भटकैं कुप्पी लेहे तेवारी
नेतन के घर रोजु देवारी
जसन मनावैं पहिने खादी।
अइसी भली मिली आज़ादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।
चिंदी चिंदी बदन होइ गवा
दूधु सुड़क गा मोटा पिलवा
देस मा बांदर खूब बाढ़ि गे,
टुकुर टुकुर तकि रहे लरिकवा।।
अफसर,नेता काटैं चाँदी।
अइसी भली मिली आजादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।।
दालि-भातु सब दूभर होइगा
ख्यातन मा कोउ पाथर बोइगा
बूड़ा, सूखा कबौ न छ् वाड़ै,
मरैं भरोसे पीटैं छाती।
अइसी भली मिली आजादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।।
नेतन के घर रोजु देवारी
जसन मनावैं पहिने खादी।
अइसी भली मिली आज़ादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।
चिंदी चिंदी बदन होइ गवा
दूधु सुड़क गा मोटा पिलवा
देस मा बांदर खूब बाढ़ि गे,
टुकुर टुकुर तकि रहे लरिकवा।।
अफसर,नेता काटैं चाँदी।
अइसी भली मिली आजादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।।
दालि-भातु सब दूभर होइगा
ख्यातन मा कोउ पाथर बोइगा
बूड़ा, सूखा कबौ न छ् वाड़ै,
मरैं भरोसे पीटैं छाती।
अइसी भली मिली आजादी।।
हमका माफ़ करौ तुम गाँधी।।
सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है .....कूट कूट कर आत्मविश्वास से भरी रचना
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