पिया मिलन का दर्द सताए,
अपना कोई मिलने आए,
खड़ी द्वार पर जिसे निहारूँ ,
अब तो फागुन आयो रे !
बासंती मौसम अब आया ,
पतझड़ नयी कोंपलें लाया ,
मैं प्रियतम पर वारी जाऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
सरसों फूल रही खेतों में,
कोयल कूके है पेड़ों में,
लगता है मैं भी कुछ गाऊँ ,
अब तो फागुन आयो रे !
चारों तरफ बयार नयी है,
वसुंधरा श्रृंगारमयी है,
मदमाती मैं किसे पुकारूँ,
अब तो फागुन आयो रे !
प्रकृति हो गई रंग-रंगीली,
भर पिचकारी पीली-नीली,
मैं साजन के रंग हो जाऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
ढोल-मंजीरे बजते कैसे,
बिछुड़े हुए मिले हों जैसे,
आओ प्रिय ! या मैं उड़ आऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
जनवरी १९९८ की एक सर्द सुबह - दिल्ली
अपना कोई मिलने आए,
खड़ी द्वार पर जिसे निहारूँ ,
अब तो फागुन आयो रे !
बासंती मौसम अब आया ,
पतझड़ नयी कोंपलें लाया ,
मैं प्रियतम पर वारी जाऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
सरसों फूल रही खेतों में,
कोयल कूके है पेड़ों में,
लगता है मैं भी कुछ गाऊँ ,
अब तो फागुन आयो रे !
चारों तरफ बयार नयी है,
वसुंधरा श्रृंगारमयी है,
मदमाती मैं किसे पुकारूँ,
अब तो फागुन आयो रे !
प्रकृति हो गई रंग-रंगीली,
भर पिचकारी पीली-नीली,
मैं साजन के रंग हो जाऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
ढोल-मंजीरे बजते कैसे,
बिछुड़े हुए मिले हों जैसे,
आओ प्रिय ! या मैं उड़ आऊँ,
अब तो फागुन आयो रे !
जनवरी १९९८ की एक सर्द सुबह - दिल्ली
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