दो दिन पहले ख़बर आई कि हम सबको सालों-साल ख़बरदार करती आई बीबीसी की हिंदी सेवा बस चंद दिनों की मेहमान है.यह ख़बर शायद आज के ज़माने में एक हाशिये भर की ख़बर बन कर रह गयी है.प्रसारणकर्ताओं ने धन की कमी का रोना रोया है. हो सकता है की यह सेवा कमाऊ न रह गयी हो पर सार्वजनिक -हितों के लिए इसका ज़ारी रहना न केवल हिन्दुस्तान के लोगों के लिए अपितु विश्व-बिरादरी के लिए भी ज़रूरी है.
हम अपने बचपन को याद करते हैं, जब शहर के भद्रजनों से दूर,अखबारी दुनिया से महरूम गाँव के अधिकाँश लोग बीबीसी की हिंदी-सेवा का 'टैम' देखते रहते थे.जब कोई खास राजनैतिक घटना होती तो लोग झुण्ड बनाकर पूरा कार्यक्रम सुनते,और जो लोग नहीं सुन पाते वे दूसरों की जुबानी सुनते. लोग अपनी बहस में बीबीसी का हवाला भी देते.अब जबकि गाँव में संचार के आधुनिक साधन आ गए हैं, अखबार भी पहुँचने लगे हैं,पुराने लोगों में बीबीसी का क्रेज़ जस-का-तस है !
बीबीसी की ख़ास पहचान बिना किसी पक्ष के,लाग-लपेट के निडर टिप्पणी अपने श्रोताओं तक पहुंचाने में है.कई अख़बारों का निचोड़ इसमें निकल आता है,साथ ही ज्ञान-विज्ञान व साहित्य सम्बन्धी समाचार भी इसकी ज़द में रहे हैं.इसका इतिहास कई महत्वपूर्ण रपटों से भरा पड़ा है.पत्रकारीय-जगत की कई महान हस्तियाँ यहाँ से जुड़ी व निकली हैं .
ऐसी संस्था ,जो इतने व्यापक स्तर पर समाजसेवा जैसा कार्य कर रही हो,उसे धनाभाव के कारण दम तोड़ना पड़े,बताता है कि मानव ने दर-असल किस तरह की विकास-यात्रा की है! आज हमारा सारा ध्यान अपने कोश को बढ़ाने में लगा है,भले ही इसके लिए हम अपने मानसिक आनंद को तिलांजलि दे दें ! ऐसी कोश-वृद्धि किस काम की जिससे लोगों को सुख व आनन्द न मिले ! इसका समाधान कोई व्यापारिक-समूह या भारतीय सरकार अगर करती भी है तो उसके अपने हितों की कीमत पर होगा.
हम तो इसे बचाने के लिए बस एक ऐसी मौन-प्रार्थना कर सकते हैं,जो शायद उन तक पहुँच भी न सके जहाँ इसे पहुंचना चाहिए !
हम अपने बचपन को याद करते हैं, जब शहर के भद्रजनों से दूर,अखबारी दुनिया से महरूम गाँव के अधिकाँश लोग बीबीसी की हिंदी-सेवा का 'टैम' देखते रहते थे.जब कोई खास राजनैतिक घटना होती तो लोग झुण्ड बनाकर पूरा कार्यक्रम सुनते,और जो लोग नहीं सुन पाते वे दूसरों की जुबानी सुनते. लोग अपनी बहस में बीबीसी का हवाला भी देते.अब जबकि गाँव में संचार के आधुनिक साधन आ गए हैं, अखबार भी पहुँचने लगे हैं,पुराने लोगों में बीबीसी का क्रेज़ जस-का-तस है !
बीबीसी की ख़ास पहचान बिना किसी पक्ष के,लाग-लपेट के निडर टिप्पणी अपने श्रोताओं तक पहुंचाने में है.कई अख़बारों का निचोड़ इसमें निकल आता है,साथ ही ज्ञान-विज्ञान व साहित्य सम्बन्धी समाचार भी इसकी ज़द में रहे हैं.इसका इतिहास कई महत्वपूर्ण रपटों से भरा पड़ा है.पत्रकारीय-जगत की कई महान हस्तियाँ यहाँ से जुड़ी व निकली हैं .
ऐसी संस्था ,जो इतने व्यापक स्तर पर समाजसेवा जैसा कार्य कर रही हो,उसे धनाभाव के कारण दम तोड़ना पड़े,बताता है कि मानव ने दर-असल किस तरह की विकास-यात्रा की है! आज हमारा सारा ध्यान अपने कोश को बढ़ाने में लगा है,भले ही इसके लिए हम अपने मानसिक आनंद को तिलांजलि दे दें ! ऐसी कोश-वृद्धि किस काम की जिससे लोगों को सुख व आनन्द न मिले ! इसका समाधान कोई व्यापारिक-समूह या भारतीय सरकार अगर करती भी है तो उसके अपने हितों की कीमत पर होगा.
हम तो इसे बचाने के लिए बस एक ऐसी मौन-प्रार्थना कर सकते हैं,जो शायद उन तक पहुँच भी न सके जहाँ इसे पहुंचना चाहिए !