैं.इसीलिए  हाट-बाज़ार भी अब नाम को ही लगते हैं !

इन फेरीवालों  से भेंट एक और जगह हो जाती है.सफर के दौरान ट्रेन में 'चाय-चाय' की ध्वनि थोड़ा आकर्षण पैदा  करती है,पर चाय हाथ में आते ही वह भी नहीं रहता !फिर भी वहाँ कुछ 'विक्रेता-गायक' मिल जाते हैं !

 शहर में अकसर 'पेपर,कबाड़ी,पेपर' की कर्कश आवाजें ही सुनने को मिलती हैं.ये फालसेवाले ज़रूर गर्मियों में सुर में बेचते हैं.कभी-कभार 'तरबूज और खरबूजा वाले भी तरन्नुम में आ जाते हैं,पर गाँव वाले फेरी वालों जैसी मौलिकता कहाँ ?



24 मई 2011

तिहाड़ जेल लाइव !

राजा: आओ कनिमोझी स्वागत है!
कनि: हाँ,अब तो तेरे कलेजा में ठण्ड पड़ गयी होगी .
राजा: हमरे तो हाथ बंधे थे,केवल अकाउंट खुला था.
कनि : हे राजा,ई तूने ठीक नय किया है.
राजा : अब हमरा नाम भी भूल गई हो,मैं ए राजा हूँ .
कनि: तुमरा नाम तो 'टाइम' पर आया है,एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ मा खाली दू सौ करोड़ हमरे नाम !
राजा: शुक्र मनाओ,हमरी वज़ह से ही 'फर्स्ट-क्लास' जेल मिली है !छोटी-मोटी रकम में तो 'टाइम' क्या 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में भी न आ पाते !

इसी बीच फूलों का गुच्छा लेकर कनि के पप्पा आ जाते हैं ,राजा साइड में छुप जाते हैं !


ब्रेक के बाद ....

कनि बिटिया से मिल-मिला के जब उनके पप्पा चले गए तो राजा तिलमिला गवा !ओटरे से निकल के कनि से बूझै लगा:

राजा: ई आदमी केतना अहसानफरामोश निकला !हम इसके खातिर ससुर रिज़र्व बैंक बने थे और ऊ एक बार भी हमसे मिलने नय आवा.
कनि: लगता है तुम अब संठियाय गए हो !हमरे पप्पा अभी-अभी 'गद्दी' से उतरे हैं,उनको कुच्छौ नय सूझ रहा है.एकदम ललुयाय गये हैं.
राजा : अब ई लालू से उनकी कउनो बराबरी है का ?
कनि: हे राजा ,ऊ चारा खा के  ज़मीन  पर आये और हमरे पप्पा ,ई का कहत हैं टू जी-सूजी से !

अचानक तिहाड़ में बिजली गुल हो जाती है और उसके बाद आँखों देखा हाल तो कउनो उल्लू ही बताएगा !

23 मई 2011

क़यामत की फेसबुकिया डायरी !


तारीख :ठीक महाप्रलय से एक दिन पहले (२१ मई २०११ )

क़यामत के पहले की आखिरी रात है,
कम-अस-कम आज तो जी भर सो लें!

सन्दर्भ:आजतक,कलतक,इंडिया टीवी,अमेरिका टीवी,आधुनिक बाबा (जिन बाबाओं के नाम नहीं दे पा रहा हूँ,वादा है यदि हम जिंदा रहे तो उनको मरणोपरांत श्रद्धांजलि तो दे ही देंगे !


 महाप्रलय का दिन(२२ मई २०११)

क़यामत का लाइव टेलीकास्ट:

सूरज डूब गया है,अँधेरा छा रहा है,तेज हवाएं चलने लगी हैं!
हमारे 'तेज' चैनलों के बहादुर संवाददाताओं को फील्ड पर कैमरे ,माइक लेकर'रेडी' (ढींग चिका ढींग स्टाइल )कर दिया गया है.कई स्पांसर भी मिल गए हैं.आप सब लोग जाते-जाते यह भी देख सकें कि आपका कौन साथी आपके साथ जा रहा है ?मतलब,मजे से मरते हुए ऊपर जाएँ !


महाप्रलय का अगला दिन (२३ मई २०११)

आज सुबह नींद जल्दी खुल गई तो जिंदा होने का अहसास नहीं हो पा रहा था.इसलिए मैंने अपने बदन पे दो-तीन चिकोटी काट कर तसदीक करी कि वाकई में जिंदा हूँ ? बदन में फुल हरकत पाकर सुकून हुआ.भाई लोगों की तमाम कोशिशों के बावजूद हम कायम हैं ,दुनिया कायम है!


पिछले कई रोज से सबसे तेज चैनल ख़बरों से ही क़यामत ढाए हुए थे.कल रात को भी समाचार सुनने बैठा तो इसी के बारे में चर्चा होने वाली थी,झट से टीवी ऑफ करके सो गया.

इस बीच समाचार आये हैं कि कल आँधी-पानी से कुछ जगहों पर बीसेक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं.ई ल्यो ,अब इसको भी वे अपने तईं खबर बना देंगे,जैसे पहली बार कोई बारिश या तूफ़ान में मरा हो !


चलते-चलते

वाकई इस 'क़यामत' ने बहुतों को 'मटीरियल' दे डाला है,इससे जो बच भी गवा तो ससुर पढ़-पढ़ के मरेगा !


16 मई 2011

लादेन के बाद !

लादेनजी के लद जाने के बाद हमारी चिंता बढ़ गई  थी कि अब चैनल वाले का करेंगे ? उस ससुरे में  इतना मसाला था कि मरने के बाद भी कई दिनों तक उसे,उसकी बीवियों को,उसके छोटे लड़के को लेकर भाई लोग 'एकताई-सीरियल' बना रहे  थे  तभी बड़ी  'कोरट' ने ऐसा फैसला सुना दिया कि उनकी खेती में और बहार आ गई !

हम बात कर रहें हैं भाई अमर सिंह की पुरानी फिलम की नई रिलीज की !जिन भाइयों के पास उस फिलम की सीडी अलमारियों में न जाने कब से बंद थीं और बाहर निकलने को आतुर थीं ,उन्हें फटाफट झाड़-पोंछ के निकाला गया.हम जैसे स्रोत-विहीन लोगों को तो अंतर्जाल का ही सहारा था और हमारे कुछ दोस्तों ने निराश नहीं किया और तुरत-फुरत  फेसबुकवा में  परोस दिया !


माफ़ी सहित-गूगल ,बिप,अमर 
सच  मानिए,हमको तो एकठो सीडी इत्ती अच्छी लगी कि पता नहीं अपन ने  उसे सुनकर कितनी बार अपनी टाँगों की ओर देखा होगा? हम ठहरे अनाड़ी,सो अपने भेजे में अमर भाई का 'कोड-वर्ड' समझ में नहीं आया!
दूसरी सीडी में आज के प्रभु-पत्रकार का दयनीय-विलाप तो हम समझ सकते हैं.अब ऊ बड़े पत्तरकार हैं तो खर्चे भी बड़े होंगे.'सीधी बात ' तो यही है कि उनके भी तो बाल-बच्चे हैं नेताओं की तरह ! हाँ,अमर  भाई के 'आसारामी-परबचन' बड़े मजेदार और कर्ण-प्रिय हैं !फिर भी,हमारे कुछ दोस्तों को यह इतना बुरा लगा कि वो जूता लिए घूम रहे हैं कि उन जैसे लोग जहाँ दिखाई दें वहीँ जूतों की 'बरखा' कर दें !हमरी तो यही सलाह है कि ऐसे निरीहों के लिए न तो अपना टीवी फोड़ो और न ही महँगा-जूता फेंको !


अब  इस तरह की फिलम पर काहे को रोक लगाई गई  थी?सुनते हैं लादेनवा ऐसी सीडी खूब देखत रहा.हो सकता है दिग्विजय बाबू ने टाँग वाली सीडी ऊपर भी पार्सल कर दी हो!आखिर मरने वाले की इच्छा का ख्याल  तो रखा ही जाता है !

इसे तो  सुनकर ही हमरा इह-लोक धन्य हुइ गवा है और आपका ?