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दिल की गहराइयों से,तुम्हें चाहा हमने,
फिर भी अजनबी से आप गुजर जाते हैं.
नज़र-ए-इनायत तो कभी हम पे' करो,
सुना है,मुजलिमों पे आप रहम खाते हैं.
ये प्यार का पैग़ाम,शायद पहुँच सके,
इस गली से यूँ,चुपचाप निकल जाते हैं.
हाल-ए-दिल मेरा ,कोई सुना दे "चंचल",
मैं हूँ तनहा,अकेले भी आप जिए जाते हैं!
रचना काल: २१/०६/१९९०
दल्ली-राजहरा (छत्तीसगढ़)
बेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय कुछ ज़्यादा ही भाव दे दिया है.यह ग़ज़ल बीस साल पहले की है,जब बच्चे(कच्चे)थे! हौसला-अफज़ाई का शुक्रिया !
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