गाँधी, फिर इस देश में आजा.
सत्य,अहिंसा और प्रेम का ,
फिर से भारत में बिगुल बजा जा !
गाँधी,फिर इस देश में आजा !
जिस भारत में तूने अपने
रक्त से शांति-पौध को सींचा,
हिन्दू,मुस्लिम के हृदयों में,
सद्भाव,प्रेम की रेखा खींचा,
सर्व-धर्म समभाव जगाकर ,
फिर से प्यार के दीप जला जा !
गाँधी, फिर इस देश में आ जा !
मानव मूल्यहीन हो रहे,
आज तुम्हारे देश में,
घृणा भर रही है हृदयों में,
कुछ हैं पशुवत वेश में ,
ऐ मोहन, इस देश में आकर ,
फिर से 'रघुपतिराघव' गा जा !
गाँधी, फिर इस देश में आ जा !
विशेष : रचना काल
०२/१०/१९९० दूलापुर,रायबरेली
क्यों बुला रहे हैं? जब लोगों ने नाम का इतना दुरुपयोग किया है तो व्यक्ति की तो छीछालेदर कर देंगे।
जवाब देंहटाएंअगर आजायेंगे गांधी तो आज उनको भी बहुत पापड बेलने पड़ेंगे !.....शायद उनकी नेतृत्व क्षमता की असल परीक्षा उनके उत्तराधिकारी ही ले ना लें ?
जवाब देंहटाएं..........यकीन मानिए गांधी जी जिनको उत्तराधिकार सौंप गए ....वही उनके पुनः-आगमन के सबसे बड़े विरोधी होंगे !
@प्रवीण पाण्डेय 'गाँधी' तो अब ब्रांड बन चुका है.इसका व्यावसायिक व राजनैतिक उपयोग भी ख़ूब किया जा रहा है. मैंने जिस गाँधी को आवाज़ दी है,वह एक प्रतीक रूप में, इस 'भारत-दुर्दशा' को रोकने के लिए है,पर अब तो 'संभवामि युगे युगे'कथन भी निरर्थक सिद्ध हो रहा है...
जवाब देंहटाएं@प्रवीण त्रिवेदी मास्साब...ठीक कह रहे हैं आप,मैं तो यह भी कह रहा हूँ कि आज गांधीजी चुनाव लड़ते तो उनकी ज़मानत भी ज़ब्त हो जाती...ऐसा जातिवादी,धर्मवादी समाज बना दिया है उनके अनुयायियों ने...और उनके नाम का दोहन करने में उनके तथाकथित 'चेले' व धुर-विरोधी सभी लगे हुए हैं !
जवाब देंहटाएंतो क्या किया जाये,हम तो केवल इस दशा पर प्रतीकात्मक-आह्वान ही कर सकते हैं.
संतोष त्रिवेदी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुनते हैं कि इन सब स्थितियों की नींव गांधी ही रख के गए हैं … :)
ख़ैर मैं ज़्यादा क्या कहूं …
दो दो प्रवीण अपनी प्रवीणता द्वारा मेरी ही बात कह गए , और आप स्वयं भी तो …
बहरहाल अच्छा काव्य प्रयास है , बधाई !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@rajendra swarnakar:राजेंद्र स्वर्णकार भई,आज के ज़माने में गाँधी से सस्ता व सरल साधन नहीं मिलता लोगों को.कुछ लोग उन पर फूल-माला चढ़ाकर तो कुछ लोग गरियाकर और बाक़ी लोग यूं हीं भड़ास निकालकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.हमने गाँधी को कभी सही उद्देश्यों के लिए परखा तक नहीं.इसमें गांधीजी की नहीं हमारी गलतियाँ हैं...
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