28 अक्टूबर 2019

सियासत

सब गिर गए हैं,किसे अब गिराएँ,
मुहब्बत में थोड़ा,ज़हर भी मिलाएँ

तनिक पास आओ,हमसे मिलो
झटकने से पहले,गले तो लगाएँ।

मिल कर रहेंगे तो अच्छा रहेगा,
तुम जेल जाओ,तुम्हें हम छुड़ाएँ। 

तुम्हारे हैं पासे,तुम्हारी हैं चालें,
गिरो तो गिराएँ,उठो तो उठाएँ

सियासत की बहती गंगा यहाँ
तुम भी नहाओ,हम भी नहाएँ

चलो आज ऐसा वादा करें,
पहले के वादे सभी भूल जाएँ


संतोष त्रिवेदी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें