25 दिसंबर 2017

अम्मा !

अम्मा,तुम अब नहीं रही।
कुछ कह ली,कुछ नहीं कही।

हम होते बीमार,बैठती सिरहाने,
हाथ फिराती,बतियाती,अब करौ बतकही।

बैठ जिमाती चौके में हमको जी भरके,
परई घी की भर लाती,संग दूध-दही।

चिज्जी की जब ज़िद करते दीवार पकड़,
लइया,पट्टी कुछौ दिलाती तुम तबही।

जब तुम थीं बीमार,नहीं थे पास तुम्हारे,
टुकुर-टुकुर देख्यो आँखिन बस धार बही।

घर सूना है,दर सूनाडेहरी ख़ाली,
अम्मा ! दुःख मा ,अब को हाथ गही ?



बिछोह-21-12-2017



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